उत्तर प्रदेश

रुद्रप्रयाग में हैं मां की तीन शक्ति पीठ, पूजा-अर्चना करने दूर-दूर से आते हैं भक्त

[responsivevoice_button voice="Hindi Female"]

[ad_1]

Shardiya Navratri 2021: शारदीय नवरात्रि को लेकर भक्तों की ओर से मां के मठ-मंदिरों को सजाया जा रहा है. इसके अलावा मठ-मंदिरों के आस-पास की दुकानें भी सजने लगी हैं. दुकानों में मां के त्यौहारी सीजन को लेकर सामान रखा गया है. उन्हें उम्मीद है कि बड़ी संख्या में भक्त मां के दरबार में पहुंचेंगे और उनका व्यवसाय भी चल पड़ेगा.

बता दें कि, कोरोना महामारी का तीर्थाटन पर बुरा असर पड़ा है. इससे लोगों का रोजगार भी प्रभावित हुआ है. गुरुवार से शुरू हो रहे शारदीय नवरात्रों को लेकर भी भक्तों में उत्साह का माहौल है. मां के मठ मंदिरों को फूलों और लड़ियों से सजाया जा रहा है. इसके साथ ही व्यापारी भी अपने प्रतिष्ठानों को सजाने में लगे हैं और मां की पूजा सामग्रियों को रख रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि, कोरोना महामारी के कारण ठप पड़ा व्यवसाय इन शारदीय नवरात्रों में चल पड़ेगा और उनकी आर्थिकी सुधर पाएगी. रुद्रप्रयाग जिले में मां के तीन प्रसिद्ध मठ मंदिर हैं, जहां पूरे नौ दिनों तक भारी संख्या में भक्त उमड़ पड़ते हैं और मां की पूजा-अर्चना व पाठ करते हैं.

कालीमठ मंदिर 
  
मां शक्ति के 108 स्वरुपों में एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ कालीमठ रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है. देवासुर संग्राम से जुड़ी यहां की ऐतिहासिक घटना में माता पार्वती ने रक्तबीज दानव के वध को लेकर कालीशिला में अपना प्राकटय रुप दिया था और कालीमठ में इस दानव का वध कर जमीन के अन्दर समा गई थी. हिमालय में स्थित होने के कारण इस पीठ को गिरिराज पीठ के नाम से भी जाना जाता है और तंत्र साधना का यह सर्वोपरि स्थान माना जाता है. यहां पर मूर्ति पूजा का विधान नहीं है और ना ही यहां देवी की कोई मूर्ति है. साथ ही यहां पर ना ही कुछ ऐसे पद चिहन हैं कि जिन्हें निमित मानकार पूजा की जा सके. मंदिर के गर्भ गृह में स्थित कुण्ड की ही यहां पूजा की जाती है और बलिप्रथा के रुप में प्रसिद्ध इस धाम में अब बलि भी बन्द हो चुकी है और नारियल से ही माता की पूजा की जाती है.

रुद्रप्रयाग-गौरीकुण्ड राष्ट्रीय राजमार्ग के गुप्तकाशी से पहले कालीमठ-कविल्ठा मोटर मार्ग पर करीब दस किमी की दूरी पर यह शक्ति पीठ है, जिसका केदारखण्ड, स्कन्द पुराण, देवी भागवत समेत कई पुराणों में कालीमठ का वर्णन मिलता है. मां काली, मां सरस्वती व मां लक्ष्मी की यहां पर पूजा होती है. मान्यता है कि, यहां पर मां काली ने रक्तबीज नामक दैत्य का वध किया था और धरती के अन्दर समाहित हो गई थी. देवासुर संग्राम के दौरान रक्त बीज से मुक्ति पाने के लिए देवताओं ने मां भगवती की आराधना की थी और तब कालीशिला नामक स्थान पर मां का अवतरण हुआ था. मां ने जब रक्तबीज के अत्याचारों को सुना तो उनका शरीर क्रोध से काला पड़ गया और मां काली का प्रार्दुभाव हुआ.

