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Afghanistan: तालिबान ने जेल से रिहा किए 210 से ज्यादा कैदी, अफगान नागरिकों में चिंता

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Afghanistan, Taliban release over 210 Prisoners From Jail: अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन के बाद से वहां के लोग लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति से जूझ रहे हैं. ऐसे में सोमवार को तालिबान ने अफगानिस्तान की एक जेल में बंद 210 से ज्यादा कैदियों को रिहा कर दिया है. तालिबान ने यह कदम इस तथ्य के बावजूद उठाया कि इस्लामिक स्टेट-खोरासन, सीरिया और इराक स्थित आतंकवादी समूह देश में सार्वजनिक सुरक्षा के लिए एक बड़ी समस्या के रूप में उभर रहे हैं.

रूसी समाचार एजेंसी स्पुतनिक के अनुसार, अफगानिस्तान पर नियंत्रण हासिल करने के बाद से तालिबान सैकड़ों कैदियों को रिहा कर चुका है, जिससे अफगानिस्तान के लोगों में चिंता पैदा हो गई है. एजेंसी स्पुतनिक ने अफगान राज्य मीडिया का हवाला देते हुए बताया कि इससे पहले इसी साल की शुरुआत में तालिबान ने हेलमंद और फराह प्रांत की जेलों से 600 से अधिक आतंकवादियों को रिहा किया था. 

वहीं, इसके अलावा द वाशिंगटन पोस्ट ने रिपोर्ट किया, जिसमें कहा गया कि तालिबान, आतंकवादियों को रोकने में विफल रहा है, जिन्होंने अफगानिस्तान में गनी सरकार के गिरने के बाद देश में कई हमलों को अंजाम दिया. इन हमलों में कंधार और कुंदुज में हाल ही में एक सप्ताह के भीतर शिया मस्जिदों में हुए दो बम विस्फोट भी शामिल हैं, जिनमें कई उपासक मारे गए थे.

अफगानिस्तान के प्रमुख तालिबान नेताओं ने पाकिस्तानी मदरसे में की है पढ़ाई: रिपोर्ट

दारुल उलूम हक्कानिया मदरसा पाकिस्तान के सबसे बड़े और पुराने मदरसे में से एक है और दशकों से पूरे क्षेत्र में हिंसा फैलाने में मदद करने के लिए इसके आलोचक इसे ‘जिहाद विश्वविद्यालय’ कहते हैं. मीडिया में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के किसी भी स्कूल से अधिक इस मदरसे में कई तालिबानी नेता पढ़ाई कर चुके हैं. मदरसे के पूर्व छात्र अब अफगानिस्तान में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हैं. 

पाकिस्तान के अशांत खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में स्थित मदरसे का अफगानिस्तान में व्यापक प्रभाव पड़ा है. मदरसा के पूर्व छात्रों ने तालिबान आंदोलन की स्थापना की और 1990 के दशक में अफगानिस्तान पर शासन किया. ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ (एनवाईटी) में शुक्रवार को छपी रिपोर्ट के अनुसार, मदरसे ने तर्क दिया है कि तालिबान को यह दिखाने का मौका दिया जाना चाहिए कि वे अपने खूनी तरीकों से आगे बढ़ गए हैं क्योंकि उन्होंने पहली बार दो दशक पहले अफगानिस्तान पर शासन किया था. 

मदरसा के कुलपति रशीदुल हक सामी ने एनवाईटी से कहा, ‘‘दुनिया ने कूटनीतिक मोर्चे और युद्ध के मैदान दोनों पर अपनी जीत के माध्यम से देश को चलाने की उनकी क्षमताओं को देखा है.’’ रिपोर्ट के मुताबिक, सामी के पिता और सेमिनरी के दिवंगत चांसलर समीउल हक, जिनकी 2018 में इस्लामाबाद में उनके आवास पर हत्या कर दी गई थी, को ‘‘तालिबान के जनक’’ के रूप में जाना जाता है.

‘मदरसा मिराज: ए कंटेम्परेरी हिस्ट्री ऑफ इस्लामिक स्कूल्स इन पाकिस्तान’ के लेखक अजमत अब्बास ने कहा, ‘‘तालिबान नेताओं की मातृ संस्था होने के नाते, हक्कानिया को निश्चित रूप से उनका सम्मान मिलता है.’’ खबर में कहा गया है कि सिराजुद्दीन हक्कानी (41) इसके पूर्व छात्र हैं और उन्होंने तालिबान के सैन्य प्रयासों का नेतृत्व किया. अमेरिकी सरकार ने उनके सिर पर 50 लाख अमेरीकी डॉलर का इनाम रखा था और अब वह अफगानिस्तान के नए कार्यवाहक आंतरिक मंत्री हैं. वहीं, नए विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी और उच्च शिक्षा मंत्री अब्दुल बकी हक्कानी भी इसके पूर्व छात्र हैं. 

स्कूल प्रशासकों ने क्या-क्या बताया?

स्कूल प्रशासकों का कहना है कि न्याय मंत्री, अफगान जल और बिजली मंत्रालय के प्रमुख और कई गवर्नर, सैन्य कमांडर और न्यायाधीश भी हक्कानिया मदरसा से पढ़ाई कर चुके हैं. उन्होंने कहा, ‘‘हमें गर्व महसूस होता है कि अफगानिस्तान में हमारे छात्रों ने पहले सोवियत संघ को तोड़ा और अब अमेरिका को भी बोरिया बिस्तर बांधकर भेज दिया. मदरसे के लिए यह सम्मान की बात है कि इसके स्नातक अब मंत्री हैं और तालिबान सरकार में उच्च पदों पर आसीन हैं. कई पूर्व छात्र हक्कानी नाम को गर्व के प्रतीक के रूप में अपनाते हैं. 

रिपोर्ट में कहा गया है कि हक्कानी नेटवर्क का नाम मदरसे के नाम पर रखा गया है. यह तालिबान की सैन्य शाखा है, जो अमेरिकियों को बंधक बनाने, आत्मघाती हमलों और लक्षित हत्याओं के लिए जिम्मेदार है. अफगानिस्तान में तालिबान की जीत मदरसा के छात्रों के लिए बड़े गर्व की बात है. स्कूल के आलोचक इसे ‘जिहाद विश्वविद्यालय’ कहते हैं और दशकों से पूरे क्षेत्र में हिंसा को पनपने में मदद करने के लिए इसे दोषी मानते हैं। उन्हें चिंता है कि चरमपंथी मदरसों और उनसे जुड़ी इस्लामी पार्टियों को तालिबान की जीत से प्रोत्साहन मिल सकता है और पाकिस्तान में 30,000 से अधिक मदरसों को सरकारी नियंत्रण में लाने के प्रयासों के बावजूद कट्टरवाद को बढ़ावा मिल सकता है.

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