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तख़्तापलट 8: पाकिस्तान का वो प्रधानमंत्री जिसके रहते पाक दो हिस्सों में बंट गया

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1958 से 1970 के मिलिट्री शासन के दौरान पाकिस्तान की सियासत में बहुत कुछ बदल गया था. सत्ता के साथ ही ताकत के भी समीकरण बदल गए थे. इस्कंदर अली मिर्जा को लंदन निर्वासित करने के बाद जनरल अयूब खान पाकिस्तान के राष्ट्रपति बन बैठे थे. उन्होंने पाकिस्तान में फिर से संविधान की बहाली के लिए पाकिस्तान के तीसरे चीफ जस्टिस मुहम्मद शहाबुद्दीन को काम पर लगाया ताकि देश में राजनीतिक स्थिरता कायम की जा सके.

इनकी सलाह पर पाकिस्तान में 1 मार्च, 1962 को नया संविधान लागू हुआ, जिसमें राष्ट्रपति के हाथ में अपार शक्तियां दे दी गईं. पुरानी संसदीय व्यवस्था को नए संविधान में जगह नहीं मिली थी और राष्ट्रपति के चुनाव के लिए इलेक्टोरल कॉलेज बनाया गया था. जाहिर था कि राष्ट्रपति अयूब खान ने इसे अपने मुताबिक बनवाया ही था तो दिखावे के लिए ही सही, 2 जनवरी, 1965 को पाकिस्तान में राष्ट्रपति के लिए पहला चुनाव हुआ और अयूब खान पाकिस्तान के राष्ट्रपति चुन लिए गए.

भारत के साथ मिलकर साजिश करने का लगा था आरोप

लेकिन इससे पाकिस्तान में राजनीतिक स्थिरता तो नहीं ही आनी थी. कई सियासी पार्टियां अयूब खान के इस फैसले का विरोध कर रही थीं. इन विरोधी पार्टियों की सबसे मजबूत आवाज बने शेख मुजीबुर्रहमान, जो पूर्वी पाकिस्तान की सबसे मजबूत पार्टी अवामी लीग के नेता थे. अयूब खान पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे, तो उनका विरोध करना शेख मुजीबुर्रहमान को भारी पड़ गया. 1968 में शेख मुजीबुर्रहमान को देशद्रोही घोषित कर दिया गया. अयूब खान की ओर से कहा गया कि मुजीबुर्रहमान भारत के साथ मिलकर पाकिस्तान को अस्थिर करने की साजिश रच रहे हैं.

शेख मुजीबुर्रहमान के खिलाफ अयूब खान ने जो ऐक्शन लिया, उससे पश्चिमी तो नहीं, लेकिन पूर्वी पाकिस्तान में हलचल मच गई. लोग सड़कों पर उतर आए और मुजीबुर्रहमान का समर्थन करने लगे. इस बीच पश्चिमी पाकिस्तान में भी अयूब खान के राष्ट्रपति रहने के दौरान उनके विदेश मंत्री रहे जुल्फिकार अली भुट्टो ने अयूब खान का साथ छोड़ दिया और एक नई पार्टी का गठन किया, जिसे नाम दिया गया पाकिस्तान पीपल्स पार्टी यानी कि पीपीपी.

 अयूब खान से भी ज्यादा क्रूर साबित हुए याहिया खान

इतनी हलचलों की वजह से अयूब खान पर दबाव बढ़ता जा रहा था कि वो पद छोड़ें. और आखिरकार अयूब खान ने 26 मार्च, 1969 को पाकिस्तान की कमान तब पाकिस्तानी आर्मी के चीफ रहे आगा मुहम्मद याहिया खान को सौंप दी. अब देश के राष्ट्रपति बन गए थे याहिया खान. और याहिया खान अयूब खान से भी क्रूर साबित हुए. उन्होंने एक बार फिर से पाकिस्तान का 1962 में बना संविधान भंग कर दिया और देश में फिर से मार्शल लॉ लग गया.

31 मार्च, 1970 को याहिया खान ने फिर से देश में राजनीतिक स्थिरता लाने की कवायद शुरू की. इसके तहत चुनाव होने थे और फिर पाकिस्तान का संविधान बनना था. इससे पहले याहिया खान ने पश्चिमी पाकिस्तान के चारों प्रांतों को एक करने वाले फैसले को रद्द कर दिया और पश्चिमी पाकिस्तान फिर से बलूचिस्तान, सिंध, पंजाब और खैबर पख्तूनवा यानी कि उत्तर-पश्चिमी फ्रंटियर प्रोविंस में बंट गया. वहीं पूर्वी पाकिस्तान में भी शेख मुजीबुर्रहमान मज़बूती के साथ उभर रहे थे.

चूंकि पूर्वी पाकिस्तान की कुल आबादी पश्चिमी पाकिस्तान के चारों प्रांतों की कुल आबादी से ज्यादा थी तो ये लगभग तय था कि चुनाव होगा तो सत्ता पूर्वी पाकिस्तान के हाथ में ही जाएगी. इस बीच 1970 के आखिर में पूर्वी पाकिस्तान में आए भोला तूफान ने इतनी तबाही मचाई कि वो दुनिया के इतिहास का सबसे घातक तूफान साबित हुआ. करीब पांच लाख लोग मारे गए, लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान को वो मदद नहीं मिली, जिसकी उम्मीद पूर्वी पाकिस्तान के लोग कर रहे थे.

