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यूपी में आसान नहीं है सीएम योगी की राह, ‘BM’ वोट हासिल करना बड़ी चुनौती

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UP Election 2022: देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में अगले साल (2022) विधानसभा चुनाव होना है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) जहां एक बार फिर सत्ता पर काबिज होने की कोशिश में जुटी है तो समाजवादी पार्टी (सपा) पांच साल और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अपना 10 साल का सियासी वनवास खत्म करना चाह रही है. इस बार का चुनाव बीजेपी के लिए चुनौती से भरा होगा. 2017 के चुनाव में 311 सीटें जीतने वाली बीजेपी इस बार क्या कमाल करती है ये निर्भर करता है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम और काम पर.

ये तय माना जा रहा है कि योगी आदित्यनाथ बीजेपी के सीएम फेस होंगे, लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या ये पार्टी के लिए फायदेमंद होगा. बीजेपी ने 2017 का चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा था. पार्टी को इसका जबरदस्त फायदा मिला. बाद में मुख्यमंत्री का ताज योगी आदित्यनाथ के सिर सज गया. बीजेपी आमतौर पर मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर अपने पत्ते नहीं खोलती है. जिस राज्य में वह सियासी वनवास खत्म कर वापसी की कोशिश कर रही होती है वहां पर वह चुनावी नतीजों के बाद ही मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान करती है, लेकिन जब वह दोबारा वापसी के साथ चुनाव में उतरती है तो मुख्यमंत्री के चेहरे की घोषणा कर चुकी होती है. 

ये हमने महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे राज्यों में देखा है. महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में उसे सीएम फेस के साथ उतरना महंगा पड़ा था, जबकि गुजरात में उसे कड़ी टक्कर मिली थी.  

यूपी में बीजेपी के सामने होंगी ये चुनौतियां

योगी आदित्यनाथ बीते 5 वर्षो में प्रदेश में बीजेपी के सबसे बड़े चेहरे के रूप में सामने आए हैं. हालांकि, पार्टी के अंदर ही योगी के कई विरोधी हैं. एक गुट ऐसा है जो चाहता है कि योगी को आगे कर चुनाव लड़ने का ऐलान हो तो दूसरा खेमा चाहता है कि चुनाव बाद मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान हो. योगी आदित्यनाथ को सीएम फेस बनाने के बाद बीजेपी को ऐसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.

UP Election 2022: यूपी में कितनी आसान है सीएम योगी की राह? क्या 'BM' वोट हासिल करना बनेगी बड़ी चुनौती?

क्या ब्राह्मण (Brahmin) और ठाकुर को साथ ला पाएगी बीजेपी- यूपी में ब्राह्मण और ठाकुर चुनावों में अहम रोल निभाते हैं. ये किसी भी पार्टी के भविष्य का फैसला रखने का माद्दा रखते हैं. ये दोनों जातियां बीजेपी की ही वोटर मानी जाती हैं. बीजेपी इन्हें नाराज करना भी नहीं चाहती है.

साल 2017 में जब बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया था तो दिनेश शर्मा को उप-मुख्यमंत्री बनाकर ब्राह्मण-ठाकुर के संतुलन का महत्व स्पष्ट देखा जा सकता था. लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है. ये सारी बातें 2017 के चुनाव के बाद की थी.  अब 2022 में योगी सीएम फेस होंगे और क्या ब्राह्मण उनके पक्ष में वोट करेंगे, ये देखना होगा. ऐसा हम इस वजह से कह रहे हैं कि क्योंकि योगी जिस गोरखपुर के सांसद रह चुके हैं वहीं पर ब्राह्मण उनसे नाराज बताए जाते हैं. कहा जाता है कि गोरखपुर या उसके आस-पास के ब्राह्मण योगी को पसंद नहीं करते हैं.

