एक्ट्रेस माहिरा खान जी थिएटर का हिस्सा बनने जा रही हैं. वह आने वाली सीरीज ‘यार जुलाहे में एक शॉर्ट स्टोरी पढ़ती नजर आएंगी. जी थिएटर की शुरुआत साल 2015 में हुई थी. तब से लेकर अब तक वो प्रयत्नशील है कि छोटे पर्दे पर दुनियाभर के दर्शकों के लिए रंगमंच की चुनिंदा रचनाओं का मंचन किया जाए. यार जुलाहे एक ऐसी सीरीज है जिसमें 12 कहानियों को सेलेब्स सुनाएंगे और इसके साथ इसका नाट्य रुपांतरण भी दिखाया जाएगा।
15 मई को टाटास्काई थिएटर पर ‘यार जुलाहे की पहली कड़ी दिखाई जाएगी जिसमें माहिरा खान नजर आएंगी.
‘यार जुलाहे गुलज़ार की एक नज़्म है और इस नाम को इस लिए चुना गया क्योंकि यह सीरीज समर्पित है उन रचनाकारों को जो शब्दों से कहानियों को कुछ इस तरह बुनते हैं जैसे जुलाहे सूत कात रहे हों।
माहिरा खान शॉर्ट स्टोरी ‘गुडिय़ा को पढ़ेंगी जो उपमहाद्वीप के बेहतरीन लेखकों में से एक, अहमद नदीम क़ासमी की कलम द्वारा रची गयी है.
‘गुडिय़ा कहानी है दो सहेलियों की. मेहरा और बानो की दोस्ती के तार मज़बूत हैं और बानो के पास एक गुडिय़ा है जिसकी शक्ल मेहरा से मिलती है. मेहरा को हालांकि यह गुडिय़ा पूरी तरह से नापसंद है. देखिये किस तरह धीरे धीरे इस गुडिय़ा के आसपास प्यार और नफरत के उतार चढ़ाव दोनों सहेलियों को घेरते हैं और कैसे एक अजीबोगऱीब मोड़ इस कहानी को अंजाम तक पहुंचाता है और इस गुडिय़ा का राज़ खोलता है ।
‘यार जुलाहे लेकर आएगा उर्दू और हिंदी के प्रगतिशील लेखकों की रचनायें जिनमे शामिल हैं गुलज़ार, सआदत हसन मंटो, इस्मत चुग़ताई , मुंशी प्रेमचंद, अमृता प्रीतम, कुर्अतुल ऐन हैदर , बलवंत सिंह , असद मोहम्मद खान, ग़ुलाम अब्बास, राजिंदर सिंह बेदी और इंतेज़ार हुसैन।
जाने माने निर्देशक और अभिनेता सरमद खूसट के अनुसार ‘यार जुलाहे की प्रेरणा उन्हें ‘दास्तानगोई ‘ की परंपरा से मिली जो दक्षिण एशिया में कहानियां रचने और कहने के लिए प्रचलित है. वे कहते हैं, हमने ‘दास्तानगोई ‘ को एक नए अंदाज़ में ढाला है और लाइव एवं रिकॉर्डिड संगीत का भी इस्तेमाल किया है. हमने ऐसे सेट बनाए हैं जो हर कहानी के सार को बयां करते हैं. जैसे की जब मैं ‘गुडिय़ाÓ नामक कहानी निर्देशित कर रहा था तो हर तरफ गुडिय़ां बिखेरी गयी थीं जो अपनी कहानी खुद बयां कर रही थीं. उनके होने से सेट पर एक अजीब सा माहौल घिर आया था जो माहिरा के पाठन का हिस्सा बनकर उसे और प्रभावशाली बना रहा था.
निर्देशक कँवल खूसट कहती है।
आज की पीढ़ी को ये श्रृंखला परिचित कराएगी उनकी साहित्यिक विरासत से. ‘दास्तानगोई ‘ के अलावा हमने चैंबर थिएटर टैक्नीक का भी इस्तेमाल किया है जहाँ पढऩे वाले के आस पास एक ख़ास माहौल रचा जाता है. एक ऐसा सेट बनाया जाता है जहां कलाकार कहानी को सिर्फ पढ़े नहीं बल्कि उसमे डूब कर उसे निभाए. हमने कोशिश की है की लेखक की आवाज़ के साथ खिलवाड़ न हो पर ये प्रयास भी किया है की एक सशक्त माध्यम से उसे ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके।