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रोज़ी-रोटी के ‘जख्म’ पर कोरोना ने रगड़ा नमक, चुनावी राज्यों में भयावह हैं बेरोजगारी के आंकड़े

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Assembly Elections 2022: उत्तर प्रदेश समेत 5 राज्यों में चुनावी बिगुल बज चुका है. 10 मार्च को नतीजे आने के साथ ही यह पता चल जाएगा कि जनता ने किस राज्य की गद्दी किस पार्टी को सौंपी है. लेकिन उससे पहले चुनावी वादों की बौछार शुरू हो गई है. रोजगार से लेकर लैपटॉप-स्कूटी तक के वादे जनता से किए जा चुके हैं. 

रोजगार हर इंसान की जरूरत है क्योंकि इसी से घूमता है जिंदगी का पहिया. रोटी कपड़ा और मकान एक आम आदमी की जिंदगी की पूरी जद्दोजेहद इसी के आसपास है.चुनावों में रोजगार का मुद्दा खूब उछलता है लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद ये गुम हो जाता है. 

सबसे पहले आपको बताते हैं चुनावी राज्यों में रोजगार का वो आंकड़ा जो ये बताता है कि पार्टी कोई भी हो, राज्य में सत्ता किसी की भी हो जो वादे पार्टियों ने रोजगार को लेकर किए उस पर वो खरे नहीं उतरे. ये सच है कि इस दौर में कोरोना की महामारी ने हालात काफी खराब कर दिए  हैं लेकिन उसके बावजूद तस्वीर ऐसी क्यों है ये सवाल जरूर है.

युवाओं को क्या चाहिए. सिर्फ रोजगार. क्योंकि रोजी होगी तभी तो घर में रोटी होगी. लेकिन देश में बेरोजगारी के जो आंकड़े आए हैं, वो बता रहे हैं कि संकट रोजी और रोटी दोनों पर है.खासतौर पर पांच में से उन तीन राज्यों में जहां कुछ दिनों में चुनाव होने हैं. Centre for Monitoring Indian Economy यानि CMIE के मुताबिक:

  • योगी सरकार के सत्ता में आने से दो महीने पहले यूपी में बेरोजगारी दर 3.70% थी…जो दिसंबर 2021 में बढ़कर 4.90% हो गयी है
  • जनवरी 2017 में पंजाब में 5.60% बेरोजगार थे, अब बढ़कर 6.80% हो गए हैं
  • उत्तराखंड में तो बेरोजगारी की बाढ़ सी आ गई है….जनवरी 2017 में 0.60% आबादी बेरोजगार थी, अब रिकॉर्ड 5% बेरोजगार हैं.

मतलब ये कि रोजगार के पैमाने पर तीनों चुनावी राज्यों की सरकारें खरी नहीं उतर सकीं. रोजगार के मुद्दे को भुनाने की भी जमकर कोशिश हो रही है.अब अगर उत्तर प्रदेश की बात करें तो विपक्ष तो इसे मुद्दा बना ही रहा है अब बीजेपी के अपने भी रोजगार का बहाना लेकर दूसरे ठौर की तरफ जा रहे हैं. हालांकि बेरोजगारी के बढ़े आंकड़ों में इस बार एक बड़ा फैक्टर कोराना भी है CMIE से अलग श्रम मंत्रालय ने भी पिछले साल जुलाई से सितंबर के बीच रोजगार के आंकड़े जारी किए हैं. तिमाही रोजगार सर्वेक्षण के मुताबिक:

  • मैन्युफैक्चरिंग, निर्माण, व्यापार, परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और रेस्तरां, आईटी और वित्तीय सेवाओं जैसे 9 क्षेत्रों में रोजगार के आंकड़े बढ़े हैं
  • अप्रैल-जून 2021 में इन्हीं नौ क्षेत्रों में कुल रोजगार की संख्या 3.08 करोड़ थी लेकिन जुलाई-सितंबर, 2021 में बढ़कर 3.10 करोड़ पर पहुंच गई है

सरकारी आंकड़ों में मौसम भले ही गुलाबी लगे लेकिन स्याह सच ये है कि देश में ऐसे बेरोजगारों की संख्या लाखों-करोड़ों में है, जिनके पास रोजगार नहीं है. हिन्दुस्तान के चुनावी इतिहास में किसी भी पॉलिटिकल पार्टी का घोषणापत्र उठा कर देखेंगे तो उसमें एक बात जरूर लिखी होगी कि अगर पार्टी सत्ता में आई तो इतने लोगों को रोजगार मिलेगा. नंबर सबके अलग होते हैं लेकिन वादा एक होता है.दरअसल ये वादे सीधे उन सपनों से जुड़ जाते हैं जो एक युवा देखता है.लेकिन हुआ क्या.नवंबर 2021 में हुए सरकारी सर्वे की ये रिपोर्ट देखिए. ये आंकड़ा 15 से 29 साल के उन 3 राज्यों के नौजवानों के रोजगार का हाल बता रहा है जहां चुनाव हो रहे हैं:

  •  यूपी में कोरोना से पहले यानी जनवरी से मार्च 2020 में 15 से 29 साल के नौजवानों की बेरोजगारी दर 21.8 फीसदी थी, जो एक साल बाद बढ़कर 23.2 फीसदी हो गई.
  •  पंजाब में 15 से 29 साल के नौजवानों की बेरोजगारी दर 21.2 फीसदी थी जो जनवरी से मार्च 2021 में थोड़ी कम हुई और 20.4 फीसदी तक पहुंची.
  •  उत्तराखंड में जनवरी से मार्च 2020 के बीच ये बेरोजगारी दर थी. 21.5 फीसदी जो जनवरी से मार्च 2021 में बढ़कर 34.5 फीसदी हो गई. 

कोरोना काल में रोजगार गए. नौकरियों में कमी आई, इस सच से कोई इनकार नहीं कर सकता लेकिन एक सच ये भी है कि जितनी कोशिश सरकारों को रोजगार के क्षेत्र में करनी चाहिए उतनी नहीं की गई. लेकिन चुनाव है तो हर पार्टी वादों के साथ मैदान में है. 

साल 2017 में चुनाव से पहले कांग्रेस ने पंजाब के लोगों को घर-घर नौकरी देने का वादा किया था. पर सरकार वादा पूरा नहीं कर पाई.  ये सिर्फ चुनावी स्टंट था. लोग इंतजार करते रहे पर सरकार ने कोई नौकरी नहीं दी. लोगों को चरणजीत सिंह चन्नी के आने से कुछ उम्मीद जगी थी पर वो भी बेकार गई. 

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