ऐसे वक्त में अब जब विश्व स्वास्थ्य संगठन भी स्वीकार करने लगा है कि कोरोना वायरस का संक्रमण हवा से फैलने के सबूत हैं तो कोरोना संकट से जूझ रही सरकारों और लोगों की चिंताएं गहरी हो गई हैं। इससे पहले क्लीनिकल इंफेक्शियस डिजीज जर्नल में बीते सोमवार को 32 देशों के 239 वैज्ञानिकों के प्रकाशित खुले खत में प्रमाण दिये गये थे कि कोरोना ‘फ्लोटिंग वायरस है जो हवा में ठहर सकता है और फिर सांस लेने से लोगों को संक्रमित कर सकता है। पत्र में मांग की गई थी कि विश्व स्वास्थ्य संगठन अपने दिशा-निर्देशों को मौजूदा चुनौती के मद्देनजर बदले। डब्ल्यूएचओ कह रहा है कि कोरोना वायरस के हवा के जरिये फैलने के सबूत मिल तो रहे हैं, लेकिन अभी पक्के तौर पर इस बात को लेकर कोई निष्कर्ष नहीं दिया जा सकता। यह भी कि सार्वजनिक स्थलों, भीड़भाड़ वाली, कम हवा वाली तथा बंद जगहों पर हवा के जरिये संक्रमण फैलने की आशंकाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। यद्यपि इस दिशा में प्रमाण एकत्र करके निष्कर्षों को समझने की जरूरत है। निस्संदेह यदि ऐसा है तो कोरोना के खिलाफ आम आदमी की लड़ाई को नये सिरे से परिभाषित करना होगा, क्योंकि ऐसे में संक्रमण का खतरा कई गुना बढ़ जायेगा। दरअसल, बीते मार्च में चीन में संक्रमण के बाद डब्ल्यूएचओ ने कहा था कि वायरस संक्रमित व्यक्ति के नाक और मुंह से निकली सूक्ष्म बूंदों के माध्यम से ही फैलता है। उसी के अनुसार ही बचाव के तौर-तरीके तय किये गये। मसलन लोगों में 3-3 फीट की दूरी से बचाव संभव है लेकिन नये अध्ययनों के बाद बचाव के उपायों का नये सिरे से निर्धारण करना होगा। निस्संदेह अब कोविड-19 की रोकथाम के लिये बड़े पैमाने पर कदम उठाये जाने की जरूरत होगी।
दरअसल, अब तक इसके संक्रमण की आशंका वहीं जतायी जा रही थी जहां कोई कोरोना मरीज मौजूद होता था। अत: उपचार में लगे चिकित्साकर्मियों को ही सचेत किया गया था। अब चुनौती का स्तर व्यापक हो गया है।?हालांकि, हवा में संक्रमण के सवाल गाहे-बगाहे हवा में तैरते रहे थे, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बात को स्वीकार नहीं किया। कहा गया कि इसके विषाणु ज्यादा समय हवा में विद्यमान नहीं रह सकते, ज्यादा दूर नहीं जा सकते। मगर वैज्ञानिकों के नये दावे इन बातों को सिरे से खारिज कर रहे हैं। निस्संदेह यह पूरी मानवता के लिये बेहद चिंता की बात है। सीमित चिकित्सा सुविधाओं और पूरी दुनिया में व्याप्त अथाह गरीबी को देखते हुए आने वाले दिनों में समस्या के और जटिल हो जाने की आशंका बलवती हो गई है। पहले से ही तमाम विवादों से घिरे तथा बड़ा आर्थिक योगदान देने वाले अमेरिका के डब्ल्यूएचओ से पल्ला झाड़ लेने के बाद इस संगठन की चुनौती और ज्यादा बढ़ गई है। नयी चुनौती का गहराई से अध्ययन किये जाने की जरूरत है ताकि जल्दी से जल्दी बचाव के उपाय आम लोगों तक पहुंच सकें। फिर मास्क की उपयोगिता व सोशल डिस्टेंसिंग की दूरी को नये सिरे परिभाषित करने की आवश्यकता होगी। इससे आगे जाकर सोचने की जरूरत होगी कि नये उपाय क्या हो सकते हैं। पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों को लगातार विकट होती इस चुनौती से मुकाबले के लिये आगे आना होगा। ऐसे वक्त में जब पूरी दुनिया में संक्रमितों की संख्या सवा करोड़ के करीब पहुंच गई है और मरने वालों का आंकड़ा साढ़े पांच लाख से अधिक हो गया है, इस महामारी से बचाव के लिये तैयारी युद्धस्तर पर किये जाने की जरूरत है। वैक्सीन तलाशने की कोशिश भी भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में की जा रही है। वहीं नागरिकों के स्तर पर बेहद सावधानी और संयम की जरूरत है। लोग मास्क लगाने व सुरक्षित दूरी रखने में लापरवाही बरत रहे हैं। हमारी जरा-सी लापरवाही कई लोगों को मुश्किल में डाल सकती है।
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