पश्चिमी पाकिस्तान में नहीं मिली एक भी सीट

इस गुस्से के बीच जब दिसंबर, 1970 में चुनाव हुए तो शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व वाली अवामी लीग ने पूर्वी पाकिस्तान में इतनी सीटें जीत लीं और इतने वोट बटोर लिए कि वो पूरे पाकिस्तान की सबसे बड़ी पार्टी बन गई. हालांकि उसे पश्चिमी पाकिस्तान में एक भी सीट नहीं मिली. दूसरी तरफ जुल्फिकार अली भुट्टो की पीपीपी ने पश्चिमी पाकिस्तान में जीत दर्ज की और उसे पूर्वी पाकिस्तान में एक भी सीट नहीं मिली. नतीजों से तो साफ था कि पाकिस्तान का अगला प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान को ही बनना चाहिए, क्योंकि उनकी पार्टी को बहुमत था. लेकिन जुल्फिकार अली भुट्टो ने कहा कि चूंकि शेख मुजीबुर्रहमान को पश्चिमी पाकिस्तान से सीटें नहीं मिली हैं तो उन्हें पूरे पाकिस्तान का प्रधानमंत्री माना ही नहीं जा सकता.

भारत ने किया था मुक्तिवाहिनी का समर्थन

ये झगड़ा इतना बढ़ा कि सरकार का गठन ही नहीं हो पाया. इतना ही नहीं पश्चिमी पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान में जुल्म-ओ-सितम की इंतहा कर दी. पहले से ही परेशान पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर जब उन्हीं के देश की आर्मी ने याहिया खान और जुल्फिकार अली भुट्टो के दबाव में कहर ढाना शुरू किया तो इससे गृहयुद्ध जैसी स्थितियां पैदा हो गईं. पूर्वी पाकिस्तान पाकिस्तान से अलग होकर नया मुल्क बनने की राह पर बढ़ रहा था, जिसका नेतृत्व शेख मुजीबुर्रहमान कर रहे थे. इस जंग के दौरान पूर्वी पाकिस्तान के परेशान लोग भारतीय सीमा में दाखिल होने लगे तो भारत ने भी दखल दिया. उसने पूर्वी पाकिस्तान की लड़ाई लड़ने वाली मुक्तिवाहिनी का समर्थन किया, जिससे नाराज पाकिस्तान या कहिए कि पश्चिमी पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया.

3 दिसंबर, 1971 को भारत ने भी पाकिस्तान का जवाब देना शुरू कर दिया. इस बीच अपने देश में सियासी स्थिरता की कोशिश में जुटे राष्ट्रपति याहिया खान ने एक आखिरी कोशिश की. उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान से नेशनल असेंबली के लिए चुने गए नेता नुरुल अमीन को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बना दिया. वो तारीख थी 7 दिसंबर, 1971. नुरुल अमीन वो थे, जिन्होंने पूर्वी पाकिस्तान में कई छोटी-छोटी पार्टियों के गठजोड़ से बने गठबंधन पाकिस्तान मुस्लिम लीग से चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी. याहिया खान को उम्मीद थी कि पूर्वी पाकिस्तान से ही प्रधानमंत्री बनाने पर शायद पूर्वी पाकिस्तान के लोग शेख मुजीबुर्रहमान का समर्थन बंद कर दें और पूर्वी पाकिस्तान में चल रहा गृह युद्ध खत्म हो जाए.

दो टुकड़ो में टूट गया था पाकिस्तान

लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. पाकिस्तान ने भारत से सीधी लड़ाई ले ली थी. और जब ये लड़ाई खत्म हुई तो पाकिस्तान दो टुकड़ों में टूट चुका था. पश्चिमी पाकिस्तान को पाकिस्तान कहा गया और पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश के नाम से एक अलग देश के तौर पर मान्यता मिली. इस करारी हार से अपने ही लोगों की निगाह में गिर चुके याहिया खान ने 20 दिसंबर, 1971 को राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दे दिया. जुल्फीकार अली भुट्टो को देश का नया राष्ट्रपति बनाया गया. और तब जुल्फीकार अली भुट्टो ने प्रधानमंत्री नुरुल अमीन को प्रधानमंत्री पद से हटाकर उपराष्ट्रपति के पद पर बिठा दिया. पाकिस्तान एक बार फिर से मार्शल लॉ के ही अधीन हो गया.

1973 में पाकिस्तान में लागू हुआ नया संविधान

करीब ढाई साल बाद अगस्त 1973 में जब फिर से पाकिस्तान में नया संविधान लागू हुआ तो जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के नवें वजीर-ए-आजम बन गए. लेकिन चार साल से ही कम समय में एक बार फिर से पाकिस्तानी सेना ने पाकिस्तानी सियासत में दखल दिया. आर्मी चीफ जनरल जिया उल हक के आदेश पर 5 जुलाई, 1977 को पाकिस्तानी सेना ने वजीर-ए-आजम जुल्फीकार अली भुट्टो और उनके मंत्रियों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया और पाकिस्तान में फिर से मार्शल लॉ लगा दिया गया.

पाकिस्तानी प्रधानमंत्रियों पर आधारित खास सीरीज तख्तापलट के अगले एपिसोड में पढ़िए कहानी पाकिस्तान के नवें वजीर-ए-आजम जुल्फिकार अली भुट्टो की. 

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