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कब, कहाँ, क्यों, कैसे बाबा विश्वनाथ का हुआ जीर्णोद्धार, पढ़ें पूरी कहानी

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Kashi Vishwanath Corridor: प्रधानमंत्री जब पहली बार काशी आए थे तो उनका मन मंदिर के आसपास की स्थिति देख व्यथित हो उठा था, मन में पीड़ा उठी कैसे हालत में हैं स्वयंभू, लेकिन अब उन्हें संतोष हैं कि वे सनातन धर्म के इस केंद्र को भव्य स्वरूप दे पाए हैं.

गंगा मैया कभी भगवान बाबा विश्वनाथ में पाव पखारती रही होंगी, समय के साथ गंगा मैया और बाबा विश्वनाथ के बीच  400 मीटर की दूरी ने काशी विश्वनाथ मंदिर को गंगा से दूर कर दिया. साल 1916 में महात्मा गांधी जब वाराणसी गए थे तब उन्होंने चिंता जताते हुए कहा था कि अगर हमारे मंदिर इस तरह के हाल में हैं तो देश कैसा होगा, तकरीबन 100 साल बाद पीएम मोदी ने वैसी ही चिंता जताते हुए इस काम को करने को कहा.

नरेंद्र मोदी ने इस पर अपना संतोष भी जताते हुए कहा था कि “शायद प्रभु की मर्ज़ी थी, उनका आदेश था कि जा बेटा तू इस स्थल का जीर्णोद्धार कर” पीएम ने आर्किटेक्ट बिमल पटेल को पहली बार कहा था, “ऐसा सुंदर और बढ़िया कॉरीडोर बनाओ जिससे गंगा से मंदिर जुड़ जाए, लोग गंगा स्नान करें या जल लेकर सीधे मंदिर जाएं, कोई रूकावट ना हो. उन्होंने कहा था कि एक ऐसा रास्ता बनाओ जिससे जाकर तीर्थयात्रियों का मन प्रफुल्लित हो जाए”

पीएम खुद करते रहे मास्टर प्लान का रिव्यू 

इस सपने को साकार करने के लिए पीएम खुद मास्टर प्लान का रिव्यू करते रहे. उन्होंने कई 3 D Animation देखे ,मैप देखा, पीएम मोदी ने आर्किटेक्ट को निर्देश भी दिया था कि घाट एरिया या दिव्यांगों के लिए व्यवस्था जैसे महत्वपूर्ण सुविधाओं का विशेष ख़्याल रखा जाए.

टोपोग्राफी और डेमोग्राफी के चलते बहुत मुश्किल कार्य, एक एक ईंच कंक्रीट से भरा था, अनिवार्य भूमि अधिग्रहण नहीं किया गया क्योंकि विवाद बढ़ता और समय लगता, लोग कोर्ट जाते, लेकिन आज एक भी मामला कोर्ट में नहीं है. पारस्परिक समझौते का उचित ,न्यायोचित और पारदर्शी तरीका बनाया गया और उसके आधार पर ही ज़मीन अधिग्रहण किया गया. कई सारी संपत्ति तो ऐसी थी जिसके कई स्वामी थे, वो अलग-अलग जगहों पर भी रहते थे उनमें कुछ विदेश भी थे. सबको एक साथ एक बोर्ड पर लाना मुश्किल काम था. जैसे एक मामले में 17 स्वामी थे जिनमें से कुछ विदेश भी थे, लेकिन सभी को कड़ी मेहनत के बाद एक साथ एक समझौते पर लाया गया. 

विवादित सम्पत्ति पर समझौते के लिए के एक कमिटी बनायी गयी, सर्किल रेट से दुगुनी कीमत तय कर बातचीत शुरू की गयी और धीरे-धीरे मामलों को हल तक पहुँचाया गया. मंदिर के लिए जो सम्पत्ति अधिग्रहीत की गयी वे संपत्ति तीन प्रकार की थी. प्राइवेट, ट्रस्ट और कस्टोडियन प्रॉपर्टी, जैसे संपत्ति जो भगवान के नाम पर हैं.

चाभी दो,चेक लो की चलाई मुहिम

इन सम्पत्ति पर क़ाबिज़ 90 प्रतिशत लोग ऐसे थे जो किरायेदार थे या अतिक्रमण कर के रह रहे थे. कॉमर्शियल ,रेसीडेंशियल हर तरह की सम्पत्ति पर समझौते का उनको अलग विकल्प दिया गया. कब्जा कर रहनेवाले लोगों से भी सेटलमेट किया और “चाभी दो,चेक लो” मुहिम चलाई गयी.

कुल 314 यूनिट जिसमें मकान, दुकान और मंदिर शामिल हैं उन्हें खरीदा गया. इनमें से 37 ट्रस्ट या संयुक्त प्रॉपर्टी थी, दुकानदार, वेंडर ,रहनेवाले जैसे 1400 लोगों का पुनर्वास किया गया. शुरू में कुछेक मामले कोर्ट में गए लेकिन आज एक भी मामला कोर्ट में नहीं है. कुछ लोगों के बीच विवाद की स्थिति में प्रशासन ने कोर्ट के बाहर सेटलमेंट भी कराया ताकि मंदिर कोरिडोर के काम में कोई रुकावट ना आ पाए, कुल लगभग 800 करोड़ रूपये इस पूरे प्रोजेक्ट पर खर्च हुए हैं.

