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महाराजगंज में सरकार के कामकाज से खुश नहीं दिखे लोग, चार सीटों पर जीत दोहरा पाएगी बीजेपी?

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यूपी चुनाव को लेकर एबीपी न्यूज की चुनावी यात्रा महाराजगंज जिले में पहुंची. इस जिले में कुल 5 विधानसभा सीटें हैं. जिनमें से चार सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. लेकिन इस बार यहां जनता का मूड क्या है और वो किसे सबसे ज्यादा पसंद करने वाली है. ये सवाल फिलहाल बरकरार है. 

लोक कलाकार लोगों तक पहुंचा रहे सरकारी योजनाएं
उत्तर प्रदेश के महाराजगंज का फरुवाही नृत्य काफी मशहूर है. फरुवाही नृत्य मतलब लोगों को इकट्ठा करना और उन तक अपनी बात पहुंचाना. लेकिन पिछले कुछ सालों से सरकारी योजनाओं में इसका इस्तेमाल हो रहा है. फरुवाही नृत्य में ढोल बजाकर लोगों को इकट्ठा किया जाता है, जिसके बाद सरकारी योजनाओं को लोगों तक उनकी ही भाषा में पहुंचाने का काम होता है. भाजपा अपनी योजनाओं ‘बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ’, घर-घर शौचालय और बाकी तमाम योजनाओं को इसी तरह लोगों तक पहुंचाने का काम कर रही है.

इस नृत्य के साथ 18 सालों से जुड़े शख्स ने बताया कि, “नृत्य करते वक़्त जनता वहां जमा हो जाती है और जब भीड़ लग जाती है तो तब मैं सरकारी योजनाओं को गीत के माध्यम से गाकर लोगों को बताता हूं. शौचालय बहुत अच्छा बनवाया, रास्ते परिवर्तन भी हो रहे हैं, अब जब शौचालय बन गया है तो लोग रास्ते में नहीं जाते हैं. हम लोगों को समझाते हैं कि शौचालय बनवा लीजिये वरना आपका बेटी, बहू को दूर खेत में जाना होगा. आप लोग देखेंगे होंगे कि अखबारों में आता रहता है कि लड़कियां बाहर गईं तो लड़के उन्हें छेड़ते हैं. शौचालय रहेगा तो बेटी-बहू बाहर नहीं जाएगी और घर में ही रहेगी.”

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‘समाजवादी पार्टी ने किया विकास’
नर्तकी ने बताया कि, “2017 तक समाजवादी पार्टी थी. समाजवादी पार्टी ने भी बहुत विकास किया. सभी सरकारों से समाजवादी पार्टी ने सबसे ज़्यादा विकास किया.” उसने आगे कहा कि, हर सरकार आती है तो अपनी योजना जनता तक पहुंचाने के लिए इस प्रक्रिया को अनुसरण करती है. यानी समाजवादी पार्टी हो, बसपा हो, भाजपा हो, कांग्रेस की सरकार हो दिल्ली में केंद्र में… सभी की बात लोगों तक पहुंचाई जाती है. नृत्य करते हैं घुंघरू बजाकर. जब लोगों को बुलाना होता है, भीड़ जमा करनी होती है तो इसके लिए तरह-तरह की प्रक्रिया होती है. क्योंकि कलाकार अपनी कला से लोगों तक आसानी से बात पहुंचाते हैं, इसलिए इसका इस्तेमाल किया जाता है.

अपने हक की मांग कर रहा गोरखा समुदाय
महाराजगंज भारत-नेपाल की सीमा पर है. नेपाल के साथ भारत का रिश्ता रोटी-बेटी का है. जानकी भी यानी की मां सीता भी नेपाल से ही थीं, यहां का गोरखा समुदाय जो पिछले कई दशकों से भारत में रह रहा है और उसके लोग यहां वोट भी डालते हैं. महाराजगंज की नौतनवा विधानसभा में क़रीब तीन हज़ार लोग हैं जो इस समुदाय से हैं और वोट भी करते हैं. सेना में इनकी बड़ी भूमिका रहती है. सैम मानेकशॉ ने कहा था यदि तुम्हें मौत से डर नहीं लगता तो या तो तुम झूठ बोल रहे हो या फिर तुम एक गोरखा हो. नेपाल की सीमा से करीब 1 किलोमीटर दूर रहने वाले इन लोगों की क्या समस्याएं हैं हमने जानने की कोशिश की.

