उत्तर प्रदेश

गोंड जाति के प्रमाण पत्र जारी करने में अब नहीं चलेगी बहानेबाजी, अधिकारियों की होगी जवाबदेही तय

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गोंड जाति के प्रमाणपत्र जारी करने के लिए बहानेबाजी करने वाले राजस्वकर्मियों की अब खैर नहीं होगी. प्रदेश सरकार ने शासनादेश के हवाले से स्पष्ट किया है कि बिना किसी ठोस कारण के प्रमाणपत्र का आवेदन रद्द करने पर संबंधित अधिकारियों और कर्मचारियों की जवाबदेही तय होगी.

गौरतलब है कि अभी तक राजस्वकर्मी 1950 में जारी राष्ट्रपति के आदेश संबंधी दस्तावेज मांगकर अथवा अन्य बहाने बनाकर जाति प्रमाणपत्र जारी करने से पल्ला झाड़ रहे थे.

गोंड जाति को प्रदेश के 13 जिलों में अनुसूचित जनजाति 62 जिलों में अनुसूचित जाति का दर्जा मिला है

बता दें कि गोंड जाति को प्रदेश के 13 जिलों में अनुसूचित जनजाति और 62 जिलों में अनुसूचित जाति का दर्जा प्राप्त है. कहीं भी 6 महीने के अंदर बने जाति प्रमाणपत्र मांगने की जरूरत नहीं है क्योंकि जाति जन्मजात होती है. हालांकि, कई जगह से ऐसी शिकायतें आ रही थीं कि अक्सर लेखपाल, राजस्व निरीक्षक, नायब तहसीलदार व तहसीलदार मनगढ़ंत रिपोर्ट के आधार पर जाति प्रमाणपत्र के आवेदन पत्रों को निरस्त कर रहे हैं. आवेदकों की तरफ से पेश किए गए स्पष्टीकरण, अभिलेखीय साक्ष्य और नजीरों पर भी विचार नहीं किया जा रहा है.

राजस्वकर्मी  वर्ष 1950 में जारी किए गए राष्ट्रपति के आदेश संबंधी दस्तावेज मांग रहे हैं

वहीं  जानकारी लेने पर पता चला कि राजस्वकर्मी आवेदकों से वर्ष 1950 में जारी किए गए राष्ट्रपति के आदेश संबंधी दस्तावेज मांग रहे हैं. आवेदकों से पूछा जा रहा है कि कहीं वह कैमूर रेंज की पहाड़ियों से विस्थापित होकर तो नहीं आए हैं या फिर जाति सही नहीं है, साक्ष्य उपलब्ध या स्पष्ट नहीं हैं, ऊंच-नीच, भाषा-बोली, रहन-सहन, खान-पान, वर्तनी-अनुस्वार, विभेद, जीविकोपार्जन के परंपरागत पेशे को आधार बनाकर अथवा भू राजस्व अभिलेख 1324, 1354, 1356 व 1359 फसली वर्ष में नाम दर्ज न होने के बहाने बनाकर आवेदन रद्द कर दिए जा रहे हैं.

जाति प्रमाणपत्र की मांग गलत है

शासनादेश में यह भी कहा गया है कि शैक्षणिक संस्थान और नियुक्ति प्राधिकारी गोंड अनुसूचित जनजाति व अनुसूचित जाति के व्यक्तियों से 6 माह के अंदर बने जाति प्रमाणपत्रों की मांग कर रहे हैं जबकि यह पहले ही साफ किया जा चुका है कि जाति प्रमाणपत्र की मांग गलत है क्योंकि किसी भी व्यक्ति की जाति जन्मजात होती है. ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों की जवाबदेही तय करते हुए दोबारा शिकायत मिलने पर कार्यवाही की चेतावनी भी दी गई है.

शासनादेश में प्रमाणपत्र जारी करने के लिए आधार को बताया गया गलत

शासनादेश में प्रमाणपत्र जारी करने के लिए आधार बताते हुए कहा गया है कि साक्ष्य के तौर पर पेश प्रमाणित भूराजस्व अभिलेखों 1323, 1324, 1354, 1356 या 1359 में से किसी एक फसली वर्ष में गोंड दर्ज होने पर उसकी पुष्टि अभिलेखागार के मूल रिकॉर्ड से करने के बाद प्रमाणपत्र जारी किया जाए. आवेदक के भूमिहीन होने की दशा में परिवार रजिस्टर की नकल, शैक्षणिक संस्थाओं व विद्यालयों की टीसी और जांच के लिए अपनाई जा रही प्रचलित प्रक्रिया के साथ नजदीकी गोंड परिवार से भी जांच पड़ताल कर नियमानुसार जाति प्रमाणपत्र जारी किए जाएं.

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