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पाकिस्तान के गवर्नर जनरल ने पीएम ख्वाजा नजीमुद्दीन को पद से बर्खास्त क्यों किया था?

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<p>जब पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री रहे लियाकत अली खान की रावलपिंडी के ईस्ट इंडिया कंपनी गार्डन में गोली मारकर हत्या कर दी गई तो उनकी जगह ख्वाजा नजीमुद्दीन ने उस वक्त मोहम्मद अली जिन्ना के निधन के बाद पाकिस्तान के दूसरे गवर्नर जनरल के तौर पर काम कर रहे थे. लेकिन देश के पहले वजीर-ए-आजम की हत्या ने पाकिस्तान की सत्ताधारी मुस्लिम लीग को इस पशोपेश में पहुंचा दिया कि बिना देर किए ख्वाजा नजीमुद्दीन को पाकिस्तान का वजीर-ए-आजम बना दिया गया.</p>
<p>ख्वाजा नजीमुद्दीन पहले ऐसे वजीर-ए-आजम थे जिनका ताल्लुक पश्चिमी पाकिस्तान से न होकर पूर्वी पाकिस्तान से था. इस्लाम की रूढ़िवादिता और उससे भी बढ़कर उनकी कट्टरता ने उन्हें मोहम्मद अली जिन्ना के करीबियों में शुमार कर दिया था. साथ ही यही वजह थी कि जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो 14 अगस्त, 1947 को ही मोहम्मद अली जिन्ना ने ख्वाजा नजीमुद्दीन को अपनी पार्टी मुस्लिम लीग का अध्यक्ष बना दिया. 1948 का आधा साल बीतते-बीतते जब मोहम्मद अली जिन्ना की तबीयत खराब होने लगी तो ख्वाजा नजीमुद्दीन ही वो शख्स थे जिन्होंने तब पाकिस्तान के गवर्नर जनरल रहे मोहम्मद अली जिन्ना की जगह कार्यवाहक गवर्नर जनरल बनाया गया और फिर मोहम्मद अली जिन्ना के इंतकाल के बाद वजीर-ए-आजम लियाकत अली खान के समर्थन से ख्वाजा नजीमुद्दीन को पाकिस्तान का गवर्नर जनरल बना दिया गया.</p>
<p>पाकिस्तान को इस्लामिक देश के तौर पर कायम करने और सेक्युलरिज्म की मुखालफत के सबसे बड़े झंडाबरदार रहे ख्वाजा नजीमुद्दीन ने पाकिस्तान के गवर्नर जनरल की हैसियत से कहा था कि पाकिस्तान तब तक अधूरा है जब तक कि कश्मीर उसके हिस्से में नहीं आ जाता. ख्वाजा नजीमुद्दीन की ही मानें तो पाकिस्तान अब तक अधूरा है और वो आगे भी अधूरा ही रहेगा क्योंकि कश्मीर का पाकिस्तान के साथ जाना नामुमकिन है. बहरहाल लौटते हैं ख्वाजा नजीमुद्दीन पर. 1951 में जब पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम लियाकत अली खान की हत्या हो गई तो देश के सामने दो बड़े संकट थे. पहला संकट तो देश का नेतृत्व करना था और दूसरा संकट था पाकिस्तान को बनाने वाली पार्टी मुस्लिम लीग का नेतृत्व करना. जिन्ना-लियाकत अली खान के बाद ख्वाजा नजीमुद्दीन ही ऐसे शख्स थे जो दोनों संकटों का सामना कर सकते थे. लिहाजा मुस्लिम लीग के नेताओं ने मिलकर ख्वाजा नजीमुद्दीन को पाकिस्तान का वजीर-ए-आजम यानी कि प्रधानमंत्री बना दिया.</p>
<p>गवर्नर जनरल के पद पर आसीन हुए लियाकत अली खान के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री रहे सर मलिक गुलाम ख्वाजा नजीमुद्दीन के सत्ता संभालने के साथ ही पाकिस्तान में सियासी उठापटक और ज्यादा बढ़ गई. इस्लामिक कट्टरता के हिमायती ख्वाजा नजीमुद्दीन के वक्त ही पाकिस्तान में पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच के सियासी मतभेद बढ़ने लगे थे. इसमें आग में घी का काम किया ख्वाजा नजीमुद्दीन के एक फैसले ने. पूर्वी पाकिस्तान की आबादी बांग्ला भाषा बोलती थी और चाहती थी कि बांग्ला को भी पाकिस्तान की भाषा का दर्जा दिया जाए. हालांकि ख्वाजा नजीमुद्दीन ने ऐलान किया कि वो मोहम्मद अली जिन्ना के कथन पर आगे बढ़ रहे हैं और उनके मुताबिक पाकिस्तान की सिर्फ एक ही भाषा होगी और वो होगी उर्दू. इसका पूर्वी पाकिस्तान में विरोध हो गया और ये विरोध हिंसा में तब्दील हो गया. मुस्लिम लीग के बीच भी इस मुद्दे पर फूट पड़ गई और पार्टी दो भागों में टूट गई.</p>
