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पेनएशिया बच्चो की शिक्षा और उनके उज्जवल भविष्य के लिए वर्ष 2002 से है समर्पित
लखनऊ: पूर्णिमा की रात अगर आपको बाहर जाना हो… और आपके पास टॉर्च या रोशनी का कोई साधन न हो तो वो चंद्रमा ही होता है.. जो रात के अंधेरे में हमें रास्ता दिखाता है… ठीक चंद्रमा की ही तरह गुरू भी हमें जीवन के अज्ञानता रूपी अंधेरे से चंद्रमा की तरह अपने ज्ञान से रोशनी दिखात हैं…
गुरू शब्द का अर्थ होता है अंधेरे से प्रकाश की ओर ले जाने वाला… ये संस्कृत के 2 शब्द गु और रू से बना है… जिसमें गु का अर्थ अंधकार और रू का अर्थ अंधकार को हरने वाला होता है… आज गुरू पूर्णिमा है… गुरुओं को प्रति सम्मान जताने का दिन… उन्हें धन्यवाद करने का दिन… गुरू पूर्णिमा को हम महर्षि वेद व्यास के जन्मशती के तौर पर भी मनाते हैं… महर्षि वेद व्यास हिंदुओं के सबस सम्मानित गुरूओं में से एक रहे हैं… जिन्होंने गुरू-शिष्य-परंपरा को मजबूत बनाया… गुरू कोई भी हो सकता है… चाहे वो हमारा टीचर हो.. मित्र हो… माता-पिता हों…या कोई अजनबी…
मेरे पिता स्वर्गीय श्री वीरेन्द्र कृष्ण अग्रवाल जी रहे हैं… जो कि जाने -माने व्यवसायी थे…और मेरी सबसे बड़ी ताकत भी थे… ये उनकी सीख ही थीं जिनके दम पर मै जीवन की हर मुश्किल घड़ी से मैं निकल पाया हूं… उन्होंने मेरी जिंदगी के हर अंधेरे, हर निराशा को अपने विचारों और सीखों से दूर करने का काम किया है… वो हमेशा कहते थे कि विपत्ति चाहे जितनी भी बड़ी हो.. अगर सही वक्त पर सही तरीके से निपटा जाए तो कोई भी उनसे आसानी से पार पा सकता है… उन्होंने ने ही मुझे जिंदगी और काम के बीच बैलेंस करना सिखाया… बिजनेस बैकग्राउंड से होने के बावजूद उन्होंने हमेशा मुझे खूब पढ़ने और नौकरी करने की ही सीख दी…
जब मैंने अपनी शिक्षा के क्षेत्र में पहली नौकरी शुरू की तब उन्होंने मुझे स्वामी विवेकानंद के शब्द कहे, उन्होंने कहा कि लोगों को शिक्षा देना तो आसान है.. लेकिन तुम्हे वो शिक्षा देनी है जिससे न सिर्फ उनका व्यक्तित्व मजबूत हो.. बल्कि वो दिमागी तौर पर भी इतने मजबूत हो जाएं कि हर कोई अपने अकेले के दम पर अपने पैरों पर खड़ा हो सके….
आज 2020 में जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं तो समझ आता है आज मैं जो कुछ भी बन पाया हूं… ये अपने पिता की दी गई सीख के दम पर ही पूरा हुआ है… मेरी कोशिश रहती है कि अपने पिता की दी हुई जिन सीखों को मैं अपने पैनाकिया पीपुल एजुकेशन इंस्टीट्यूट से जुड़े सभी 20 हजार बच्चों तक पहुंचा सकूं… जिसे मैनें 2002 में अपनी पिता के दिखाए रास्ते पर चलकर शुरू किया था….
गुरू वो होता है जो अपने शिष्य के भविष्य के लिए खुद को झोंक देता है… पैनाकिया पीपुल एजुकेशन इंस्टीट्यूट में भी मैं यही कर रहा हूं… एक शिक्षक के तौर में मुझे उस वक्त सबसे ज्यादा संतुष्टि होती है… जब मेरा कोई शिष्य जीवन में सफलता का श्रेय मुझे देता है…
आज गुरू पूर्णिमा के दिन मैं भी अपने पिता, अपने गुरू और अपने सभी अग्रजों को धन्यवाद देना चाहता हूं… जिनके दिखाए रास्तों पर चलकर मैं इस लायक बन सका.. कि दूसरों को भी ऱोशनी दिखा सकूं…
तो चलिए आज के पावन दिन पर हम सब अपने गुरुओं के लिए वक्त निकालें..उन्हें फोन करें… वॉट्सएप करें… उन्हें धन्यवाद का मैसेज भेंजें… उनके लिए भी प्रार्थना करें तो जो आज हमारे बीच तो नहीं हैं.. लेकिन स्वर्ग में बैठकर भी हमें रास्ता दिखा रहे हैं… तो चलिए आज रात चांद को देखें और अपने-अपने गुरू को याद करें….