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ज़िम्बाब्वे में वोटिंग जारी मुगाबे के बिना पहला चुनाव

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अफ्रीकी देश ज़िम्बाब्वे में मतदान शुरू हो गया है. ये चुनाव खास हैं क्योंकि ये पहली बार है जब रॉबर्ट मुगाबे की भागीदारी के बिना चुनाव हो रहे हैं.
37 सालों तक सत्ता पर काबिज रहे रॉबर्ट मुगाबे को बीते साल राष्ट्रपति पद छोड़ना पड़ा था. उन्होंने इसे ‘सैन्य तख़्तापलट’ बताया था.
रॉबर्ट मुगाबे की सत्ता से विदाई के बाद उनके क़रीबी सहयोगी और पूर्व उप राष्ट्रपति इमरसन मनंगाग्वा को राष्ट्रपति बनने का मौका मिला था.
अब देश में हो रहे चुनाव में सत्ताधारी पार्टी ज़ानू-पीएफ़ ने उन्हीं को उम्मीदवार बनाया है. उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी हैं विपक्षी पार्टी एमडीसी के उम्मीदवार नेल्सन चमीसा.
इस बीच 94 साल के पूर्व राष्ट्रपति मुगाबे ने सत्ता से हटाए जाने के बाद पहली बार मीडिया को संबोधित किया. मतदान से पहले अचानक सामने आकर मुगाबे ने एक समय अपने क़रीबी रहे इमरसन मनंगाग्वा को आड़े हाथों लिया.मुगाबे ने कहा था कि वे इमरसन मनंगाग्वा को वोट नहीं देंगे.
संभावना जताई जा रही है कि पहली बार वोट कर रहे युवा वोटर काफ़ी संख्या में शामिल होंगे. आधे से ज़्यादा रजिस्टर्ड वोटरों की उम्र 35 साल से कम है.
सैंकड़ों अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को नियुक्त किया गया है ताकि वोटिंग सुचारू रूप से हो सके. हालांकि विपक्ष लगातार वोटर लिस्ट में ग़लतियों की बात उठा रहा है.
विपक्ष ने बैलट पेपर की सुरक्षा और ग्रामीण इलाकों में वोटरों को धमकाने का मुद्दा भी उठाया है.
पिछली सत्ता ने ज़िम्बाब्वे के लिए कई आर्थिक चुनौतियां खड़ी कर दी थीं जैसे निवेश, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं में भारी कमी. अनुमान कहते हैं कि बेरोज़गारी दर 90 फ़ीसदी पहुंच गई है.
चुनाव प्रचार के आख़िरी दिन ज़िम्बाब्वे की दोनों प्रमुख पार्टियों ज़ानू-पीएफ़ और एमडीसी के उम्मीदवारों ने राजधानी हरारे में अपने समर्थकों की रैलियों को संबोधित किया.
ज़ानू-पीएफ़ के उम्मीदवार और मौजूदा राष्ट्रपति मनंगाग्वा ने मतदाताओं से वादा किया कि वो ‘जीतने के बाद नया जिम्बाब्वे बनाएंगे’.
उन्होंने कहा, “सोमवार को हम चुनाव जीतने जा रहे हैं. हम आज या कल के लिए नहीं, भविष्य के लिए मतदान कर रहे हैं. हम आने वाली पीढ़ियों के लिए मतदान कर रहे हैं. हम मिलकर अपनी प्यारी जन्मभूमि को आगे बढ़ाएंगे. हम मिलकर नया ज़िम्बाब्वे बनाएंगे.”
वहीं मनंगाग्वा के प्रतिद्वंद्वी एमडीसी के उम्मीदवार नेल्सन चमीसा ने भी जीत का दावा किया. उन्होंने यहां तक कह दिया कि मौजूदा सरकार दिशाहीन है.
चमीसा 25 साल की उम्र में सांसद बने थे और अगर जीतते हैं तो सबसे युवा राष्ट्रपति होंगे.
