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इत्र व्यापारियों पर छापे के बाद फिर चर्चा में आया कन्नौज, जानें इसका राजनीतिक इतिहास

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इत्र नगरी कन्नौज (Kannauj) समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) का पुराना और मज़बूत गढ़ है. कभी इस सीट से समाजवाद के सबसे बड़े चेहरे डॉ राम मनोहर लोहिया (Ram Manohar Lohia) सांसद रहे तो इटावा (Etawah) के सैफई के रहने वाले मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने भी अपने पड़ोस में स्थित कन्नौज में क्रांति रथ चलाकर अपने जड़े जमाई. हालांकि, मोदी लहर में समाजवादी पार्टी का किला ढह गया लेकिन अब भी समाजवादी यहां से कमज़ोर नहीं हुए हैं. ऐसे में आइए आपको बताते हैं कन्नौज और उसके राजनैतिक इतिहास के बारे में.

यूपी की राजधानी लखनऊ से क़रीब सवा सौ किलोमीटर दूर स्थित कन्नौज इटावा के बगल का एक ऐसा ज़िला है जो पहले फ़र्रुख़ाबाद का हिस्सा था. 90 के दशक में कन्नौज को अलग ज़िला बनाया गया. हालांकि कन्नौज लोकसभा सीट 1967 में ही बन गई थी. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी के रूप में 67 के चुनाव में लोहिया उतरे तो लोगों ने उन्हें संसद पहुंचा दिया. इसके बाद 90 के दशक में मुलायम सिंह यादव ने इस ज़िले में अपना प्रभाव बढ़ाया और ख़ुद भी यहां से सांसद रहे. मुलायम के बाद अखिलेश यादव और फिर 2 बार डिम्पल यादव कन्नौज सीट से सांसद रहीं.

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव 2019 में जीत की हैट्रिक लगाने की तैयारी में थीं लेकिन मोदी लहर में बीजेपी प्रत्याशी सुब्रत पाठक डिम्पल को हराकर संसद पहुंच गए. डिम्पल को चुनाव हारने के बाद राजनीति में ज़्यादा सक्रिय नहीं दिखाई देतीं लेकिन अखिलेश यादव अपने पुराने मज़बूत गढ़ को हमेशा याद करते हैं. अखिलेश जब 2022 के चुनाव के लिए रथ यात्रा निकाल रहे थे, तब भी 29 सितंबर को उन्होंने कन्नौज को ही चुना. ऐसे में एक चुनाव भले हार गए हों लेकिन अखिलेश कन्नौज को किसी भी हाल में छोड़ना नहीं चाहते.

कन्नौज के वरिष्ठ पत्रकार अरुण तिवारी बताते हैं कि लोहिया से लेकर मुलायम और अखिलेश के सक्रिय राजनैतिक भूमिका की वजह से कन्नौज हमेशा से समाजवाद का गढ़ माना गया. 67 में लोहिया यहां से सांसद बने. मुलायम सिंह यादव के अलावा अखिलेश यादव 2 बार और 2 ही बार डिंपल यादव सांसद रहीं. अरुण तिवारी मानते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी जीत भले गई हो लेकिन अब भी ऐसा लगता है कि समाजवादी पार्टी कन्नौज में मज़बूत है. कन्नौज में जीवन बिताने वाले अरुण तिवारी पीयूष जैन और पम्पी जैन को ठीक से जानते हैं. उनका दावा है कि पीयूष जैन विशुद्ध रूप से कारोबारी हैं, जबकि मुलायम सिंह यादव और अखिलेश को पैसों से मदद करने वाले पम्पी जैन ने जब राजनीति में कदम रखा तो वो सपा से जुड़े और एमएलसी बन गए. ऐसे में पीयूष जैन को लेकर जो राजनीतिक दावे किए जा रहे हैं, वो सही नहीं है.

कारोबारी पीयूष जैन के बाद पम्पी जैन और मलिक मियां के यहां छापेमारी के बाद से ही कन्नौज देशभर में चर्चा में है. पीयूष जैन के यहां 196 करोड़ रुपये कैश और 23 किलो सोना मिलने के बाद पम्पी जैन का नाम उछला. कहा गया कि छापा सपा के क़रीबी पीयूष जैन के यहां पड़ा. जबकि सच्चाई ये थी कि पीयूष जैन का सपा से कोई लेना देना नहीं था. कल शाम को ही अखिलेश यादव ने पीयूष जैन मामले में अपना पक्ष रखने कन्नौज आकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करने की घोषणा की तो आज सुबह पम्पी जैन के यहां इन्कम टैक्स की छापेमारी हो गई. अब अखिलेश यादव ने बीजेपी को सीधे सीधे निशाने पर लिया है. देखना होगा इस छापेमारी का क्या नतीजा निकलता है, क्या राजनैतिक फ़ायदा बीजेपी उठा लेती है या फिर अखिलेश अपने पुराने गढ़ में अपनी पैठ बनाने में कामयाब रहते हैं.

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