उत्तर प्रदेश

UP Election 2022: भूपेश बघेल और चरणजीत सिंह चन्नी के जरिए यूपी में क्या साधना चाहती है कांग्रेस

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तीन अक्तूबर को हुए लखीमपुर खीरी कांड के बाद उत्तर प्रदेश राजनीति (UP Assembly Election 2022) गरमा गई थी. विपक्ष के सारे नेता लखीमपुर के लिए निकल पड़े. इनमें छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) और पंजाब ( Punjab) के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) भी शामिल थे. आइए जानते हैं कि छत्तीसगढ़ और पंजाब के मुख्यमंत्रियों की उत्तर प्रदेश में इतना सक्रिय होने के पीछे राजनीतिक वजह क्या है. कांग्रेस इसके जरिए चुनावी हित साधना चाहती है. उसे लगता है कि इन नेताओं की सक्रियता से उसे उत्तर प्रदेश में इनकी जाति का वोट मिलेगा.

बघेल और चन्नी का उत्तर प्रदेश दौरा पहली नजर में बेमतलब लगता है. लेकिन जब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के नजरिए से इसे देखते हैं तो कांग्रेस की रणनीति समझ में आती है. दरअसल उत्तर प्रदेश के चुनावों में जाति की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है. वैसे में कुर्मी जाति के भूपेश बघेल और दलित समाज से आने वाले चरणजीत सिंह चन्नी उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. 

उत्तर प्रदेश में कितने हैं कुर्मी मतदाता? 

कुर्मियों को उत्तर प्रदेश में यादवों के बाद ओबीसी का सबसे बड़ा मतदाता वर्ग माना जाता है. कुर्मियों की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि सत्तारूढ़ बीजेपी ने कुर्मियों की पार्टी माने जाने वाले अपना दल (सोनेलाल) से समझौता कर रखा है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह भी कुर्मी जाति से ही आते हैं. बीजेपी ने कुर्मी वोटों को साधने के लिए ही पंकज चौधरी को केंद्रीय मंत्रीमंडल में जगह भी दी है. यूपी के चुनाव में जाति की अहमियत को इस बात से समझ सकते हैं कि 6 बार से बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीत रहे पंकज चौधरी को पहली बार मंत्री बनाया गया है. वहीं कुर्मी वोटों को साधने में सपा भी पीछे नहीं रहती है. उसके प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल भी कुर्मी जाति के हैं. कुर्मी जाति के कद्दावर नेता बेनी प्रसाद वर्मा सपा के संस्थापकों में से एक थे. 

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उत्तर प्रदेश की करीब 50 विधानसभा सीटों पर कुर्मी जाति की भूमिका निर्णायक है. मिर्जापुर, सोनभद्र, कौशांबी, इलाहाबाद, प्रतापगढ़, संत कबीर नगर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, श्रावस्ती, बहराइच, बाराबंकी, कानपुर, अकबरपुर, उन्नाव, जालौन, एटा, फतेहपुर, बरेली, सीतापुर और लखीमपुर खीरी जैसे जिलों में कुर्मी जाति की अच्छी खासी आबादी है. लखीमपुर खीरी लोकसभा सीट से अबतक 10 से अधिक सांसद तो कुर्मी जाति से ही हुए हैं. इस समय उत्तर प्रदेश विधानसभा में 26 कुर्मी विधायक हैं. 

कांग्रेस ने भूपेश बघेल को उत्तर प्रदेश में पर्यवेक्षक बनाया है. उसे उम्मीद है कि अगर बघेल यूपी में सक्रिय रहते हैं और चुनाव प्रचार करते हैं, तो कुर्मी मतदाता उसकी ओर आ सकते हैं. इसलिए आने वाले दिनों में भूपेश बघेल उत्तर प्रदेश में और सक्रिय नजर आ सकते हैं. वो कांग्रेस के स्टार प्रचारक भी होंगे. 

क्या चरणजीत सिंह चन्नी दिला पाएंगे दलित वोट?

इसी तरह उत्तर प्रदेश में दलित वोट 20 फीसदी से अधिक है. इसे देखते हुए कांग्रेस ने पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को उत्तर प्रदेश में सक्रिय किया. कांग्रेस चन्नी के जरिए दलित वोटों को अपने पाले में करना चाहती है. बसपा के गठन से पहले उत्तर प्रदेश के दलित कांग्रेस को एकमुश्त वोट करते थे. लेकिन बसपा ने कांग्रेस के इस वोट बैंक को अपने पाले में कर लिया. कांग्रेस का एक वोट बैंक ब्राह्मण पहले भी बीजेपी के पाले में जा चुका है. दलित वोट पाने के लिए कांग्रेस बहुत पहले से सक्रिय है. राहुल गांधी पहले दलितों के घर जाकर खाना खाते थे और उनके घर रुकते थे. लेकिन इसका कांग्रेस को कोई फायदा उत्तर प्रदेश के चुनावों में नहीं मिला. उत्तर प्रदेश में चेहरा बनाए जाने के बाद अब प्रियंका गांधी दलितों को लुभाने में लगी हैं. कांग्रेस को लगता है कि इसमें चरणजीत सिंह चन्नी मदद कर सकते हैं. कांग्रेस की इन कोशिश का कितना फायदा उसे मिलता है, यह विधानसभा चुनाव के नतीजे ही बताएंगे. 

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