उत्तर प्रदेश

अंधविश्‍वास की खूनी परम्‍परा, देवी मां को बुजुर्गों से लेकर नवजातों तक के रक्‍त की बलि

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Blood Offers to Goddess in Gorakhpur: मां दुर्गा की भक्ति और सदियों से चली आ रही अनोखी परंपराओं के बारे में तो अनेक किस्से सुनने को मिलते हैं. आज के आधुनिक युग में भी आस्था पर अन्धविश्वास इस कदर हावी है, कि लोगों को नवजात बच्चों के जान तक की परवाह नहीं है. वैश्विक महामारी के समय में ऐसी परम्‍पराएं सोचने पर भी मजबूर करती हैं. गोरखपुर के बांसगांव के श्रीनेत वंश के राजपूतों के अंधभक्ति की ये परम्‍परा सदियों से चली आ रही है. गोरखपुर के बांसगांव का दुर्गा मंदिर. जहां श्रीनेत (राजपूत) वंश के नवजात से लेकर बुजुर्ग तक मां दुर्गा को अपने शरीर के रक्त को बेलपत्र पर बलि के रूप में अर्पित करते हैं. यह अनोखी परंपरा ऐसा 300 साल से भी अधिक समय से चली आ रही है.

रक्त चढ़ाने की अनोखी परंपरा 

गोरखपुर के बांसगांव में श्रीनेत वंश के लोगों द्वारा शारदीय नवरात्र में नवमी के दिन मां दुर्गा के चरणों में रक्‍त चढाने की अनोखी परंपरा है. देश-विदेश में रहने वाले श्रीनेत वंश के लोग नवमी के दिन यहां पर आते हैं और मां दुर्गा के चरणों में रक्‍त अर्पित करते हैं. सबसे खास बात ये है कि, एक दिन के नवजात से लेकर जवान और बुजुर्ग भी इस परंपरा का निर्वहन करते हैं. विवाहित युवकों के शरीर से नौ जगहों, अविवाहितों, बच्चों और नवजात के एक हिस्से से चीरा लगाकर रक्‍त बेलपत्र पर मां के चरणों में अर्पित किया जाता है.

लोगों की आस्था, नहीं पड़ता कटे का निशान 

एक दशक पहले एक ही अस्तुरे से सभी लोगों को चीरा लगाया जाता रहा है. लेकिन, अब अलग-अलग ब्लेड से श्रीनेत वंश के लोग चीरा लगवाते हैं. इसके बावजूद वह धूप-बत्ती और अगरबत्ती से निकली राख को अपने शरीर के कटी हुई जगह पर लगा लेते हैं. जिससे टिटनेस और कई अन्य संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. लेकिन, श्रीनेत वंश के लोगों का मानना है कि यह मां दुर्गा की कृपा ही है कि, सदियों से इस परंपरा का निर्वहन कर रहे लोगों को न तो कभी टिटनेस हुआ और न ही किसी प्रकार का संक्रमण. इसके साथ ही कभी भी किसी को घाव भरने के बाद भी कटे का निशान नहीं पड़ा.

विदेशों से भी आते हैं लोग

शारदीय नवरात्र के दिन क्षत्रीय वंश के लोग यहां देश ही नहीं विदेश से भी आते हैं. यहां के लोग मानते हैं कि मां को रक्‍त चढाने से मां खुश होती है और उनका परिवार निरोग और खुशहाल होता है. पिछले कई सौ सालों से बांस गांव में अंधविश्‍वास की इस परम्‍परा का निर्वाह आज की युवा पीढी भी उसी श्रद्धा से करती है, जैसा उनके पुरखे किया करते थे. और सभी का मानना है कि क्ष‍त्रीयों द्वारा लहू चढाने पर मां का आशीर्वाद उन पर बना रहता है.

अंधविश्वास की परंपरा 

वैश्विक महामारी के काल में इस रक्‍त बलि से न जाने कितने मासूम को बीमारी का शिकार होने का खतरा बना हुआ है. तो वहीं, वैश्विक महामारी में कोरोना की गाइडलाइन का पालन नहीं करने से भी महामारी फैलने का डर है. लेकिन कुलदेवी नाराज न हो जाएं, इसलिए कोई इसका विरोध भी नहीं करता है. हर साल बांसगांव के इस मंदिर में आस्‍था के नाम पर अंधविश्‍वास की ये परम्‍परा चली आ रही है. दर्जनों नवजातों के साथ सैकडों बच्‍चों के रक्‍त को बेलपत्र पर बलि स्‍वरूप दुर्गा मां को अर्पित किया जाता है. यहां के क्षत्रियों की आस्‍था पर अंधविश्‍वास इतना हावी है कि इन मासूमों की चीख पुकार भी मंदिर की घंटियों में दबकर दम तोड़ देती हैं.

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