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नईदिल्ली, जहां एक और दुनिया कोरोना संक्रमण से लड़ रही है वहीं दूसरी तरफ घरेलू हिंसा भी एक मुद्दा बना हुआ है. लॉकडाउन के दौरान भारत में घरेलू हिंसा के मामले में वृद्धि दर्ज की गई. पिछले 2 महीनों के आंकड़ों के हिसाब से राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) ने अपनी एक रिपोर्ट में खुलासा किया है कि घरेलू हिंसा के मामले में दिल्ली तीसरे स्थान पर है वहीं पहले स्थान पर उत्तराखंड और दूसरे स्थान पर हरियाणा राज्य है. इस रिपोर्ट में 15 मई तक के विभिन्न श्रेणियों में दर्ज केसों का आंकलन किया गया है.
लगभग दो महीने के दौरान सबसे ज्यादा घरेलू हिंसा के मामले उत्तराखंड में दर्ज किए गए. एनएएलएसए के अनुसार दिल्ली में 63 मामले देखे गए, जहां महिलाएं तत्काल काउंसलर की मदद मांग रही थीं. वहीं उत्तराखंड में 144 और हरियाणा में 79 घरेलू हिंसा के मामले दर्ज किए गए. एनएएलएसए के कार्यकारी अध्यक्ष, सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एन वी रमना ने घरेलू हिंसा पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए 28 अलग-अलग राज्यों से डेटा एकत्र किया.
इस रिपोर्ट में किराएदार, प्रवासी कामगार और रिहा किए गए कैदियों के भी आंकड़े एकत्र किए गए हैं. एनएएलएसए का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान, कई गरीब और जरूरतमंद व्यक्तियों ने खुद के साथ-साथ अन्य दैनिक वर्कर्स की ओर से मालिकों के सैलरी नहीं देने की शिकायतें दर्ज कीं. उन्होंने कहा, कानूनी सेवाओं के अधिकारियों द्वारा 1,822 लोगों को कानूनी सहायता और एनी सहायता भी प्रदान की गई. रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन के दौरान कुल 42,259 कैदियों को जेलों से रिहा किया गया, जहां उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 9,977 कैदियों को रिहा किया.
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा है कि 24 मार्च से लेकर अप्रैल माह तक उन्हें घरेलू हिंसा की शिकायत करते हुए करीब 69 ईमेल मिल चुके हैं और यह आंकड़ा रोज बढ़ता ही जा रहा है. रेखा शर्मा का कहना है कि असली आंकड़ा इससे भी ज्यादा होगा क्योंकि आयोग को अधिकतर शिकायतें ईमेल नहीं बल्कि डाक के जरिए आती हैं. परन्तु लॉकडाउन के कारण यह सेवा ना के बराबर चालू है.