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कुर्सी बचाने के लिए अपनी ही चिट्ठी के दांव में उलझे इमरान खान, पाकिस्तान के लिए बने फजीहत

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Pakistan Latest Updates: पाकिस्तान के पीएम इमरान खान इस वक्त अपनी कुर्सी बचाने का हर जतन कर रहे हैं. इसी जुगत में उन्होंने अपने खिलाफ विदेशी साजिश और उसके कथित सबूत वाली चिट्ठी का दांव भी चला है. मगर अब इमरान अपने ही दांव में इस कदर उलझ गए हैं कि इसके चलते पाकिस्तान की सियासत और हैसियत ही अंतरराष्ट्रीय मंच पर फजीहत में पड़ गई है. यही वजह है कि अब तक पर्दे के पीछे से नियंत्रण कर रही सेना को भी कुछ ब्रेक लगाने के लिए खुलकर सामने आना पड़ा.

रैली में लहराई थी चिट्ठी

इमरान खान ने 27 मार्च को इस्लामाबाद की रैली में लहराई चिट्ठी को अपनी सत्ता का कवच बनाने की कोशिश करते हुए गोपनीयता की हदें बदलना शुरू किया तो सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा और आईएसआई प्रमुख ले. जनरल नदीम अंजुम उनसे मिलने पहुंचे. बीते दो दिनों में तीन बार सेना प्रमुख और इमरान खान की घंटों लंबी मुलाकातें हो चुकी हैं. इन मुलाकातों का फौरी असर भी हुआ और पीएम इमरान खान ने 30 मार्च की शाम देश के नाम संदेश का इरादा टाल दिया.

साथ ही पाकिस्तान में सत्ता बदल की विदेशी साजिश वाली कथित चिट्ठी पर राष्ट्रीय सुरक्षा कौंसिल और संसद की इन कैमरा बैठक बुलाई गई है. इन बैठकों में यह तय होगा कि आखिर जिस चिट्ठी को पाक पीएम इमरान खान ढाल की तरह पेश कर रहे हैं, वो क्या वाकई में पाकिस्तान में विदेशी दखल का पुख्ता सबूत है? साथ ही अगर ऐसी कोई साजिश है तो फिर उसमें शामिल लोगों के खिलाफ आर्टिकल 6 के तहत देशद्रोह की कार्रवाई और सज़ा ए मौत मुमकिन है?

संसद में होगी परीक्षा

बहरहाल, सियासी दांव में उलझे इमरान सियासत के अखाड़े में चित होते हैं या विपक्ष को पटखनी देते हैं यह तो संसद में होने वाली परीक्षा तय करेगी. मगर उनके इस दांव ने अमेरिका और यूरोपीय संघ के मुल्कों के साथ पाकिस्तान के रिश्तों में आई खटास में और नींबू निचोड़ ज़रूर दिया है. इससे खतरा बढ़ गया है कि विदेश नीति और आर्थिक मुश्किलों से घिरे पाकिस्तान की परेशानी और बढ़ जाएंगी.

पाकिस्तान के लिए अमेरिका सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है. साथ ही F16 लड़ाकू विमानों समेत क़ई हथियारों और सैन्य-आर्थिक मदद के लिए पाकिस्तान, अमेरिका पर निर्भर है. साथ ही पाकिस्तानी फौज के आला जनरलों में भी एक बड़ा तबका है जो अमेरिका के साथ बेहतर रिश्तों का हिमायती है.

ईयू भी पाकिस्तान के लिए जरूरी

कारोबारी लिहाज़ से देखें तो यूरोपीय संघ भी एक ब्लॉक के तौर पर पाकिस्तान के लिए बड़ी हैसियत और अहमियत रखता है. साल 2020 में पाकिस्तान के कुल कारोबार में यूरोपीय संघ की हिस्सेदारी 14 फीसद की है. वहीं पाकिस्तान के कुल निर्यात का 28 प्रतिशत यूरोपीय संघ के देशों में जाता है. ऐसे में पाकिस्तान के पीएम का सीधे तौर पर यूरोपीय संघ के राजदूतों को अपनी सियासत में घसीटना पाकिस्तान के लिए घातक हो सकता है.

इमरान खान ने 6 मार्च को वेहारी में हुई रैली के दौरान यूरोपीय संघ के राजदूतों पर पब्लिक रैली में तीखे बयान दिए. वहीं 27 मार्च की रैली में जेब से एक कागज निकालकर लहराते हुए दिखाया और कहा कि उनको सत्ता से हटाने खिलाफ साजिश हो रही है. जिसमें विदेशों से पैसा दिया जा रहा है. इमरान ने नाम तो नहीं लिया लेकिन हर कोई समझ गया कि उन्होंने तीर अमेरिका की तरफ चलाए हैं.

चिट्ठी में क्या है…

बात करते हैं उस चिट्ठी की, जिसे इमरान अपने लिए कवच की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. कथित तौर पर 7 मार्च को लिखी यह चिट्ठी पाकिस्तान के अमेरिका में तैनात तत्कालीन राजदूत असद मजीद खान का राजनयिक केबल बताई जा रही है जो उन्होंने वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारियों से हुई अपनी मुलाकात के बाद मुख्यालय भेजा था. चिट्ठी में कथित तौर पर इमरान सरकार की नीतियों को लेकर अमेरिका की नाराजगी जताई गई. साथ ही बताया जाता है कि विपक्ष की तरफ से लाए जा रहे अविश्वास प्रस्ताव का भी जिक्र है.

बताया जाता है कि इमरान खान ने 27 मार्च की रैली में इसी चिट्ठी को लहराते हुए अपने खिलाफ़ हो रही साजिश की थ्योरी को आगे बढ़ाया. जानकारों के मुताबिक इस चिट्ठी को सार्वजनिक करने पर पीएम इमरान खान आमादा हैं.

बहरहाल, इस चिट्ठी को लेकर किए जा रहे दावे सही हों या गलत, साजिश के सबूत हों या सामान्य संदेश, इतना साफ है कि इसने अमेरिका और पाकिस्तान के पहले ही खराब चल रहे रिश्तों को और पेचीदा बना दिया है. साथ ही सेना समेत पाकिस्तान के क़ई तबके इसे पाकिस्तानी पीएम का सुसाइडल शॉट मान रहे हैं.

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