गोरखा समुदाय के एक शख्स ने अपनी मुश्किलों को साझा करते हुए कहा कि, “चुनाव के मुद्दे तो बहुत हैं लेकिन मैं चाहता हूं कि जो हमको सहयोग करता है, उसे ही हम वोट करेंगे. मुद्दों की बात करें तो हम लोग ओबीसी दर्जे की मांग कर रहे हैं. लेकिन हम जैसे ही दस्तावेज लेकर जाते हैं तो गोरखा बोलकर हमें टाल दिया जाता है. हम लोग ना अगली जाति में है ना पिछली जाति में हैं. हम लोग का कुछ नहीं हैं. भारत सरकार हमारी वीरता को देख रही है, आज या कल पक्का हमें समझा जाएगा. मैं उत्तर प्रदेश सरकार को बताना चाहूंगा कि हम लोगों को भी हक़ दिया जाए. हमारे कद के चलते पुलिस में नहीं लिया जाता, लेकिन मैं सरकार से कहना चाहता हूं कि हमारे लिए छूट देते हुए पुलिस में लिया जाए. 

2011 की जनगणना के अनुसार महाराजगंज जिले की जनसंख्या 2,684,703 है, जो लगभग कुवैत या अमेरिकी राज्य नेवादा के बराबर है. यह इसे भारत में (कुल 640 जिलों में से) 148वें स्थान पर रखता है. अधिकांश आबादी द्वारा हिंदू धर्म का पालन किया जाता है. महाराजगंज जिले में बौद्ध धर्म का पालन करने वाले लोगों की आबादी सबसे अधिक है. 

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लकड़ी उद्योग से जुड़े लोगों ने कहा – सरकार ने नहीं किया काम
लकड़ी उद्योग से जुड़े शख्स ने बताया कि, “5 वर्षों में कुछ भी नहीं बदला है क्योंकि “लकड़ी बाउल क्षेत्र” है और लकड़ी के कई सामान मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में जाते हैं. सरकार ने हमें कोई सुविधा नहीं दी और ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग अन्य जगहों से आते हैं, लेकिन जंगल और वापस चले जाते हैं. इस राज्य के कई लोग काम के सिलसिले में बाहर जा रहे हैं. मैं चाहता हूं कि इस क्षेत्र के लोग यहीं काम करें. हमें कोई सुविधा नहीं मिली. किसी भी पहल के लिए एक रुपया भी नहीं दिया गया है,” 

करीब 10 हजार दुकानों में, जंगल से लाई गई और कई चीजों को बनाने के लिए उपयोग में लाए जाने वाली लकड़ियां होती हैं. लेकिन चुनौती यह है कि इस कोविड समय में जब लोग यहां नहीं आ रहे हैं और यहां ऑनलाइन सुविधा भी अपडेट नहीं है. तो यह लोग अलग-थलग पड़ गए हैं और उद्योग को भी भारी झटका लगा है.

महाराजगंज में बीजेपी की इस बार कितनी तैयारी?
महराजगंज जिले में 5 विधानसभा सीटें हैं. 5 सीटों में से 4 सीटें बीजेपी के और एक अन्य के हाथ में है. इसलिए बीजेपी को पूरा विश्वास है कि वो इस बार फिर से ऐसा करेंगे. सदर के विधायक जय मंगल कनौजिया ने हमसे बात करते हुए कहा कि, “अब कोई मुद्दा नहीं बचा है. हमारी विधानसभा में मुख्य मुद्दा स्वास्थ्य के क्षेत्र में मेडिकल कॉलेज का था जिसकी घोषणा पिछले माह आदरणीय मुख्यमंत्री ने की थी. वहीं मेडिकल कॉलेज का काम भी शुरू हो चुका है. मुख्य बात महाराजगंज की सड़क थी जो अन्य विधानसभा के अधीन थी. सड़क महाराजगंज की नहीं थी जो 1960 में बनी थी. इसका शिलान्यास मेरे द्वारा किया गया है और काम भी शुरू हो गया है.”

वहीं जब हमने समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक कुंवर कौशल सिंह से बात की तो उन्होंने बताया कि, “इस ज़िले में नहीं, बहुत ज़िलों में हमारे विधायक नहीं रहें हैं और उसके पहले बहुत ज़िले में भाजपा के विधायक नहीं थे. अबकी बार बहुत ज़िलों में हमारे विधायक दिखाई देंगे और भाजपा के लोग दिखाई नहीं देंगे.” पूर्व विधायक ने बताया कि, “भाजपा आयी तो भाजपा जुमलेबाज़ी में आयी. मोदी जी ने कहा कि हम आपको 15 लाख रुपया खाते में देंगे. हम दो करोड़ लोगों को नौकरी देंगे. ये दोनों जगह फेल हो गए. 

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