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लखनऊ, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की सड़कें खूनी हो चुकी हैं, ये कहना गलत नहीं होगा क्योंकि पिछले पांच साल के आंकड़ों पर अगर गौर करें तो सड़क हादसों में 2892 लोग अपनी जान गवां चुके हैं। जबकि सैकड़ों लोग घायल हो चुके हैं। अपराध और पुलिस की कार्यशैली की समीक्षा बैठक में हालही में सीएम ने बिगड़ी यातायात व्यवस्था पर सबसे ज्यादा नाराजगी जताते हुए एडीजी ट्रैफिक पर ऐक्शन लेने को कहा था। इसके बावजूद ट्रैफिक पुलिस पर कोई असर नहीं पड़ा है। जिम्मेदार अब तक हादसों पर लगाम कसने का कोई उपाय नहीं तलाश सके हैं।
दुर्घटनाओं की रोकथाम पर काम करने वाली राष्ट्रीय राज्य मार्ग एवं परिवहन मंत्रालय की रिसर्च विंग की रिपोर्ट में सबसे ज्यादा हादसे रैश ड्राइविंग और रॉन्ग साइड में चलने से हो रहे हैं, जिसे रोकने की जिम्मेदारी पुलिस की है। इस संबंध में एएसपी ट्रैफिक रविशंकर निम ने कहा कि हादसों को रोकने के लिए पीडब्ल्यूडी, नगर निगम, एनएचएआई के साथ मिलकर काम किया जा रहा है। रॉन्ग साइड वाले स्थानों पर ट्रैफिककर्मियों की ड्यूटी लगाई गई है। फोर्स की कमी से कुछ दिक्कत आ रही हैं। इसे देखते हुए उच्चाधिकारियों को पत्र लिख गया है।
गौरतलब है कि 19 नवंबर को डालीगंज पुल पर नगर निगम के ट्रक ने बाइक सवार दो युवकों को कुचल दिया। हादसे में दोनों की मौके पर ही मौत हो गई थी। ऐसे दर्दनाक हादसे राजधानी की सड़कों पर तकरीबन रोज ही हो रहे हैं। वर्ष 2016 तक राजधानी में दुर्घटना बाहुल्य क्षेत्र के रूप में 42 ब्लैक स्पॉट चिह्नित थे। पिछले साल हुए हादसों के आधार पर दोबारा हुए सर्वे में ब्लैक स्पॉट 89 हो गए। इन पॉइंट्स पर बीते पांच साल में 7113 दर्दनाक हादसे हुए और 2892 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। इतना ही नहीं 4452 लोग गंभीर रुप से घायल भी हुए। इसके बावजूद जिम्मेदार हादसों को रोकने का कोई ठोस उपाय नहीं तलाश सके हैं। आलम यह है कि इसी साल अबतक 1389 हादसों में 500 लोगों की मौत हो चुकी है और 875 में ज्यादा अब भी इलाज करवा रहे हैं।