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Exclusive: आखिर कितने भरोसे के लायक है तालिबान? पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हामिद मीर की जुबानी

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Afghanistan Crisis: अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद अब नई सरकार को लेकर चर्चा चल रही है. इस बीच सबसे सवाल उठ रहे हैं कि तालिबान के राज में आम लोगों खासकर महिलाओं को कितना हक मिलेगा. दुनियाभर के देशों ने इसको लेकर चिंता जताई है. इन्हीं मसलों पर एबीपी न्यूज़ के संपादक सुमित अवस्थी ने पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार से बात की. हामिद मीर ने कहा कि अगले कुछ दिनों में तालिबान के ताजा वायदों और जमीनी हकीकत का पता चल सकेगा.

उन्होंने कहा, ”जब तालिबान की सरकार 2001 में खत्म हुई थी, करीब 20 साल पहले तो उस वक्त उनके बारे में सिर्फ यह ख्याल था कि ये लड़ने – मरने वाले लोग हैं. लेकिन पिछले 20 सालों में उन्होंने सियासत भी सीख ली है और कूटनीति भी. सियासत और कूटनीति का आम जुबान में मतलब है कि आप अपने वादों से मुकर सकते हैं, झूठ भी बोल सकते हैं, यू टर्न ले सकते हैं. मैं समझता हूं कि ये 20 साल पहले जो तालिबान थे और आज के तालिबान हैं इनके अप्रोच में कोई ज्यादा फर्क नहीं है. लेकिन इनके टैक्टिक में तब्दीली आ चुकी है.”

हामिद मीर ने आगे कहा, ”इसका सबूत है कि पिछले साल दोहा में वर्ल्ड पावर के साथ इन्होंने शांति समझौते किए. इसमें यह तय किया गया कि राजनीति गतिविधि के जरिए काबुल जाएंगे, बातचीत के जरिए जाएंगे. लेकिन राजनीति सेटलमेंट के तहत काबुल नहीं गए हैं. तो उनके विश्वसनियता पर सवाल है. कल तालिबान के प्रवक्ता मुजाहिद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस दौरान उन्होंने बहुत सारे वायदे किए हैं. दोहा एग्रीमेंट साइन होने के बाद से लेकर अब तक ट्रैक रिकॉर्ड देखा जाए तो उन्होंने बहुत सी अच्छी बातें की है लेकिन इसे लागू करने में कमी हमें नजर आ रही है.”

महिलाओं के हक को लेकर उन्होंने कहा कि काबुल में हमारे बहुत से सहयोगी हैं, उनमें पुरुष और महिलाएं दोनों हैं. उन्होंने हमें समस्या बताई है, कई बड़ी समस्या हैं. ज्यादा समस्या महिला पत्रकारों के साथ है. हमने अफगान तालिबान के साथ भी बात की. मैंने उनसे कहा कि आप प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहते हैं कि कोई समस्या महिलाओं के साथ नहीं होगी. लेकिन महिलाओं को रोका जा रहा है कि दफ्तरों में नहीं जांए….देखिए दो तीन दिन लगेंगे…बातें तो उन्होंने बहुत कही है. चिंता की बात यह है कि दो तीन दिनों में अफगानिस्तान में जेल तोड़ दी गई है, इसमें वे लोग भी बंद थे जो पाकिस्तान, चीन और अन्य देशों के लिए वांटेंड हैं. काबुल जेल से तालिबान ने अपने साथियों को छुरा लिया है. जो उनके खिलाफ थे, उन्हें गोली मार दी गई. यह चिंता की बात है. अगर कोई कितना भी बुरा क्यों न हो वगैर ट्रायल के सजा देना ठीक नहीं है.

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