उत्तर प्रदेश

उत्तराखंड में गिरा है यूकेडी का ग्राफ, खिसकते जनाधार के बीच सियासी जमीन तलाश रही है पार्टी

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Uttarakhand Kranti Dal Politics: उत्तराखंड (Uttarakhand) का एक मात्र क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल (Uttarakhand Kranti Dal) भी राज्य में अपनी राजनीतिक जमीन खोता जा रहा है.  42 सालों से राजनीति के अखाड़े में जमा उत्तराखंड क्रांति दल इन दिनों अपने ही राज्य में सियासी जमीन तलाशने को मजबूर है. राज्य गठन से लेकर अब तक यूकेडी राज्य में अपना जनाधार खोता चला गया, यही वजह रही कि 2017 के विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Election) में यूकेडी का एक भी विधायक (MLA) चुनकर विधानसभा तक नहीं पहुंचा पाया.

खो चुकी है यूकेडी की सियासी जमीन 
उत्तराखंड राज्य आंदोलन में अपनी अहम भूमिका निभाने वाला एकमात्र क्षेत्रीय दल यूकेडी राज्य में लगभग अपनी सियासी जमीन खो चुका है. राज्य गठन से लेकर अब तक यूकेडी का उत्तराखंड में लगातार जनाधार गिरता चला गया. प्रदेश की जनता का भरोसा यूकेडी से उठता जा रहा है. 2002 के विधानसभा चुनाव में यूकेडी के चार विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे और उस वक्त यूकेडी को 5.49 फीसदी वोट मिले थे. लेकिन, 2007 के चुनाव में ये खिसकर 3 विधायकों पर आ गया और वोट प्रतिशत घटकर 3.7 फीसदी के लगभग पहुंच गया. 2012 के विधानसभा चुनाव में यूकेडी का जनाधार गिरकर 1.93 फीसदी पर आ गया और एक ही विधायक यूकेडी का जीत पाया. साल दर साल गिरे यूकेडी के ग्राफ से लोगों का भरोसा 2017 में पूरी तरह से खत्म हो गया, इन चुनावों में यूकेडी का एक भी विधायक नहीं जीत पाया और वोट प्रतिशत घटकर 0.7 फीसदी पर पहुंच गया. हालांकि, यूकेडी के नेता इसके पीछे भाजपा और कांग्रेस की रणनीति को मानते हैं कि दोनों दलों ने मिलकर यूकेडी को पूरी तरह से खत्म कर दिया. प्रदेश में क्षेत्रीय दल को धनबल के बदौलत पनपने नहीं दिया गया, इसके साथ ही नेताओं की महत्वाकांक्षा भी इस पर हावी रही. 

ऐसी रही यूकेडी की स्थिति

2002 में यूकेडी के विधायक

काशी सिंह ऐरी- पिथौरागढ़ 
बिपिन चंद्र त्रिपाठी- द्वाराहाट 
नारायण सिंह जंतवाल- नैनीताल 
प्रीतम सिंह पंवार– यमुनोत्री

2007 में यूकेडी के विधायक

दिवाकर भट्ट-देवप्रयाग 
ओम गोपाल रावत- नरेंद्र नगर 
पुष्पेश त्रिपाठी- द्वाराहाट

2012 में यूकेडी के विधायक

प्रीतम सिंह पंवार- यमुनोत्री

इस वजह से नहीं बढ़ पाया जनाधार 
उत्तराखंड में यूकेडी के जनाधार के ना बढ़ने की वजह यूकेडी के खुद के नेताओं की महत्वकांक्षा रही.  2007 में यूकेडी ने भाजपा को समर्थन दिया और यूकेडी कोटे से दिवाकर भट्ट कैबिनेट मंत्री बने. 2012 के चुनावों में भी यूकेडी के एकमात्र विधायक प्रीतम सिंह पंवार ने कांग्रेस को समर्थन दिया और यूकेडी के कोटे से सरकार में मंत्री रहे. खास बात ये रही कि जो भी विधायक सरकारों में मंत्री बने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया. दिवाकर भट्ट को 2012 में पार्टी से निकाला गया और उसके बाद प्रीतम सिंह पंवार को भी पार्टी से निष्कासित कर दिया गया. यही वजह रही कि नेताओं की महत्वकांक्षा और आपसी गुटबाजी की वजह से यूकेडी का जनाधार गिरता पर चला गया, और इस बात को खुद भाजपा और कांग्रेस के नेता भी मानते हैं. 

सियासी जमीन तलाश रही है यूकेडी
उत्तराखंड के निर्माण से लेकर राज्य के हर मुद्दों को उठाने में उत्तराखंड क्रांति दल की अहम भूमिका रही है, लेकिन वक्त के साथ-साथ नेताओं की महत्वकांक्षा बढ़ना और बेहतर लीडरशिप का ना होना यूकेडी के जनाधार खोने की बड़ी वजह है. 20 सालों में जिस पार्टी को सरकार बनाने तक पहुंच जाना था, वे आज अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने को मजबूर है. 

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