उत्तर प्रदेश

जमीन हड़पने के लिये दोबारा बनवाया फर्जी डेथ सर्टिफिकेट, इंसाफ की गुहार लगा रहा असली हकदार

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Fake Death Certificate case in Basti: जमीन के लालच ने एक शख्स को कागजों में दो बार मार दिया और उसके नाम की प्रॉपर्टी को अपने नाम कर लिया. यह हैरतअंगेज मामला बस्ती जिले के ऊंचगांव में देखने मिला है. जहां एक जालसाज ने अपने ही दादा नाटे का फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनाकर जमीन अपने नाम कर ली, जबकि जिस जमीन को शैलेंद्र ने अपने दादा का फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र लगाकर अपने नाम किया है, उस जमीन के हकदार कोई और हैं और वह लोग पिछले 6 साल से अपने हक की लड़ाई के लिए सरकारी दफ्तरों का चक्कर काटने को मजबूर हैं. मगर सरकारी फाइल है कि आगे बढ़ती ही नहीं.

इस तरह किया गया फर्जीवाड़ा 

शिकायतकर्ता रामानंद ने बताया कि, नाटे नाम के शख्स की मौत 1994 में हुई जिसका प्रमाण सरकारी अभिलेखों में दर्ज है. इसके बाद मृतक नाटे के नाती शैलेंद्र और प्रमोद ने गांव के सेक्रेट्री चंद्र शेखर से मिलकर दोबारा 2001 में मृत्यु प्रमाण पत्र बना दिया. जिस आधार पर कई बीघा जमीन को शैलेंद्र ने अपने नाम करवा लिया. गांव के ही रामानंद को जब इस बात की जानकारी हुई कि, उनके हक की जमीन किसी और ने हड़प ली है, तो उन्होंने जानकारी लेना शुरू किया तो पता चला कि मृत्यु रजिस्टर से वो पन्ना ही फाड़ दिया गया है, जिस पर नाटे की मृत्यु का 1994 वाला प्रमाण था. उस पन्ने को फाड़कर नाटे की मौत 2001 में होना दर्शा दिया गया, मतलब सेक्रेट्री चंद्रशेखर ने सारे नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए लालच में आकर अवैध तरीके से मृत्यु प्रमाण पत्र जारी कर दिया.

अफसर भी कर रहे अनदेखी

शिकायतकर्ता रामानंद 2016 से इस मामले को लेकर न्याय के लिए भटक रहे है. 2020 में डीएम के आदेश पर एडीएम सुखबीर सिंह ने जांच की और उनके द्वारा एडीएम को रिपोर्ट भेजी गई, रिपोर्ट में शैलेंद्र और सेक्रेट्री की जालसाजी पर मुहर लगाई और पुष्टि कर दी कि इन दोनों ने मिलकर नाटे की मृत्यु प्रमाण पत्र में छेड़छाड़ की गई. असल में नाटे की मौत 1994 के पूर्व हुई मगर फर्जी वसीयत बनाने के लिए नाटे की मौत 2001 में दिखाई गई और जारी 2015 में कराया गया, जो सरासर गलत है. एसडीएम की रिपोर्ट के आधार पर एडीएम ने दोषियों पर कार्रवाई और मृत्यु प्रमाण पत्र को ठीक करने के लिए डीपीआरओ को पत्र लिखा, जिस पर आज तक कोई एकेशन नहीं हुआ. डीपीआरओ के दफ्तर में कार्रवाई की फाइल को दबा दिया गया. थक हारकर पीड़ित रामानंद ने मंडल के आयुक्त अनिल कुमार सागर से न्याय की गुहार लगाई जिसपर कमिश्नर ने फाइल तलब की है. इसके बावजूद भी घाघ बाबुओं ने अभी तक कमिश्नर के आदेश का भी पालन नहीं किया और कार्रवाई की फाइल नहीं पहुंचाई.

कमिशनर की भी नहीं सुन रहे अफसर

अब सवाल उठता है कि, आखिर डीपीआरओ क्यों दोषियों को बचाना चाह रहे हैं, सेक्रेट्री ने एक शख्स के मृत्यु प्रमाण पत्र में इतना बड़ा खेल किया, जिसकी रिपोर्ट एक मजिस्ट्रेट ने दी फिर उसे बचाने का प्रयास हो रहा. जिस मृत्यु रजिस्टर का पन्ना फाड़ा गया उसे भी अब तक सही नहीं किया जा रहा है, तो ऐसे में उत्तर प्रदेश में कैसे अधिकारियों से उम्मीद की जाए कि वे गलत कार्यों पर कार्रवाई करते होंगे, जब एक मजिस्ट्रेट के कहने के बाद भी आज तक दोषी के खिलाफ एक्शन लेने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे तो ऐसे अफसरों से न्याय की उम्मीद करना बेमानी होगी.

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