उत्तर प्रदेश

यशपाल आर्य के कांग्रेस में जाने के बाद दलित वोट बैंक को लेकर सियासत तेज, जानें- समीकरण

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Uttarakhand Assembly Election 2022: उत्तराखंड में यशपाल आर्य के कांग्रेस में जाने के बाद दलित वोट बैंक को लेकर राजनीति तेज हो गई है. यशपाल आर्य के जरिए कांग्रेस दलित वोट बैंक पर सेंधमारी करने का प्लान तैयार कर रही है, तो वहीं भाजपा भी उत्तराखंड के दलित वोट बैंक पर नजरें गड़ाए बैठी है. उधर आम आदमी पार्टी का भी दलित प्रेम छलकने लगा है. यशपाल आर्य के कांग्रेस में जाने के बाद विधानसभा चुनावों में इसका कितना नफा-नुकसान होगा यह तो वक्त बताएगा, फिलहाल इस पर राजनीतिक चर्चाएं होने लगी हैं.

उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं मंडल  में 19 से 22 सीटें ऐसी हैं, जहां दलित वोट मायने रखता है. कांग्रेस के पास अब तक दलित चेहरे के नाम पर प्रदीप टम्टा ही थे, लेकिन अब यशपाल के आने से कांग्रेस दलित वोटों में बड़ी सेंधमारी कर सकती है. आर्य के कांग्रेस में शामिल होने के बाद भाजपा की टेंशन बढ़ गई है, तो कांग्रेस उत्साह में है कि आर्य का कांग्रेस में आना चुनावों में फायदेमंद होगा. उत्तराखंड में दलित आबादी 18.50 फीसदी से अधिक है, 2011 की जनगणना के मुताबिक जिसकी संख्या तकरीबन 19 लाख के करीब है. उत्तराखंड के 11 पर्वतीय जिलों में दलित आबादी 10.15 लाख के करीब है जबकि मैदानी तीन जिले देहरादून, हरिद्वार और उधमसिंह नगर में ये आबादी लगभग 9 लाख है. अकेले हरिद्वार में दलित वर्ग चार लाख से ज्यादा निवास करता है. यही वजह है कि चुनावों से पहले सियासी दलों में दलित वोट बैंक को लेकर राजनीति तेज हो गई है.

दलित वोट बैंक को लेकर राजनीति तेज

2017 के विधानसभा चुनाव से पहले हुए तीन विधानसभा चुनाव में दलित वोट बैंक पर बसपा ने भी सेंध लगाई. इस बार भी बसपा उत्तराखंड में दलित और मुस्लिम समीकरण पर दांव खेल रही है, तो आम आदमी पार्टी दिल्ली की तर्ज पर मुफ्त घोषणाएं करके अपना सियासी आधार बढ़ाने में जुटी हैं. साथ ही दलितों को साधने के लिए दिल्ली के दलित विधायक लगा रखे हैं. आप प्रभारी दिनेश मोहनिया का कहना है कि भाजपा और कांग्रेस को दलितों से इतना प्रेम है तो किसी दलित को ही सीएम चेहरा क्यों नहीं घोषित करते.

चुनाव से पहले उत्तराखंड में दलित वोट बैंक को लेकर राजनीति हो रही है. राजनीतिक पार्टियां अपने नफा-नुकसान के आधार पर आकलन कर रही हैं कि दलित वोट बैंक को किस तरह से लुभाया जाए. उधर यशपाल आर्य की कांग्रेस वापसी ने दलित वोट बैंक की राजनीति को और हवा दे दी है. दलित वोट बैंक के राजनीतिक  समीकरण 2022 में किस करवट बैठेंगे ये तो वक्त तय करेगा.

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