चमीसा ने कहा, “देश में अगली सरकार हमारी बनने जा रही है. इस बात में कोई शक नहीं कि विजेता हम हैं. अगर हम सोमवार को मौका गंवाते हैं तो हमेशा के लिए अभिशप्त हो जाएंगे क्योंकि मौजूदा सरकार विचारहीन और दिशाहीन है.”
मनंगाग्वा के समर्थक मानते हैं कि उन्हें फिर से मौक़ा मिलना चाहिए. हरारे में आयोजित ज़ानू-पीएफ़ की रैली में हिस्सा लेने आई मोलीन मुसारीरी नाम की एक महिला ने कहा, “मैं राष्ट्रपति मनंगाग्वा के समर्थन के लिए यहां आई हूं. मैं उन्हें बताना चाहती हूं कि आपको मेरा वोट मिल रहा है.”
वहीं विपक्षी पार्टी एमडीसी की रैली में भी ख़ूब भीड़ जुटी. एमडीसी के उम्मीदवार चमीसा युवा और बेरोज़गारों के बीच लोकप्रिय हैं. उनकी एक समर्थक तसेही मैतिरा ने कहा, “मैं नेल्सन चमीसा का समर्थन करती हूं क्योंकि हमें बदलाव चाहिए. हमने बहुत कुछ सहा है. हमारे पास न तो कैश है न खाने को लिए अनाज. पैसे न होने के कारण बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे.”
बहुत से लोग ज़िम्बाब्वे की ख़राब हालत के लिए रॉबर्ट मुगाबे को ज़िम्मेदार मानते हैं जो 1980 में आज़ादी मिलने के बाद से लेकर साल 2017 के आखिर तक राष्ट्रपति रहे. अब मतदान से पहले वह पहली बार मीडिया के सामने आए और लोगों से लोकतंत्र स्थापित करने की अपील की.
मुगाबे ने कहा, “कल चुनाव है और मैं आपसे अपील करता हूं कि लोकतंत्र, संवैधानिकता और आज़ादी लेकर आइए. नहीं तो हमें वही शासन दोबारा देखना होगा, जो हम पिछले साल नवंबर से देख रहे हैं. जो भी चुनाव में जीतेगा, उसे पहले से ही बधाई. हमें फ़ैसला स्वीकार करना होगा.”
मुगाबे ने कहा है कि मैं अपने बाद राष्ट्रपति बने शख्स (मनंगाग्वा) को वोट नहीं दूंगा. उन्होंने यह भी कहा कि वो ख़ुद ही पिछले साल दिसंबर में होने वाली पार्टी की कांग्रेस में इस्तीफ़ा देने वाले थे.
रॉबर्ट मुगाबे ने जोशुआ नकोमो के साथ मिलकर साल 1987 में ज़ानू-पीएफ़ पार्टी की स्थापना की थी. जब उनसे पूछा गया कि उनकी पसंद कौन हो सकती है तो उन्होंने विपक्षी उम्मीदवार नेल्सन चमीसा का नाम लिया.
उन्होंने ये भी कहा कि उनका अपनी पत्नी ग्रेस को सत्ता सौंपने का कोई इरादा नहीं था. उन्होंने कहा कि उन्हें जबरन सत्ता से बाहर करने से ज़िम्बाब्वे के लोगों को आज़ादी नहीं मिली है.
37 सालों तब जिम्बाब्वे और मुगाबे एक दूसरे के पर्याय रहे थे, मगर धीरे-धीरे विवादों ने उनकी छवि को खासा नुकसान पहुंचाया. नौबत ऐसी आ गई कि देश की आजादी के हीरो रहे मुगाबे को सैन्य हस्तक्षेप के बाद पिछले साल नवंबर में इस्तीफ़ा देना पड़ा.
अब उनके जाने के बाद जब देश में चुनाव हो रहे हैं तो यहां के निवासियों को उम्मीद है कि नई सरकार उनके देश को स्थिरता और मजबूती देगी

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