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ये पहली बार नहीं है जब सियासी दल मूर्तियों के सहारे हैं और सत्ता के सिंहासन पर काबिज होना चाहते हैं.हालांकि, बसपा ने इस बार मूर्ति लगवाने से तौबा कर लिया है लेकिन, सपा अब बसपा की राह पर चल पड़ी है..ऐसे में जब भाजपा विकास के जरिए 2022 फतह करने का दावा कर रही है तो बाकि, दल क्यों प्रतीकों के नाम पर पॉलिटिक्स कर रहे हैं ?
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