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मलेरिया के खिलाफ दुनिया की पहली वैक्सीन को हरी झंडी

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हर साल मलेरिया की वजह से 4 लाख लोगों की जान चली जाती है, उनमें ज्यादातर बच्चे होते हैं. पिछले कुछ दशकों में बीमारी के खिलाफ महत्वपूर्ण प्रगति हुई है यानी मौत की दर 2000 से करीब आधे में हो गई लेकिन अभी भी लंबी दूरी बाकी है. मलेरिया के खिलाफ टीकाकरण वैज्ञानिकों के लिए वास्तविक चुनौती पेश की है. दशकों से शोधकर्ता एक वैक्सीन बनाने के काम में जुटे हुए हैं लेकिन ये उतना आसान नहीं रहा.

दुनिया की पहली मलेरिया वैक्सीन मंजूर

वैक्सीन बनाने की कई कोशिशों से मजबूत इम्यूनिटी पैदा नहीं हुई. इसके बावजूद वैक्सीन का विकास हो रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रिसर्च के शानदार नतीजे आने के बाद बुधवार को पहली बार बच्चों के लिए मलेरिया की वैक्सीन पर मुहर लगाई. GlaxoSmithKline की बनाई वैक्सीन Mosquirix मुकम्मल नहीं है- ये पूरी तरह टीकाकरण करा चुके बच्चों के गंभीर मलेरिया में करीब 30 फीसद कमी पैदा करती है.

हालांकि, ये जीवन रक्षक है लेकिन उम्मीद से छोटी. बावजूद इसके WHO की सिफारिश एक खतरनाक संक्रामक बीमारी के खिलाफ लड़ाई में एक कदम आगे है. नई वैक्सीन के सुधार पर शोधकर्ता पहले से ही जुटे हुए हैं. WHO प्रमुख टेड्रोस अदहानोम गेब्रेयेसस ने उसे ऐतिहासिक कदम बताया है. उन्होंने कहा, “बच्चों के लिए मलेरिया की बहुप्रतीक्षित वैक्सीन विज्ञान, बच्चे की सेहत और मलेरिया नियंत्रण के लिए सफलता है.”

WHO ने बताया विज्ञान के लिए सफलता

मलेरिया मच्छर से होनेवाली बीमारी है जो बुखार और ठंढ लगने का कारण बनती है और गंभीर मामलों में एनीमिया, दौरा और सांस की समस्याएं होती हैं. इलाज होने पर ये बहुत ही कम घातक है. लेकिन फिर भी अनुमान लगाया जाता है कि करीब 220 मिलियन मलेरिया के मामले हर साल दर्ज किए जाते हैं. शोधकर्ता 30 वर्षों से रिसर्च कर रहे हैं जिसके कारण मलेरिया की वैक्सीन सामने आ सकी. Mosquirix वैक्सीन 5 से 17 महीनों के बीच तीन डोज में दी जाती है और चौथा डोज 18 महीनों के बाद.

मानव परीक्षण के बाद वैक्सीन के असर को तीन देशों केन्या, घाना और मलावी में जांचा गया, वहां उसे रूटीन टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल किया गया था. उन देशों में 2.3 मिलियन डोज 800,000 बच्चों को लगाया जा चुका है. मानव परीक्षण में वैक्सीन ने मलेरिया के 40 फीसद और गंभीर मामलों के 30 फीसद की रोकथाम की. ये बचपन में ज्यादातर शुरुआती बीमारियों के लिए किसी वैक्सीन सफलता दर से काफी कम है.

उसके मुकाबले खसरा की वैक्सीन 97 फीसद प्रभावी है और चिकन पॉक्स की वैक्सीन 85 फीसद और करीब 100 फीसद गंभीर मामलों को रोकती है. लेकिन लाखों लोगों को हर साल मौत का कारण बननेवाली मलेरिया के लिए एक आंशिक प्रभावी वैक्सीन भी बहुत सारे लोगों की जान बचानेवाली हो सकती है. एक अनुमान के मुताबिक अगर वैक्सीन को सालाना सबसे ज्यादा जोखिम वाले 3 करोड़ लोगों तक पहुंचा दिया जाए, तो 53 लाख मामले और 24 हजार मौत को टाला जा सकता है.

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