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28 साल बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने किया बरी : एक हजार घूस लेने का था आरोप

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नागपुर , बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने घूस के एक आरोपी को 28 साल बाद केस से बरी कर दिया है। क्लर्क पर 1,000 रुपये घूस लेने का आरोप लगा था। अभियोजन पक्ष इन आरोपों को साबित नहीं कर सका।
गोपाल गुलहाने व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण के उप निदेशक के यहां सीनियर क्लर्क हैं। उन्हें अमरावती कोर्ट ने 2003 में भ्रष्टाचार का दोषी माना था। क्लर्क को आरोपों से बरी करते जस्टिस मुरलीधर चंदेकर ने कहा कि आरोपी ने घूस मांगी और घूस ली यह साबित करने में अभियोजन पक्ष असफल रहा है। संभावना कि प्रबलता इस केस में लागू नहीं होती।
जज ने कहा, आपराधिक कानून में उचित संहेद से परे अभियोजन पक्ष पर आरोपी को दोषी सिद्ध करने की जिम्मेदारी होती है। शिकायतकर्ता ने जो सबूत दिए हैं उससे पता चलता है कि उसने आरोपी को खुद रकम दी थी। यहां तक की चश्मदीदों ने भी यह बात कही कि शिकायतकर्ता ने खुद आरोपी के जेब में रुपये रखे थे। ये सारे सबूत साफ दर्शाते हैं की अभियोजन पक्ष आरोपी को दोषी सिद्ध नहीं कर सका।
शिकायतकर्ता उल्हास खेडकर को प्रबोधन जूनियर कॉलेज दरयापुर में 1984 को इलेक्ट्रिकल मैंटिनेंस इंस्ट्रक्टर की पोस्ट पर जॉइनिंग मिली थी। बाद में उन्हें लेक्चरर के पद पर प्रमोशन मिला। यह कॉलेज प्राइवेट मैनेजमेंट चलाता है इसलिए वेतन के लिए डेप्युटी डायरेक्टर की अनुमित चाहिए होती है। उल्हास को 1090 तक लगातार वेतन मिला लेकिन उसके बाद उनका वेतन बंद हो गया।
वह डायरेक्टर के दफ्तर गए वहां उनकी मुलाकात गोपाल से हुई। आरोप था कि यहां गोपाल ने उल्हास के आवेदन पर कार्रवाई करने से इनकार कर दिया। आरोप था कि उसने बकाया वेतन भुगतान के लिए उल्हास से 1,000 रुपये घूस मांगी। उसने यह भी दावा किया कि इसमें से कुछ रकम डायरेक्टर को भी जाती है।
उल्हास घूस नहीं देना चाहते थे इसलिए उन्होंने अमरावती ऐंटी करप्शन ब्यूरो में गोपाल के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। एसीबी ने 7 दिसंबर 1090 में गोपाल को गिरफ्तार कर लिया। एसीबी ने उन्हें रंगे हाथों घूस लेते पकड़ा था। निचली अदालत ने गोपाल को 2003 में दोषी पाते हुए सजा सुनाई थी। उन्हें बाद में जमानत मिल गई थी। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ वह 2003 में हाई कोर्ट गए थे।

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