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श्री लंका संकट से भारत की बढ़ी दुविधा, चिंता

कोलंबो, पड़ोसी देश श्री लंका इस वक्त अभूतपूर्व राजनीतिक संकट का सामना कर रहा है। लगातार नाटकीय मोड़ ले रहे पड़ोसी देश के इस संकट ने नई दिल्ली की दुविधा और चिंता भी बढ़ा दी है। श्री लंकाई संसद ने बुधवार को प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को पास किया। एक तरफ जहां रानिल विक्रमसिंघे आधिकारिक पीएम आवास में डटे हुए हैं तो दूसरी तरफ राजपक्षे संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग को अनैतिक बता रहे हैं। भारत न तो इससे पूरी तरह दूर रहकर मूकदर्शक बना रह सकता है और न ही इसमें दखल दे सकता है। वजह है इस द्वीपीय देश की हिंद महासागर में अहम भौगोलिक स्थिति, जो रणनीतिक तौर पर बहुत महत्वपूर्ण है।
भारत की चिंता
श्री लंका संकट भारत की चिंताओं का बढ़ाने वाला है। हिंद महासागर में श्री लंका की भौगोलिक स्थिति उसे भारत के लिए रणनीतिक तौर पर अहम बनाती है तो दूसरी ओर चीन के साथ उसकी लगातार बढ़ती नजदीकी नई दिल्ली के लिए चिंता की बात है। भारत को चिंता है कि उसके दक्षिणी तट के नजदीक स्थित दुनिया का सर्वाधिक व्यस्त शिपिंग रूट वाला यह द्वीपीय देश कहीं चीन का मिलिटरी आउटपोस्ट न बन जाए। हिंद महासागर में चीन के जहाजों की मौजूदगी बढ़ती ही जा रही है।
चीन का श्री लंका पर लगातार बढ़ रहा प्रभाव 
पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षा को चीन का करीबी माना जाता है। उन्होंने अपने कार्यकाल में चीन के महत्वाकांक्षी बेल्ट ऐंड रोड इनिशटिव के ज्यादातर प्रॉजेक्ट को हरी झंडी दी। ऐसे में जब 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में मैत्रीपाल सिरिसेना की जीत हुई तो इसे भारत की रणनीतिक जीत के तौर पर देखा गया। हालांकि, सिरिसेना के राष्ट्रपति बनने के बाद भी चीजों में बदलाव नहीं हुआ। उन्होंने भी चीन के ज्यादातर प्रॉजेक्ट्स को जारी रखा। इतना ही नहीं, श्री लंकाई राष्ट्रपति सिरिसेना ने एक बार यहां तक कहा कि उनके देश के लिए चीन का समर्थन बेहद जरूरी है।
भारत दखल से बचेगा
पड़ोसी देश में गहराते राजनीतिक संकट के बीच भारत वहां दखल देने से बच रहा है। राजपक्षे श्री लंका के एक लोकप्रिय नेता हैं। इस साल की शुरुआत में हुए स्थानीय चुनावों में उनकी पार्टी की बड़ी जीत हुई थी। सिंघलियों के बीच उनकी लोकप्रियता बहुत ज्यादा है क्योंकि उन्हें तमिल अलगाववादी संगठन एलटीटीई (लंका तमिल टाइगर्स इलम) को हराने वाले के तौर पर देखा जाता है।
दूसरी तरफ चीन भी इशारों-इशारों में भारत को मौजूदा श्री लंका संकट से दूर रहने को कह रहा है। श्री लंका में चीन के राजदूत राजपक्षे और विक्रमसिंघे दोनों से मुलाकात कर चुके हैं। चीन ने कहा है कि वह एक दोस्ताना पड़ोसी है जो दूसरे देशों के मामलों में अहस्तक्षेप के सिद्धांतों का पालन करता है। चीन का यह बयान भारत पर लक्षित है और इस तरह उसने भारत को भी श्री लंका के मामलों में अहस्तक्षेप के सिद्धांत पर चलने को कह रहा है।
इसके अलावा नेपाल की राजनीति में भारतीय दखल का उलटा परिणाम देखने को मिला था। श्री लंका में भी भारतीय दखल का उलटा नतीजा हो सकता है। इस वजह से भी भारत श्री लंका संकट को लेकर फूंक-फूंककर ही कदम उठाएगा।
लगातार नाटकीय मोड़ ले रहा श्री लंका का राजनीतिक संकट 
श्री लंका की में पिछले कुछ हफ्तों से एक के बाद एक कई नाटकीय सियासी घटनाएं हो रही हैं। पहले राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेना ने पिछले महीने 26 अक्टूबर को रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को पीएम बनाया। इसके बाद देशभर में जगह-जगह राजपक्षे और विक्रमसिंघे दोनों के समर्थक अपने-अपने नेताओं के पक्ष में सड़क पर उतरे। फिर संसद के स्पीकर ने राजपक्षे के पीएम मानने से इनकार किया। दांव उलटा पड़ता देख बाद राष्ट्रपति ने संसद भंग कर जनवरी में चुनाव का ऐलान किया। लेकिन इस फैसले को इस हफ्ते मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया। इसके अगले दिन यानी बुधवार को राष्ट्रपति सिरिसेना को एक और झटका लगा, जब संसद ने प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को पास कर दिया। राजपक्षे के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव पास होने के बाद स्थिति ऐसी है कि श्री लंका में आज की तारीख में कोई वैधानिक तौर पर मान्य प्रधानमंत्री ही नहीं है। रानिल विक्रमसिंघे अपने आधिकारिक आवास में डटे हुए हैं तो दूसरी तरफ राजपक्षे के बेटे अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग को अनैतिक ठहरा रहे हैं।

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