पुनर्निर्माण के दौरान कई जगहों को तोड़ना काफी मुश्किल था. संकरी गलियों में मशीन नहीं जा सकती थी इसलिए मानव श्रम का ही सहारा लेकर काम किया गया, जब अतिक्रमण हटाने के क्रम में नए मंदिर घरों में दबे मिले तो उन्हें हटाया नहीं गया बल्कि उसे काशी विश्वनाथ धाम में मूल्य वर्धन और मंदिर सम्पदा के तौर पर देखा गया और उन्हें जस का टस रखते हुए मास्टर प्लान में बदलाव किया गया. 

2018 में बनाया गया काशी विश्वनाथ स्पेशल एरिया डेवलपमेंट बोर्ड 

कार्य शुरू होने से पहले 8 मार्च 2019 तक 60 प्रतिशत संपत्ति का अधिग्रहण हो गया था, पूरा काशी विश्वनाथन परिसर अब 5 लाख SQ FT में फैला हुआ है. 70 प्रतिशत खुला इलाका है जबकि 30 प्रतिशत क्षेत्र में मंदिर और अन्य इमारत हैं, इस पुनर्निर्माण के लिए काशी विश्वनाथ स्पेशल एरिया डेवलपमेंट बोर्ड 2018 में बनाया गया. कंसल्टेंसी, डिजाइन ,मास्टर प्लान सब व्यवस्थित तरीक़े से तैयार किया गया.

काशी विश्वनाथ का मंदिर सांस्कृतिक गौरव और आर्थिक गतिविधियों का केंद्र है. देश विदेश से बड़ी तादाद में पर्यटक भी यहाँ आते है, मंदिर जीर्णोद्धार के बाद वे सुनहरी यादें और गौरव की अनुभूति लेकर जाएँगे, आर्किटेक्ट ने मंदिर और कोरिडोर जीर्णोद्धार के वक्त ये ध्यान रखा कि गंगा घाट से मंदिर जाने के क्रम में दृष्टि और कदम का संतुलन ऐसा रहे जिससे दिव्य और भव्य दर्शन हो, प्रधानमंत्री मोदी स्पष्ट का निर्देश था कि मंदिर के वर्तमान स्वरूप में कोई छेड़छाड़ नहीं हो, सिर्फ़ पत्थरों की सफाई का काम किया जाए और वैसा ही किया गया.

एक बड़ी समस्या थी अफवाहों का फलना. दरअसल जो लोग ये प्रोजेक्ट रोकना चाहते थे वो अफवाह फैलाते रहे. पीएम मोदी का सख्त निर्देश था कि अफवाहों को फौरन तथ्यों के साथ काउंटर करें, जैसे एक मंदिर तोड़ने का वीडियो सोशल मीडिया पर फैलाया गया परिवार को हटाने का वीडियो फैलाया गया, यूपी सरकार ने ऐसे सारे वीडियो को फौरन फैक्ट्स के साथ काउंटर किया, निर्माण के दौरान भी सबकुछ खुला रखा गया कोई पाबंदी आने जाने पर नहीं रखी गयी कोई भी जा कर निर्माण की गतिविधियाँ देख सकता था.

निर्माण बड़ा चैलेंज था, सामग्री को साइट तक पहुंचाना बड़ी समस्या थी, आमतौर पर 1500-2000 श्रमिकों ने प्रतिदिन काम किया, आजकल तो 2600 तक श्रमिक काम कर रहे थे, कोविड के दौरान काम ज़रूर कम हुआ.

इलेक्ट्रॉनिक टाइम सिस्टम की व्यवस्था की जा रही है

दर्शनार्थियों के लिए इलेक्ट्रॉनिक टाइम सिस्टम की व्यवस्था की जा रही है, एक IT कंपनी द्वारा ऐसी व्यवस्था की जा रही है ताकि लोगों को लाइन लगाकर खड़ा ना रहना पड़े, उन्हें पता हो कि उनका समय कब आएगा और उस हिसाब से वे खुद मंदिर परिसर में पहुँच जाएँ, ऐसी व्यवस्था तैयार की जा रही है कि  4 से 5 हजार लोगों का सर्कुलेशन गर्भगृह में हार घंटे हो सके और पूरे परिसर में 50 हजार लोगों का इंटरनल सर्कुलेशन एक साथ होने पर भी कोई दिक़्क़त ना हो, सिक्योरिटी व्यवस्था को भी मंदिर के समरूप रखा गया है, 300 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे, बैगेज स्कैन, फायर सेफ्टी आदि का इंतज़ाम किया गया है, परिसर में मुमुक्षु भवन 50 लोगों के लिए रहने की व्यवस्था है यहाँ गेस्ट हाउस में 18 कमरे बनाए गए हैं जिन्हें ऑनलाइन भी बुक किया जा सकता है.

27 अलग अलग स्ट्रक्चर की स्थापित की जाएगी मूर्तियां

काशी विश्वनाथ परिसर में 27 अलग-अलग स्ट्रक्चर बनाए जा रहे जहां ऐसी मूर्तियां स्थापित की जाएंगी जो यहाँ से चोरी हो गयी थी या मंदिर में जीर्णोद्धार में जिनका अहम योगदान समय समय पर रहा है जैसे रानी अहिल्या बाई की मूर्ति भी यहाँ स्थापित की गयी हैं, रानी अहिल्या बाई ने ने 1780 काशी विश्वनाथ का जीर्णोद्धार कराया था. काशी विश्वनाथ में इस भगीरथ प्रयत्न के बाद माना जा रहा है कि अगले एक हज़ार वर्षों तक लगाई विश्वनाथ परिसर में किसी जीर्णोद्धार की आवश्यकता महसूस नहीं होगी.

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