हरियाली देवी मंदिर 

जनपद रुद्रप्रयाग के रानीगढ़ पट्टी के जसोली गांव स्थित सिद्धपीठ हरियाली देवी मंदिर में भी शारदीय नवरात्रों पर देश के विभिन्न कोने से भक्त पहुंचते हैं. मंदिर के पुजारी और स्थानीय भक्तों की ओर से मंदिर को सजाया गया है. हरियाली देवी योगमाया का बालस्वरूप है, जो कि शुद्ध स्वरूप में वैष्णवी हैं. यह देवी बच्छणस्यूं, चलणस्यूं, कंडारस्यूं व रानीगढ़ पट्टी सहित चार पट्टियों की कुलदेवी हैं. हरियाल पर्वत मां हरियाली देवी का मूल उत्पत्ति स्थान है, जिसको देवी का मायका माना जाता है. जिसकी दूरी जसोली गांव से दस किमी है तथा समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 9500 फीट है. मूल मायका होने के कारण साल में एक बार धन तेरस दीपावली पर्व पर मां हरियाली की डोली को हरियाल पर्वत ले जाने की पौराणिक परंपरा है, जिसको हरियाली देवी कांठा यात्रा का स्वरूप दिया गया है.

मठियाणा देवी मंदिर 

उत्तराखंड को देवभूमि यूं ही नहीं कहा जाता है. यहां कदम कदम पर बड़े चमत्कार और रहस्य देखने को मिलेंगे. रुद्रप्रयाग जनपद स्थित मां मठियाणा देवी के मंदिर का इतिहास भी काफी रोचक है. प्राचीन लोक कथाओं के अनुसार मां मठियाणा सिरवाड़ी गढ़ के राजवंशों की धियान थी. जिसका विवाह भोट यानि तिब्बत के राजकुमार से हुआ था. सौतेली मां द्वारा ढाह वश के कुछ लोगों की मदद से उसके पति कि हत्या कर दी जाती है. पति के मरने की आहत सहजा तिलवाड़ा सूरज प्रयाग में सती होने जाती है. तब यहीं से मां प्रकट होती हैं. देवी सिरवादी गढ़ में पहुंचकर दोषियों को दंड देती हैं और जन कल्याण के निमित यहीं वास लेती हैं. हर तीसरे साल सहजा मां के जागर लगते हैं. जिसमें देवी की गाथा का बखान होता है, यहां देवी का उग्र रूप है, बाद में यही रूप सौम्य अवस्था में मठियाणा खाल में स्थान लेती है. यहीं से मां मठियाणा का नाम जगत प्रसिद्ध होता है. मां के दर्शन कर पुण्य लाभ के लिए यहां हर वक्त खासकर नवरात्र पर भक्तों का जमावड़ा रहता है. मठियाणा देवी माता शक्ति का काली रूप है तथा ये स्थान देवी का सिद्धि-पीठ भी है. यह भी कहा जाता है कि माता के अग्नि में सती होने पर भगवान शिव जब उनके शरीर को लेकर भटक रहे थे, तब माता सती का शरीर का एक भाग यहां गिरा, बाद में इस भाग माता मठियाणा देवी कहा गया.

ये भी पढ़ें.

Lakhimpur News: पंजाब और सोनीपत से सैकड़ों किसान लखीमपुर जाने को तैयार, हाईवे पर पुलिस के साथ सीआरपीएफ तैनात

[ad_2]

Source link

Aamawaaz

Aam Awaaz News Media Group has been known for its unbiased, fearless and responsible Hindi journalism since 2018. The proud journey since 3 years has been full of challenges, success, milestones, and love of readers. Above all, we are honored to be the voice of society from several years. Because of our firm belief in integrity and honesty, along with people oriented journalism, it has been possible to serve news & views almost every day since 2018.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button