इसपर जब हमने वरिष्ठ पत्रकार अभय कुमार दुबे से बात की तो उन्होंने साफतौर पर कहा, ‘मुसलमानों के वोट बीजेपी को मिलेंगे ही नहीं. लेकिन हां ब्राह्मण के वोट वो जरूर हासिल करने की कोशिश करेगी. अच्छे खासे पैमाने पर उन्हें ब्राह्मण के वोट मिलेंगे भी. हालांकि उतने नहीं मिलेंगे जितने पिछले चुनाव में मिले थे, क्योंकि जबसे योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया गया है तब से ब्राह्मण मतदाताओं ने अपने वोटों पर पुनर्विचार करना शुरू कर दिया है. क्योंकि जिस तरह से योगी आदित्यनाथ ने सरकार चलाई है उससे वो नाखुश हैं.’ 

अभय कुमार दुबे का मानना है, ‘योगी आदित्यनाथ जी पर पहला आरोप तो ये है कि उन्होंने यूपी में ठाकुरवाद चलाया. हालांकि वो योगी हैं, उन्हें जातिवाद नहीं चलाना चाहिए था. जो ब्राह्मण बाहुबली थे उनके एनकाउंटर किए गए. ऐसे आरोप उनपर लगते रहे हैं. जो ब्राह्मण वोटर हैं वो मानते हैं कि 5 साल जो सरकार चली वो बीजेपी की सरकार नहीं थी, वो राजपूत की सरकार थी.’ 

उन्होंने आगे कहा, ‘जिस तरह की नियुक्तियां हुईं, ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जहां उच्च पदों पर राजपूत को प्रमुखता दी गई. इन कारणों से बीजेपी को उतने ब्राह्मण वोट नहीं मिलेंगे जो 2017 में मिले थे. ब्राह्मण की प्रमुख समस्या ये है कि उनके पास कोई ऐसा विकल्प नहीं है जहां वो बीजेपी को छोड़कर जा सकें. कांग्रेस मजबूत होती तो वे उन्हें वोट दे सकते थे.’

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योगी की कट्टरवादी हिंदुत्व छवि- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद योगी आदित्यनाथ बीजेपी के दूसरे सबसे बड़े हिंदुत्ववादी चेहरा बनकर उभरे हैं. योगी आदित्यनाथ जब सांसद थे तो मुस्लिम समाज (Muslims) के खिलाफ जहर उगलते थे, लेकिन 2017 में सीएम बनने के बाद वह वैसी भाषा इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं. उन्हें भी लग गया है कि सत्ता पर काबिज रहना है तो मुसलमानों का भी साथ जरूरी है. लेकिन वे योगी को कितना पसंद करते हैं ये तो 2022 में मालूम पड़ेगा.  यूपी में मुसलमान वोटरों की संख्या करीब 19 फीसदी है. वे 100 से ज्यादा सीटों पर हार-जीत तय करने की स्थिति में बताए जाते हैं. योगी को सीएम फेस बनाने से बीजेपी को इस चुनौती से भी पार पाना होगा.

क्या योगी तोड़ पाएंगे ये परंपरा- यूपी की जनता अलग-अलग पार्टियों को सत्ता पर काबिज होने का मौका देती है. हाल के चुनावों में उसने लगातार दो बार किसी एक पार्टी को जीत का स्वाद नहीं चखाया है. योगी आदित्यनाथ के पास इससे आगे निकलने का मौका है और लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने की उनके सामने चुनौती है. लेकिन क्या योगी तोड़ पाएंगे ये परंपरा?

इसपर अभय कुमार दुबे ने कहा, ‘इसकी कोई गारंटी नहीं है. बीजेपी सपा, बसपा के मुकाबले बहुत मजबूत पार्टी है. उसके पास बहुत संसाधन हैं. उसके पास चुनाव लड़ने की मशीन है. बीजेपी को हारने के लिए पिछले चुनाव के मुकाबले में 10-15 फीसदी वोटों की गिरावट चाहिए. 100 से ज्यादा सीटें कम होनी चाहिए. क्या ये संभव होगा. मुझे नहीं लगता है कि बीजेपी खराब स्थिति में है. हां, लेकिन बीजेपी 2017 के मुकाबले असहज स्थिति में है.’

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