उत्तर प्रदेश

राजनीति के बाहुबली: पिता बनाना चाहते थे आईएएस, माफिया से माननीय बने यूपी के इस बाहुबली की कहानी

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उत्तर प्रदेश के बाहुबलियों की बात होगी तो वाराणसी के रहने वाले बृजेश सिंह का नाम जरूर लिया जाएगा. वही बृजेश सिंह जो मऊ के विधायक मुख्तार अंसारी से अपनी अदावत के लिए मशहूर हैं. पिता की हत्या का बदला लेने से शुरू हुआ बृजेश सिंह का आपराधिक करियर दिन-रात बढ़ता गया. बृजेश सिंह का साम्राज्य उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बिहार, झारखंड, ओडिशा से लेकर महाराष्ट्र तक फैला है. 

पिता की हत्या का बदला

बृजेश सिंह वाराणसी के धरहरा गांव के रहने वाले हैं. उनके पिता रविंद्र सिंह की इच्छा थी की बृजेश पढ़-लिखकर आईएएस बने. इसलिए उनका दाखिला बनारस के उदय प्रताप सिंह कॉलेज में कराया गया था. बृजेश ने 12वीं की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की थी. लेकिन 27 अगस्त 1984 को बृजेश के पिता की हत्या कर दी गई. इसके दो साल बाद ही इस हत्याकांड के आरोपियों की भी हत्या हो गई. पहली हत्या मुख्य आरोपी हरिहर सिंह की 27 मई 1985 को हुई. इसके बाद 9 अप्रैल 1986 को सिकरौरा गांव में एक साथ 5 लोगों की गोलियां बरसाकर हत्या कर दी गई थी. मारे गए लोगों पर बृजेश की पिता की हत्या में शामिल होने का आरोप था. इस मामले में बृजेश की गिरफ्तारी भी हुई. लेकिन वह पुलिस हिरासत से फरार हो गए. उनकी यह फरारी करीब 22 साल तक चली. 

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पुलिस हिरासत से फरार होने के बाद बृजेश देखते ही देखते माफिया बन बैठे. बाद में मिले राजनीतिक संरक्षण की वजह से बृजेश सिंह के परिवार ने राजनीति की दुनिया में कदम रखा. वाराणसी-चंदौली-भदोही एमएलसी सीट पर सबसे पहले उनके भाई उदयभान सिंह, फिर उनकी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह और बाद में 2016 में बृजेश खुद चुने गए. इस तरह बृजेश सिंह माफिया से माननीय में कनवर्ट हो गए. उनके भतीजे सुशील सिंह चंदौली की सैयदराजा सीट से बीजेपी के टिकट पर विधायक हैं.  

कोयले का काला कारोबार

एक समय ऐसा था कि एशिया की सबसे बड़ी चंदासी की कोयला मंडी के कारोबार में बृजेश सिंह की तूती बोलती थी. इसके साथ रेलवे, पीडब्ल्यूडी और बीएसएनएल के ठेकों में भी उनका तगड़ा दखल था. ठेकों का उनका कारोबार महाराष्ट्र, ओडिशा, झारखंड, बिहार तक फैला है. कहा तो यहां तक जाता है कि बृजेश के दाउद इब्राहिम से भी संबंध थे. बृजेश सिंह का नाम मुंबई के जेजे अस्पताल में सितंबर 1992 में हुई 3 हत्याओं में आया था. इस मामले में बृजेश पर टाडा की धाराओं में मुकदमा भी चला. लेकिन सबूतों के अभाव में अदालत ने उन्हें 2008 में बरी कर दिया. ऐसा तब हुआ जब इस हत्याकांड में मुंबई पुलिस के दो कांस्टेबल भी मारे गए थे.  

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इतना बड़ा माफिया होने के बाद बृजेश सिंह अपनी पहचान को लेकर हमेशा सतर्क रहते थे. इस वजह से उत्तर प्रदेश पुलिस के पास उनकी कोई फोटो तक नहीं थी. इससे पुलिस को उनकी गिरफ्तारी में दिक्कत आई. उत्तर प्रदेश पुलिस ने बृजेश सिंह की गिरफ्तारी पर 5 लाख रुपये का इनाम घोषित कर रखा था. दिल्ली पुलिस की एक टीम ने बृजेश सिंह को जनवरी 2008 में ओडिशा के भुवनेश्वर से गिरफ्तार किया था. बृजेश की गिरफ्तारी के बाद दिल्ली पुलिस ने जो कहानी सुनाई सहसा उस पर किसी को विश्वास नहीं हुआ. लोगों ने इस आत्मसमर्पण के तौर पर लिया. 

कितने मामले दर्ज हैं बृजेश सिंह पर

बृजेश सिंह पर 30 से अधिक मामले दर्ज हैं. इनमें आतंकवादियों पर लगाए जाने वाले मकोका और टाडा के अलावा हत्या, अपहरण, हत्या के प्रयास, हत्या की साजिश रचने, दंगा भड़काने, वसूली और धोखाधड़ी से जमीन हड़पने तक के आरोप शामिल हैं. लेकिन इनमें से अधिकांश मामलों का वही हाल हुआ, माफियों से जुड़े मामलों में होता है. गवाह मुकर गए या सबूत ही नहीं मिला. इसका परिणाम यह हुआ बृजेश सिंह अधिकांश मामलों से बरी हो गए. उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य बृजेश सिंह आजकल वाराणसी जेल में बंद हैं. 

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