<p>इस बीच अपनी कट्टरता के लिए कुख्यात जमात-ए-इस्लामी ने एक नया आंदोलन शुरू कर दिया. जमात-ए-इस्लामी ऐसा संगठन था जो पाकिस्तान को इस्लामिक मुल्क बनाना चाहता था और वहां पर शरीयत के हिसाब से अपना कानून चलाना चाहता था. हालांकि पाकिस्तान तो वैसे ही इस्लामिक मुल्क घोषित हो चुका था लेकिन जमात-ए-इस्लामी पूरी आबादी पर शरिया थोपने की कोशिश कर रहा था. 1953 में जमात ने अहमदिया मुसलमानों के खिलाफ आंदोलन चलाया और ख्वाजा नजीमुद्दीन सरकार पर दबाव बनाया कि अहमदिया मुस्लिमों की मुस्लिम धर्म से ही बेदखल कर उन्हें गैर मुस्लिम घोषित किया जाए.</p>
<p>जमात-ए-इस्लामी ने अपनी बातों को मनवाने के लिए अहमदिया मुस्लिमों के खिलाफ दंगे शुरू कर दिए. पाकिस्तान के पंजाब में और खास तौर पर लाहौर में जमात-ए-इस्लामी ने अहमदिया मुस्लिमों पर हमले शुरू कर दिए. सैकड़ों लोग मारे गए. हजारों घरों को लूट लिया गया. लाखों अहमदिया मुस्लिमों को अपना घर बार छोड़ना पड़ा. सेना ने दंगों को खत्म करने के लिए फायरिंग तक की लेकिन नतीजा सिफर ही रहा. वहीं वजीर-ए-आजम ख्वाजा नजीमुद्दीन पर भी दबाव बढ़ता ही जा रहा था और फिर ख्वाजा नजीमुद्दीन ने इन दंगों को रोकने के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री मुमताज दौलताना को पद से हटा दिया. साथ ही फिरोज खान को पंजाब प्रांत का मुख्यमंत्री बना लेकिन फैसला इतनी देर से हुआ कि दंगे फिर भी नहीं रुके. आखिरकार मामले में पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मोहम्मद ने हस्तक्षेप किया और पंजाब प्रांत को सेना के हवाले कर दिया. लेफ्टिनेंट जनरल आजम खान ने पंजाब की कमान अपने हाथ में ली और फिर 6 मार्च, 1953 को पंजाब प्रांत में मार्शल लॉ लगा दिया गया.</p>
<p>इस घटना से ये साबित हो गया था कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ख्वाजा नजीमुद्दीन इतने कमजोर हैं कि एक आंदोलन को भी खत्म करने की कूवत नहीं रखते. तिस पर तुर्रा ये कि ख्वाजा नजीमुद्दीन ने पाकिस्तान में जो आर्थिक सुधार करने की कोशिश की वो भी बैक फायर कर गई थी. इससे खफा पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मोहम्मद ने ख्वाजा नजीमुद्दीन से मुल्क के हित में इस्तीफा देने को कहा. लेकिन ख्वाजा नजीमुद्दीन इस्तीफा न देने पर अड़ गए. नतीजा ये हुआ कि गवर्नर मलिक गुलाम मोहम्मद ने गवर्नर को मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए ख्वाजा नजीमुद्दीन को वजीर-ए-आजम के पद से बर्खास्त कर दिया और इस तरह से पाकिस्तान का दूसरा प्रधानमंत्री भी अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही पद से रुखसत हो गया.</p>
<p><strong>तख्तापलट सीरीज की अगली किश्त में पढ़िए कहानी पाकिस्तान के तीसरे वजीर-ए-आजम मुहम्मद अली बोगरा की जिन्हें उनके ही गृहमंत्री रहे इस्कंदर अली मिर्जा ने गवर्नर जनरल बनकर उनको उनके पद से हटा दिया था.</strong></p>

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