राष्ट्रीय

नागालैंड में AFSPA वापसी की ओर, मणिपुर में सियासी शोर, क्या चुनावी मुद्दा बनेगा स्पेशल एक्ट

[responsivevoice_button voice="Hindi Female"]

[ad_1]

Manipur Election and AFSPA: मणिपुर में सियासी शोर है, चुनाव प्रचार में पूर्वोत्तर में विकास की कहानी के किस्सों का जिक्र हो रहा है, लेकिन ऐसे में एक ऐसी चीज हैं, जिसका जिक्र भी धीरे-धीरे होने लगा है. नागालैंड में हाल ही में हुई हिंसा के बाद वहां AFSPA कानून को हटाने की बात शुरू हुई. इसको लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने असम और नागालैंड के मुख्यमंत्रियों के साथ मीटिंग की. नागालैंड सरकार के मुताबिक राज्य से AFSPA को हटाने के लिए समिति बना दी गई है. जिसकी सिफारिशों के आधार पर राज्य से AFSPA को वापस लिया जा सकता है. ऐसे में Manipur में भी AFSPA चुनावी मुद्दा बनता हुआ नजर आ रहा है. सबसे पहले ये जान लेना जरूरी है कि आखिर ये क्या है और कहां-कहां ये इस वक्त लागू है.

क्या है AFSPA ?

आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट यानि (AFSPA) संसद द्वारा बनाया गया कानून है, जिसे साल 1958 में लागू किया गया था. इस कानून को अशांत-क्षेत्र में लागू किया जाता है, जहां राज्य सरकार और पुलिस-प्रशासन कानून-व्यवस्था संभालने में नाकाम रहती है. ये ऐसी ‘खतरनाक स्थिति’ में लागू किया जाता है जहां पुलिस और अर्द्धसैनिक बल आतंकवाद, उग्रवाद या फिर बाहरी ताकतों से लड़ने में नाकाम साबित होती हैं.

शुरुआत में इसे अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैण्ड के ‘अशांत क्षेत्रों’ में तैनात सैन्‍य बलों को शुरुआत में इस कानून के जरिए स्पेशल पावर दी गई थीं. हालांकि कश्मीर घाटी में आतंकवादी घटनाओं में बढोतरी होने के बाद जुलाई 1990 में यह कानून जम्मू-कश्मीर में भी लागू किया गया.

इस वक्त कहां लागू है AFSPA ?

इस वक्त देश में ये कानून जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) के अलावा नागालैंड (Nagaland), असम (Assam), मणिपुर (राजधानी इम्फाल के सात विधानसभा क्षेत्रों को छोड़कर) और अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) के कुछ हिस्सों लागू है. त्रिपुरा, मिजोरम और मेघालय से इस कानून को हटा दिया गया है. नागालैंड से भी गठित की गई समिति की सिफारिशों के बाद इस कानून को हटाया जा सकता है. ऐसे में मणिपुर में इसके राजनीतिक मुद्दे के रूप में सुलगने के आसार हैं.

इरोम शर्मिला का जिक्र भी जरूरी

जब AFSPA के विरोध का जिक्र आता है तो मणिपुर की आयरन लेडी इरोम शर्मिला को नहीं भुलाया जा सकता. साल 2000 में नवंबर के महीने में राज्य में बस स्टैंड के नजदीक सैन्य बलों ने 10 लोगों को गोली मार दी. घटना जिस वक्त हुई, उस वक्त वहां इरोम मौजूद थीं. उन्होंने इस घटना के विरोध में भूख हड़ताल शुरू कर दी, जो करीब 16 साल चली. साल 2016 में उनकी भूख हड़ताल खत्म हुई तो इरोम चुनाव के मैदान में भी उतरीं. हालांकि वो जीत हासिल नहीं कर सकीं. 

विरोध में हुआ था नग्न प्रदर्शन

AFSPA का मणिपुर में विरोध साल 2004 में भी शुरु हुआ, जब मणिपर की 30 महिलाओं ने नग्न होकर प्रदर्शन किया था. इस प्रदर्शन की वजह ये रही कि सेना के जवानों पर 32 वर्षीय महिला के साथ 10-11 जुलाई 2004 को रेप का आरोप लगाया गया था.

AFSPA का विरोध क्यों?

राज्यों में राजनेताओं के साथ ही समय-समय पर मानवाधिकार कार्यकर्ता भी इस कानून का विरोध करते रहे हैं. आरोप लगता रहा है कि इससे मिली स्पेशल पावर का दुरुपयोग होता रहा है. फेक एनकाउंटर, मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और हिरासत में टॉर्चर जैसे आरोप भी कई मामलों में लगाए जा चुके हैं. इस कानून के तहत अर्धसैनिक बलों पर मामला चलाने के लिए केंद्र की मंजूरी लेनी जरूरी होती है. मणिपुर एनकाउंटर मामलों में सुप्रीम कोर्ट अफस्पा कानून और सेना की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर चुका है. 

कब लागू होता है AFSPA

AFSPA तब लगाया जाता है, जब किसी क्षेत्र को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया जाता है. नस्लीय, भाषायी, क्षेत्रीय समूहों, जातियों और समुदायों के बीच मतभेद के चलते भी किसी क्षेत्र को अशांत क्षेत्र घोषित किया जाता है. ऐसे में शांति बहाल करने के उद्देश्य से AFSPA लागू किया जाता है, जिसके तहत आर्म्ड फोर्सेज को स्पेशल पावर मिलती हैं. किसी भी क्षेत्र को केंद्र, राज्य के राज्यपाल, केंद्र शासित प्रदेश के उपराज्यपाल अशांत क्षेत्र घोषित कर सकते हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय हर छह महीने के लिए (AFSPA) कानून को लागू करता है और जरूरत पड़ने पर फिर से इसे लागू करने के लिए अधिसूचना जारी कर देता है. 

अफस्पा से सैन्य बलों को मिलते हैं ये अधिकार

AFSPA कानून के तहत सैनिकों को बिना किसी अरेस्ट वॉरेंट के किसी भी नागरिक को गिरफ्तार करने का अधिकार है. हालांकि अब गिरफ्तार व्यक्ति को पुलिस के हवाले ही कर दिया जाता है. इसके अलावा गोली चलाने के लिए भी किसी की इजाजत नहीं लेनी पड़ती है. अगर सेना की गोली से किसी की मौत हो जाती है तो उसपर हत्या का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है. अगर राज्य सरकार या फिर पुलिस-प्रशासन सैनिक या फिर सेना की किसी यूनिट के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज कर भी लेती है तो अदालत में अभियोग के लिए केंद्र सरकार की इजाजत जरूरी होती है. 

 

[ad_2]

Source link

Aamawaaz

Aam Awaaz News Media Group has been known for its unbiased, fearless and responsible Hindi journalism since 2018. The proud journey since 3 years has been full of challenges, success, milestones, and love of readers. Above all, we are honored to be the voice of society from several years. Because of our firm belief in integrity and honesty, along with people oriented journalism, it has been possible to serve news & views almost every day since 2018.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button