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तख्तापलट एपिसोड 4 : पाकिस्तान में जब अपनी ही पार्टी के नेताओं ने प्रधानमंत्री की कुर्सी छीन ली

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पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों पर आधारित खास सीरीज तख्तापलट में आज पढ़िए कहानी पाकिस्तान के चौथे वजीर-ए-आजम चौधरी मोहम्मद अली की, जो मुश्किल से 13 महीने ही अपने पद पर बने रह सके.

पाकिस्तान के दूसरे वजीर-ए-आजम ख्वाजा नजीमुद्दीन के कार्यकाल के दौरान ही पाकिस्तान के वजीर-ए-खजाना यानी कि वित्त मंत्री बने चौधरी मोहम्मद अली, मोहम्मद अली बोगरा के प्रधानमंत्रित्व के दौरान भी अपने पद पर बने रहे थे. जब गवर्नर जनरल इस्कंदर अली मिर्जा ने मोहम्मद अली बोगरा को पद से बर्खास्त करके अगस्त 1955 में वजीर-ए-खजाना रहे चौधरी मोहम्मद अली को वजीर-ए-आजम बनाया तो मोहम्मद अली ने पाकिस्तान का संविधान बनाने की ओर अपने कदम बढ़ाने शुरू किए. 

चौधरी मोहम्मद अली अपनी पार्टी मुस्लिम लीग के अध्यक्ष भी थे. संसद में उनकी सरकार को दो और पार्टियों अवामी लीग और रिपब्लिकन पार्टी का भी समर्थन था. उन्होंने बोगरा सरकार की वन यूनिट पॉलिसी पर भी काम करना शुरू किया, जिससे पाकिस्तान के पश्चिमी हिस्से के चार प्रांतों यानी कि खैबर-पख्तूनवा, पंजाब, बलूचिस्तान और सिंध को मिलाकर एक बनाया जा सके.  उन्हें अपने मकसद में शुरुआती कामयाबी भी मिली और 23 मार्च, 1956 को पाकिस्तान के संविधान का पहला ड्राफ्ट लागू हो गया, जिसमें पाकिस्तान को एक इस्लामिक मुल्क घोषित किया गया, जिसमें संसदीय व्यवस्था लागू थी.  

भारत से भी रिश्ते सुधारने की कोशिश
वहीं चौधरी मोहम्मद अली ने भारत से भी रिश्ते सुधारने की कोशिश की, जिसमें कश्मीर का मुद्दा सबसे बड़ा था. इसके लिए चौधरी मोहम्मद अली ने तब के भारत के प्रधानमंत्री रहे पंडित जवाहर लाल नेहरू से भी मुलाकात की थी. हालांकि मसला नहीं सुलझा, लेकिन तब तक चौधरी मोहम्मद अली अपनी ही पार्टी के नेताओं के बिछाए जाल में उलझने लगे थे. चूंकि मोहम्मद अली को गठबंधन की सरकार चलानी थी तो जाहिर था कि सहयोगी पार्टियों के लिए भी उन्हें मंत्रिमंडल में जगह देनी थी. जब चौधरी मोहम्मद अली ने अवामी लीग और रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं को कैबिनेट में जगह देने की कोशिश की, तो उनकी ही पार्टी के नेताओं ने मोहम्मद अली का विरोध कर दिया. 

जब मोहम्मद अली ने मुस्लिम लीग से अलग होकर रिपब्लिकन पार्टी का गठन करने वाले खान अब्दुल जब्बार खान या कहिए कि खान साहिब को पश्चिमी पाकिस्तान के चारों प्रांतों को एक यूनिट बनाकर वहां का मुख्यमंत्री घोषित कर दिया, तो मुस्लिम लीग के नेताओं ने बगावत कर दी. उन्होंने अब्दुल जब्बार खान की जांच करने की मांग की. इस बात की तहकीकात की मांग की गई कि आखिर कैसे अब्दुल जब्बार खान ने रिपब्लिकन पार्टी को नेशनल असेंबली में सबसे बड़ी पार्टी बना दिया और कैसे उन्होंने मुस्लिम लीग के नेताओं को तोड़कर अपने पक्ष में कर लिया.

मोहम्मद अली के खिलाफ हुआ अविश्वास प्रस्ताव पास 
वजीर-ए-आजम चौधरी मोहम्मद अली ने अपनी पार्टी के नेताओं की बातों को अनसुना कर दिया, क्योंकि उनका मानना था कि वो देश के वजीर-ए-आजम हैं और उनकी जिम्मेदारी उनकी कैबिनेट और संसद के लिए है न कि पार्टी के लिए. इससे नाराज मुस्लिम लीग के नेताओं ने खान अब्दुल कय्यूम खान के नेतृत्व में मोहम्मद अली के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव पास कर दिया और चौधरी मोहम्मद अली को मुस्लिम लीग के अध्यक्ष के पद से हटा दिया और फिर मुस्लिम लीग के नेताओं ने हुसैन शहीद सुहरावर्दी को अपना नेता चुना. नतीजा ये हुआ कि गवर्नर जनरल इस्कंदर मिर्जा के समर्थन के बावजूद वजीर-ए-आजम  चौधरी मोहम्मद अली को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. और इस तरह से पाकिस्तान का चौथा वजीर-ए-आजम भी वक्त से पहले ही अपने पद से रुखसत हो गया.

तख्तापलट सीरीज के अगले एपिसोड में पढ़िए कहानी पाकिस्तान के पांचवे वजीर-ए-आजम हुसैन शहीद सुहरावर्दी की, जो अपने पद पर किसी तरह से एक साल का वक्त बिता पाए और उन्हें भी उन्हीं स्थितियों में अपने पद से रुखसत होना पड़ा, जिन परिस्थितियों में उन्होंने चौधरी मोहम्मद अली को हटाकर पाकिस्तान की कमान संभाली थी.

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