भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका इन दिनों अभूतपूर्व आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. वहां पर हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि वहां पर आम आदमी का रहना मुश्किल हो गया है. साल 1948 में ब्रिटेन से आजादी मिलने के बाद श्रीलंका सबसे बुरे आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है.
श्रीलंका की मुख्य विपक्षी पार्टी एसजेबी ने शुक्रवार को कहा कि यदि राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे जनता की चिंताओं को दूर करने के लिए कदम उठाने में यदि विफल रहते हैं तो वह उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएगी.
मौजूदा हालात को लेकर सड़क पर हैं प्रदर्शनकारी
गोटबाया सरकार के खिलाफ प्रदर्शनकारी देश की मौजूदा हालत को सरकार के लिए गुनहगार मान रहे हैं. पिछले करीब डेढ़ दशक से श्रीलंका में सरकार का मतलब एक ही परिवार है और वो परिवार राजपक्षे परिवार है. लेकिन अब इस परिवार के खिलाफ पूरा देश सड़क पर आ गया है.
श्रीलंका में लोग कड़ी धूप में तीन-तीन दिन से एक सिलेंडर के इंतजार में खड़े थे. वहीं भारत मुसीबत की इस घड़ी में उसके साथ सबसे मजबूती से खड़ा है. श्रीलंका का यह हाल चीन के कर्ज के जाल में फंसकर हुआ है. अब जब श्रीलंका भंवर में फंस चुका है तो चीन तमाशा देख रहा है.
श्रीलंका के भारत से हैं मैत्रीपूर्ण संबंध
श्रीलंका के भारत से मैत्रीपूर्ण संबंध हैं. भारत की मदद श्रीलंका को डूबने से बचा रही है लेकिन देश के आर्थिक ग्राफ में कोई इजाफा नहीं हो रहा है और इसके लिए वहां की जनता अपनी सरकार को दोषी मान रही है. जनता का गुस्सा राजपक्षे सरकार को लेकर इसलिए भड़का है क्योंकि जिन फैसलों के कारण देश की यह हालत हुई है वो सभी राजपक्षे सरकार ने किए हैं. राजपक्षे सरकार का मतलब है राजपक्षे परिवार क्योंकि पिछले हफ्ते पूरी कैबिनेट के इस्तीफे से पहले यही परिवार कैबिनेट में छाया हुआ था.
शीर्ष पदों पर बैठे हैं श्रीलंका के नेता
श्रीलंका के सर्वोच्च पदों पर बैठे गोटबाया राजपक्षे चार भाई हैं. उनके दूसरे भाई महिंद्रा राजपक्षे है जोकि श्रीलंका के पीएम है. श्रीलंका में राजपक्षे परिवार के इतिहास को खंगाला जाए तो दो नाम सामने आते हैं. पहला नाम है डॉन मैथ्यू राजपक्षे जो उस वक्त के सिलोन के एक बड़े नेता था लेकिन 1945 में श्रीलंका की आजादी से पहले ही उनकी मौत हो गई.
इसके बाद लोगों ने जबरन उनके भाई डॉन एल्विन को चुनाव लड़वाया उनके दिवंगत भाई का प्रभाव ऐसा था कि एल्विन निर्विरोध चुनाव जीते.इसके बाद डॉन एल्विन का जीवन राजनीति में बीता उनके 9 बच्चे थे जो आज श्रीलंका पर राज कर रहे हैं
1967 में हुई थी एल्विन मैथ्ये की मौत
एल्विन मैथ्यू की 1967 में मौत हो गई. तीन साल बाद उनके बेटे महिंद्रा ने राजनीति में कदम रखा. चंद्रिका कुमारतुंगा एक दशक के राज में महिंद्रा कैबिनेट मिनिस्टर रहे, और जब चंद्रिका ने राजनीति से सन्यास लिया तो महिंद्रा राष्ट्रपति बने और अमेरिका में बस चुके अपने भाई गोटबाया को बुलाकर उनको श्रीलंका का रक्षामंत्री बनाया. महिंद्रा राजपक्षे ने जब कमान संभाली थी तो श्रीलंका में गृहयुद्ध चरम पर था. गोटबाया के नेतृत्व में LTTE के खिलाफ श्रीलंका में अभियान चला. LTTE के सफाए के नाम पर तमिलों का भी नरसंहार हुआ लेकिन इसकी जांच कभी नहीं हुई.
LTTE विरोधी अभियान के बाद बेलगाम हुआ राजपक्षे परिवार
ऐसा माना जाता है कि LTTE विरोधी अभियान में राजपक्षे परिवार बेलगाम हुआ और उसने देश के सभी अहम पदों पर अपने परिवार के लोगों को बिठा दिया. एक समय तो ऐसा आया जब उन्होंने सत्ता में अपने परिवार के 40 से भी ज्यादा लोगों को बिठा दिया. वहीं खबरें इशारा करती हैं कि श्रीलंका के बजट का 70% हिस्सा राजपक्षे परिवार के मंत्रियों के हाथ में था.
LTTE विरोधी अभियान में राजपक्षे परिवार बेलगाम हुआ, महिंद्रा राजपक्षे ने देश के सभी अहम पदों पर परिवार के सदस्यों को बिठा दिया, एक वक्त ऐसा भी आया कि राजपक्षे परिवार के 40 सदस्य सरकार में किसी न किसी पद पर थे, उस वक्त श्रीलंका के बजट का 70% राजपक्षे परिवार के मंत्रियों के हाथ में था
क्या श्रीलंका की कंगाली में परिवारवाद बड़ा कारण है?
2015 के चुनाव में महिंद्रा राजपक्षे चुनाव हार गए थे. 2019 के चुनाव में नियमों के मुताबिक फिर राष्ट्रपति नहीं बन सकते थे तो उन्होंने भाई गोटबाया को राष्ट्रपति बनवा दिया. देश आर्थिक तंगी से जूझ रहा था लेकिन कुर्सी पाने के लिए महिंद्रा ने देश की अर्थव्यवस्था को दांव पर लगा दिया.
राजपक्षे परिवार की गलतियां
- LTTE विरोधी अभियान के लिए चीन से मदद ली
- चीन से कड़ी शर्तों पर लोन लेते रहे
- लोन के पैसों में चारों भाइयों ने भ्रष्टाचार किया
- भ्रष्टाचार से ध्यान हटाने के लिए जनता को टैक्स छूट दी
- कर्ज का बोझ बढ़ा तो उर्वरक बंद करने का गलत फैसला लिया
- राजनीतिक फायदे के लिए समाज को धर्म-जाति में बांटा