उत्तर प्रदेश

यूपी चुनाव में वोट शेयर बढ़ाने के लिए बीजेपी ने बनाया ये प्लान, इस पर है नजर

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UP Assembly Election 2022: 2022 के विधानसभा चुनाव में जुटी बीजेपी हर वो रणनीति अपना रही है, जिससे उसका वोट प्रतिशत इस बार बढ़ जाए. चर्चा इस बात की है कि किसान आंदोलन के चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट बिरादरी बीजेपी से नाराज हैं. पार्टी को भी शायद इस बात का अंदेशा है इसीलिए बीजेपी इस कोशिश में जुटी है कि अगर उसे जाट वोट बैंक का नुकसान हो तो उसकी भरपाई वह जाटव वोट बैंक को अपने साथ लाकर कर ले, बीजेपी की रणनीति में इसकी झलक भी साफ तौर पर दिखती है. आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 300 प्लस सीटें जीतने का नारा दिया है, पार्टी की कोशिश है कि 2017 में जो जीत उसे मिली थी, उसे बरकरार रखा जाए और इसके लिए लगातार नई रणनीति पर काम चल रहा है. लगातार यह कहा जा रहा है कि किसान आंदोलन के चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों के साथ-साथ जाट बीजेपी से नाराज है और 2017 में जिस तरीके से जाट समुदाय ने बीजेपी के पक्ष में जमकर वोटिंग की थी, इस बार उस वोट बैंक के खिसकने की चर्चा जोरों पर है. 

बीजेपी को भी इस बात का शायद अंदाजा है और इसीलिए बीजेपी लगातार इस स्ट्रेटेजी पर काम कर रही है कि अगर जाट वोट बैंक उससे छिटकता है तो उस वोट बैंक की कमी को उसे कहां से पूरा करना है. इसके लिए पार्टी की पूरी व्यू रचना तैयार है. इस खास रचना में जाटव बीजेपी के लिए काफी महत्वपूर्ण हो गया है. यही वजह है कि बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में एक बड़े जाटव चेहरे के तौर पर उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को प्रदेश के सभी क्षेत्रों में भेजा इतना ही नहीं जहां भी बेबी रानी मौर्य के पोस्टर लगाए गए हार्डिंग लगाई गई उसमें उनके नाम के आगे जाटव लिखा गया यानी जाटव समाज को यह बताने की कोशिश की गई कि बेबी रानी मौर्य जाटव समाज से आती हैं और वह केवल मौर्य टाइटल लगाती हैं.

वोट बैंक की कमी दूर कर सकता है जाटव वोट

बीजेपी की यह रणनीति अपने आप में बताती है कि कैसे इस बार उसकी कोशिश है कि बसपा के कोर वोट बैंक जाटव को अपने साथ लाया जाए. अब आइए, आपको बताते हैं कि आखिर किस तरीके से जाट वोट बैंक की कमी को यह जाटव वोट कम कर सकता है. दरअसल उत्तर प्रदेश में जाट वोट बैंक तकरीबन 3 से 3.5 फीसदी के आसपास है और इसमें भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या सबसे अधिक है. वहीं, अगर जाटव वोट बैंक की बात करें तो अनुसूचित जाति के वोट बैंक में सबसे बड़ा प्रतिशत जाटव समाज का है जो एससी के कुल वोट बैंक का लगभग 66 फीसदी है.  इस तरह से अगर देखें तो अपने आप में जाटव वोट बैंक तकरीबन 13 से 14 फ़ीसदी के आसपास है और इसीलिए बीजेपी अब जाट वोट बैंक की भरपाई जाटव वोट बैंक के सहारे करने की रणनीति में जुटी है . इसकी एक झलक बीजेपी में इन दिनों जो जॉइनिंग हो रही है, उसमें भी देखने को मिल रही है. बीते 1 महीने के भीतर लगभग 77 नेताओं ने बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की है. इसमें कुछ वर्तमान विधायक हैं कुछ वर्तमान एमएलसी हैं कुछ पूर्व विधायक हैं, जिला पंचायत से जुड़े हुए लोग हैं, और इन 77 नेताओं में तकरीबन 13 अनुसूचित जाति के नेता शामिल है, जिनमें 10 जाटव समाज से आते हैं इनमें अगर कुछ प्रमुख नामों की बात करें तो तीन बार विधायक रहे मायावती के करीबी मदन गौतम, बसपा में रहे जगदेव कुरील, मनोहर सिंह जाटव, हेम सिंह आर्य जाटव, सपा सरकार में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री रही किरण जाटव शामिल हैं.

लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने कही ये बात 

यूपी में बीजेपी की जॉइनिंग कमेटी के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी का साफ तौर पर कहना है कि बीजेपी किसी खास जाति या समाज के लोगों को ही नहीं ला रही, बल्कि उन लोगों को पार्टी में शामिल कराया जा रहा है जिनका अपने क्षेत्र में प्रभाव है. बीजेपी में इन दिनों जो जॉइनिंग हो रही है उसमें क्षेत्रीय समीकरणों के साथ-साथ जातीय समीकरणों पर भी खास ध्यान दिया जा रहा है यही वजह है कि अब तक जो जॉइनिंग हुई है अलग-अलग दलों के जो नेता आए हैं उसमें इस बात का भी ख्याल रखा जा रहा है कि हर जाति समुदाय के लोग बीजेपी ज्वाइन करें हाल के दिनों में हुई जॉइनिंग में 7 ओबीसी वर्ग से आने वाले नेताओं ने बीजेपी ज्वाइन की है. जबकि ब्राह्मण समाज से आने वाले 7 नेताओं ने बीजेपी ज्वाइन की है. वही क्षत्रिय समाज से आने वाले 10 नेताओं ने बीजेपी अब तक ज्वाइन की है. दलित समाज से आने वाले 13 नेताओं ने बीजेपी ज्वाइन की है . 

जैन समाज के एक नेता ने बीजेपी ज्वाइन की है. मुस्लिम समाज से आने वाले दो नेताओं ने बीजेपी ज्वाइन की है. वहीं अनुसूचित जनजाति से आने वाले एक नेता और वैश्य समुदाय से आने वाली तीन नेताओं ने बीजेपी ज्वाइन की है. जबकि त्यागी समुदाय से आने वाले दो नेताओं ने बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की है. यूपी में हमेशा से चुनाव जीतने के लिए जाति के फार्मूला को हिट माना जाता रहा है और इसीलिए बीजेपी भी इसी फार्मूले के सहारे जीत का ताना-बाना बुन रही है. 

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