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अफगानिस्तान के लिए मानवीय सहायता के दरवाजे खोल सकता है भारत, तालिबान के साथ बैठक में दिए संकेत

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अफगानिस्तान के हालात पर मॉस्को में हुई उच्च स्तरीय बैठक के हाशिए पर भारत सरकार और तालिबानी निजाम के नुमाइंदों की भी मुलाकात हुई. तालिबान के साथ इस उच्च स्तरीय मुलाकात में भारत ने मानवीय संकट से जूझ रहे अफगानिस्तान के लोगों की मदद का प्रस्ताव दिया. 

तालिबान प्रवक्ता जबिउल्लाह मुजाहिद ने कहा कि बैठक में मौजूद भारत के अधिकारियों ने कहा कि अफगानिस्तान के लोगों को मानवीय मदद की जरूरत है. अफगानिस्तान मुश्किल हालात से गुजर रहा है और भारत ऐसे में मानवीय सहायता देने को तैयार है. उच्च पदस्थ सरकारी सूत्रों के मुताबिक इस बैठक में मानवीय सहायता उपलब्ध कराने और बकाया विकास परियोजनाओं को बहाल करने समेत कई मुद्दों पर बात हुई. ऐसे में भारत की तरफ से अफगानिस्तान को कोरोना टीकों की नई खेप की आपूर्ति भी संभव है. इसके अलावा आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के मुद्दे पर भी भारतीय पक्ष ने खुलकर अपनी अपेक्षाएं साफ की. बैठक में भारत की ओर से जहां विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान-अफगानिस्तान- ईरान मामलों के प्रभारी संयुक्त सचिव जेपी सिंह मौजूद थे. 

अफगानिस्तान में तालिबानी निजाम के आने के बाद यह दूसरा मौका था जब भारत और तालिबान प्रतिनिधियों के बीच सीधी मुलाकात हुई. इससे पहले 31 अगस्त को दोहा में तालिबान नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई की अगुवाई में एक दल भारत के राजदूत दीपक मित्तल से मिला था.

अफगानिस्तान में तालिबानी निजाम कायम हुए दो महीने से ज्यादा वक्त हो चुका है. लेकिन अभी तक भारत समेत किसी भी देश ने तालिबानी निजाम को न तो मान्यता दी है और न ही उसके साथ अंतरराष्ट्रीय सहयोग की योजनाओं को बहाल किया है.

ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 अक्टूबर को अफगानिस्तान के हालात पर हुई जी-20 देशों की बैठक में दिए भाषण के दौरान ही इसके संकेत दे दिए थे. पीएम मोदी ने कहा था कि अफगानिस्तान के लोग गंभीर मानवीय संकट से गुजर रहे हैं. भारत उनकी पीड़ा को समझ सकता है. अफगान लोगों के लिए अंतरराष्ट्रीय मानवीय मदद के दरवाजे खुले रखने की जरूरत है.

हालांकि मॉस्को में हुई मुलाकात और मानवीय सहायता प्रस्तावों पर भारत सरकार की तरफ से फिलहाल कोई आधिकारिक बयान नहीं जारी किया गया है. साथ ही सूत्रों का कहना है कि मानवीय सहायता को तालिबान प्रशासन के लिए किसी अंतरराष्ट्रीय मान्यता के तौर पर नहीं देखा जा सकता.

गौरतलब है कि भारत ने 2005 से लेकर अब तक करीब 12 करोड़ डॉलर की विकास सहायता परियोजनाओं का संकल्प जता चुका है. वहीं अफगानिस्तान के 34 सूबों में भारत ने लोगों का जीवन स्तर सुधारने वाली 433 परियोजनाओं को पूरी भी किया. भारत और अफगानिस्तान के बीच 5 जुलाई 2020 को करीब 26 लाख डॉलर की लागत से स्कूल और सड़कों के निर्माण के लिए 5 समझौतों पर भी दस्तखत किए गए थे.

हालांकि अगस्त 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबानी आमद के बाद भारत समेत कई देशों को जहां अपने लोगों को सुरक्षित निकालना पड़ा. वहीं विकास की परियोजनाएं भी ठिठक गई. तालिबानी निजाम मानवीय संकट का हवाला देते हुए अंतरराष्ट्रीय सहायता और साथ ही सरकार के तौर पर मान्यता हासिल करने की भी कोशिश में है.

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