उत्तर प्रदेश

राम के अस्तित्‍व पर सवाल उठाने वालों को चुनाव से पहले सद्बुद्धि आ रही है: स्‍वामी गोविंद देव

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श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष स्‍वामी गोविंद देव गिरी शुक्रवार को गोरखपुर के गीता प्रेस पहुंचे. इस मौके पर उन्होंने कहा कि भगवान श्रीराम के मंदिर की क्या बात कहें. भगवान राम ऐतिहासिक व्‍यक्तित्‍व ही नहीं हैं, बल्कि काल्‍पनिक पात्र हैं. जो राम सेतु है, वह उन्होंने बनाया ही नहीं है. यहीं पर भगवान का जन्‍म हुआ, इसका क्या प्रमाण है. ऐसे पूछने वाले बुद्धि से भ्रमित और भ्रमित करने वाले लोग हमारे देश में बहुत से हैं. स्वयं भगवान श्रीराम के रहते उनका विरोध हो रहा था.

उन्होंने कहा, “कृष्‍ण भगवान के समक्ष जब उनका विरोध हो रहा था तो इस प्रकार का विरोध करने वालों की आसुरी परंपरा भी समाज में निरंतर रहती है. ये गीता का सिद्धांत ज्ञान में ले करके उनका अनदेखा करके उनके ऊपर दोषारोपण भी न करते हुए हमें श्रीभगवान से ये प्रार्थना करते हुए के वे उन्‍हें भी सद्बुद्धि दे दें. हमें अपना काम करते रहना है. हम ये ध्‍यान देने लगेंगे कि वे लोग क्या सोचते और कहते हैं, तो हमारे काम का चित्‍त हट जाएगा. जो हम हटाना नहीं चाहते हैं.

गीता प्रेस के बारे में कही ये बात 

गोविन्‍द देव गिरी ने कहा कि गीता प्रेस उन्होंने 40 वर्ष पहले देखा था. अंतर्मन से बचपन से देख रहा हूं. गीता प्रेस के लिए मेरे मन में जो आदर है, वो दिन-प्रतिदिन लगातार प्रतिवर्ष बढ़ता ही गया है. कभी-कभी वे सोचते हैं कि गीता प्रेस और संघ दो संस्‍थाएं नहीं होती, तो हमारा राष्‍ट्रीय विचार, संस्‍कृति, हिन्‍दुत्‍व की अवधारणा ये सब सदा के लिए बाधित हो जाती. इसलिए अत्‍यंत बड़ा क्रांतिकारी काम सेठजी और पोद्दार जी महाराज ने किया है. इस काम की तुलना किसी भी काम के साथ हो नहीं सकती है. इतना उन्होंने इस देश और समाज को अत्‍यंत पवित्रतापूर्वक दे दिया है. गीता प्रेस ‘प्रेस’ नहीं है. जहां प्रेस का व्‍यावसायिक कार्य चलता है. गीता प्रेस नाम उन्‍होंने दिया है. उपयोग उसका हम वैसा ही करेंगे. लेकिन मेरी दृष्टि में तीर्थ है. कुछ तीर्थ जलमय होते हैं. कुछ तीर्थ वनमय होते हैं. कुछ तीर्थ पर्वतमय होते हैं. ये तीर्थ वांग्‍मय तीर्थ है.

हमारे धर्म और संस्‍कृति का यहां पर यथार्थ रूप देखने को मिलता है. गत शतक में हमारी पूरी इन तीन-चार पीढि़यों को संस्‍कृति का जो प्रकाश मिला है, वो केवल गीताप्रेस से मिला है. ऐसा नहीं कि अन्‍यन्‍न लोगों ने अपने क्षेत्र में काम नहीं किए. उन्‍होंने भी काम किए. वे सब भी आदरणीय हैं. लेकिन, सभी के अपने सम्‍प्रदाय हैं. उन्‍होंने अपने सम्‍प्रदाय और साम्‍प्रदायिक वांग्‍मय की सुरक्षा की. यह करना भी बहुत बड़ा कार्य है. लेकिन गीता प्रेस ने सभी सम्‍प्रदायों के वांग्‍मय की रक्षा कर दी. ये सबसे बड़ी बात है. उन्होंने कहा कि नए समय की चुनौतियों का हमें सामना करना होगा, तो वैज्ञानिकता का आश्रय लेना होगा. गीता प्रेस ने वो आश्रय लेकर गीता प्रेस की पुस्‍तकों को जो कलेवर दिया है, जिस प्रकार का वातावरण निर्माण किया है, वो अभिनंदनीय और आदरणीय है.

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