Afghanistan Crisis: अफगानिस्तान में तालिबानी निजाम के आने से दक्षिण और मध्य एशिया के कई समीकरण बदल गए हैं. इन बदले हुए समीकरणों के बीच ही अफगानिस्तान के पड़ोसियों का बड़ा जमावड़ा ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में हो रहा है. शंघाई सहयोग संगठन के प्रमुखों की बैठक हो रही है, जिसमें अफगानिस्तान के मौजूदा हालात और सुरक्षा चिंताएं एक अहम मुद्दा होगा.
शंघाई सहयोग संगठन की इस बैठक में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअल तरीके से शरीक होंगे. वहीं भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर उनके प्रतिनिधि के तौर पर दुशांबे में मौजूद होंगे. एससीओ शिखर बैठक के हाशिए पर भारतीय विदेश मंत्री की ईरान समेत कई देशों के नेताओं से मुलाकात करेंगे जो भारत की ही तरह मौजूदा हालात को लेकर चिंताएं रखते हैं. इन वार्ताओं के लिए जयशंकर 16 सितंबर की सुबह दुशांबे रवाना हो रहे हैं.
बैठक में यूं तो पाकिस्तान और चीन के प्रतिनिधि भी मौजूद होंगे. लेकिन अभी तक भारतीय विदेश मंत्री की उनसे मुलाकात का कोई कार्यक्रम नहीं है. इस बैठक के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी पूरे लाव-लश्कर के साथ ताजिकिस्तान पहुंच रहे हैं. इतना ही नहीं, बैठक के बाद इमरान राजकीय दौरे के लिए भी ताजिकिस्तान रुकेंगे.
पलायन का दबाव
दरअसल, इमरान खान खान की कोशिश होगी अफगानिस्तान में आए तालिबानी निजाम के लिए आय वृद्धि का इंतजाम करने की. तालिबान राज को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित ताजिकिस्तान ही है क्योंकि अफगानिस्तान में ताजिक मूल के लोगों की एक बहुत बड़ी आबादी है. अफगानिस्तान की सत्ता में हिस्सेदारी न मिलने और तालिबानी ज्यादतियों से इस आबादी के परेशान होने पर पलायन का दबाव भी ताजिकिस्तान पर ही ज्यादा होगा.
वहीं ताजिकिस्तान पंजशेर के इलाके में ताजिक मूल के लड़ाकों वाले एनआरएफ को समर्थन जताता है तो इससे तालिबान की चुनौतियां और बढ़ेंगी ही. इतना ही नहीं, तालिबान को लेकर रूस के रुख में भी बदलाव हुआ है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सुरक्षा खतरों के मद्देनजर ही रूस और अन्य मध्य एशियाई देशों के सुरक्षा गठबंधन CSTO की अहम बैठक एससीओ शिखर सम्मेलन से पहले दुशांबे में 16 सितंबर को बुलाई है.
सीएसटीओ विदेश मंत्रियों की 15 सितंबर को हुई बैठक में कहा गया कि अफगानिस्तान के हालात के कारण अगर ताजिकिस्तान की दक्षिणी सीमा पर स्थितियां बिगड़ती है तो सभी देश सैन्य मदद के लिए एक साथ आगे आएंगे. साथ ही अफगानिस्तान के सभी हथियारबंद समूहों से आपसी संघर्ष रोकने को कहा गया है ताकि इसका असर पड़ोसी मुल्कों पर न पड़े.
हालात बिगड़ने की फिक्र
गौरतलब है कि तालिबान के मौजूदा तेवरों को देखते हुए ईरान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान समेत अफगानिस्तान के कई पड़ोसी देशों को अपनी सीमाओं पर हालात बिगड़ने की फिक्र सता रही है. यही वजह है कि तालिबान को लेकर बीते दो हफ्तों में रूस के भी सुर बदले हैं. मास्को में तालिबान के साथ अफगान शांतिवार्ताओं की मेजबानी करने वाले रूस ने खुलकर अपनी चिंताओं का इजहार किया है. बीते दोनों ब्रिक्स की शिखर बैठक में रूसी राष्ट्रपति की चिंताएं सामने आईं.
दुशांबे में हो रही शंघाई सहयोग संगठन की बैठक तालिबानी निजाम के लिए अंतर्राष्ट्रीय मान्यता की पहली परीक्षा थी, जिसमें वो फिलहाल नाकाम नजर आया. एससीओ में अफगानिस्तान की पर्यवेक्षक देश के तौर पर मान्यता के बावजूद उसके प्रतिनिधि इस बात बैठक में नजर नहीं आएंगे. तालिबान सरकार के ऐलान को एक हफ्ता बीत जाने के बावजूद अभी तक किसी देश ने आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है. साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ में भी उसके निजाम को अफगानिस्तान की सीट नहीं मिल पाई है.
ऐसे में नजरें होंगी कि भारत, रूस, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिजस्तान, चीन और पाकिस्तान की सदस्यता वाला शंघाई सहयोग संगठन अफगानिस्तान के तालिबान को क्या संदेश देता है. इस बैठके में ईरान को भी एससीओ सदस्य देश के तौर पर शामिल करने को लेकर फैसले की उम्मीद है. ईरान के नए राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी इस बैठक के लिए दुशांबे पहुंच रहे हैं. शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में रूस के राष्ट्रपति पुतिन का दौरा ऐन वक्त पर कोरोना संबंधी एहतियात के चलते टल गया. हालांकि पुतिन ऑनलाइन इस बैठक में शरीक होंगे. वहीं चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी ऑनलाइन ही एससीओ शिखर बैठक में शरीक होंगे.
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