उत्तर प्रदेश

UP Election 2022: इस बार किस पार्टी से चुनाव लड़ सकते हैं मुख्तार अंसारी?

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सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर (OP Rajbhar) ने पिछले दिनों बांदा जेल में बंद मऊ के विधायक मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari)से मुलाकात की. राजभर का कहना था कि वो मुख्तार से राजनीतिक चर्चा करने गए थे. इस मुलाकात ने यूपी की राजनीति गर्मा दी. माफिया की छवि वाले मुख्तार अंसारी पूर्वांचल की राजनीति का एक प्रमुख चेहरा हैं. पिछला चुनाव उन्होंने बीएसपी के टिकट पर मऊ से जीता था. अब बसपा उन्हें टिकट नहीं देगी. मऊ से 1996 से मऊ से जीत रहे मुख्तार कभी किसी पार्टी के मोहताज नहीं रहे. वो जिस भी पार्टी के टिकट से लड़े, उन्हें जीत ही मिली. आइए एक नजर डालते हैं मुख्तार अंसारी के इस सफर पर.  

विरासत में मिली राजनीति 

मुख्तार अंसारी का जन्म 30 जून 1963 को गाजीपुर में हुआ था. राजनीति उन्हें विरासत में मिली थी. मुख्तार के पिता सुब्हानउल्लाह अंसारी वामपंथी मिजाज के थे. उनकी छवि इतनी साफ-सुथरी थी कि 1971 में नगर पालिका का चुनाव वो निर्विरोध जीत गए थे. मुख्तार के दादा डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता संग्राम सेनीनी थे. गांधी जी के करीबी डॉक्टर अंसारी 1926-27 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे. दिल्ली में किताबों के कारोबार के लिए मशहूर अंसारी रोड का नाम उन्हीं के नाम पर है.

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मुख्तार के दादा की तरह उनके नाना का रुतबा भी काफी बड़ा था. ‘नौशेरा के शेर’ के नाम से मशहूर उनके नाना ब्रिगेडियर उस्मान मुख्तार अंसारी 3 जुलाई 1948 को पाकिस्तान के साथ जंग में शहीद हो गए थे. उन्हें ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया था. इसी तरह पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी मुख्तार अंसारी के चाचा लगते हैं. 

अपराध की दुनिया में कदम

रॉबिन हुड की छवि रखने वाले मुख्तार अंसारी पर 1988 में पहली बार हत्या का केस गाजीपुर कोतवाली में दर्ज हुआ था. एक बार अपराध की दुनिया में कदम रखने के बाद मुख्तार ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. गाजीपुर के मुहम्मदाबाद थाने में मुख्तार अंसारी की हिस्ट्रीशीट नंबर-16 बी खुली हुई है. गाजीपुर के मुोम्मदाबाद से बीजेपी विधायक कृष्णानंदर राय की 29 नवंबर 2005 को हुई हत्या में मुख्तार अंसारी और उनके साथियों का नाम आया था. लेकिन दिल्ली की एक अदालत ने 3 जुलाई 2019 को सभी आरोपियों को इस मामले से बरी कर दिया था. इस फैसले को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है. 

मुख्तार अंसारी पर उत्तर प्रदेश में 50 से अधिक मामले चल रहे हैं. यूपी बीजेपी की सरकार बनने के बाद से मुख्यमंत्री योगी आदित्याथ ने निशाने पर माफिया हैं. योगी सरकार ने मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद जैसे माफियाओं पर कार्रवाई की है. उनकी संपत्तियों को तहस-नहस किया गया है. इन कार्रवाइयों में अब तक मुख्तार अंसारी की 192 करोड़ की संपत्ती धवस्त और जब्त की जा चुकी है. पुलिस ने मुख्तार गैंग के 96 लोगों को गिरफ्तार किया है. इनमें से 75 पर गुंडा एक्ट लगाया गया है.   

मुख्तार अंसारी 2005 से ही जेल में बंद हैं. रंगदारी मांगने के एक मामले में पंजाब पुलिस उन्हें ले गई थी. लेकिन उन्हें वापस यूपी भेजने में सुप्रीम कोर्ट तक को दखल देना पड़ा. वो इस समय बांदा जेल में बंद हैं.

कहां से अबतक नहीं हारे हैं मुख्तार अंसारी?

अपराध की दुनिया में डंका बजाने के बाद मुख्तार ने 1996 में राजनीति का रुख किया. उस साल विधानसभा चुनाव में बसपा ने उन्हें मऊ से अपना उम्मीदवार बनाया. उस चुनाव में मुख्तार ने बीजेपी के विजय प्रताप सिंह को 25 हजार 973 वोटों से हराया. इस जीत के बाद मुख्तार अंसारी और मऊ एक दूसरे के पर्याय बन गए. मुख्तार ने 2002 और 2007 का चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीता. बाद में उन्होंने कौमी एकता दल के नाम से अपनी खुद की पार्टी बना ली. इसी के टिकट पर वो 2012 का चुनाव जीते. कौमी एकता दल का 2017 में सपा में विलय हो गया. लेकिन अखिलेश यादव के विरोध के बाद अंसारी बंधुओं को बाहर रास्ता दिखा दिया गया. एक बार फिर बसपा ने उन्हें गले लगाया. बसपा ने मुख्तार अंसारी, उनके भाई और बेटे को भी टिकट दिया था. लेकिन जीते केवल मुख्तार ही. 

मुख्तार अंसारी और उनके परिवार का गाजीपुर के साथ-साथ मऊ, बलिया, चंदौली और वाराणसी तक में प्रभाव है. मुख्तार के साथ उनके बड़े भाई सिबगतुल्लाह अंसारी और अफजल अंसारी भी राजनीति में सक्रिय हैं. सिबगतुल्लाह और अफजल गाजीपुर की मोहम्मदाबाद सीट से विधायक रह चुके हैं. अफजल अंसारी इस समय गाजीपुर से सांसद हैं. वो 2019 में बसपा के टिकट पर जीते थे. वह भी नरेंद्र मोदी के करीबी मनोज सिन्हा को हराकर. वो मोहम्मदाबाद सीट से 1985 से 1996 तक विधायक चुने गए थे. सिबगतुल्लाह अंसारी अपने बेटे के साथ इस साल फिर सपा में वापस आ गए हैं. उम्मीद है कि सपा उन्हें टिकट भी देगी. मुख्तार को उसकी गठबंधन सहयोगी सुभासपा टिकट दे सकती है. अब देखने वाली बात यह होगी कि मऊ विधानसभा सीट और आसपास के जिलों में मुख्तार का जलबा पहले जैसा कायम रहता है या जनता उन्हें फर्श पर ले आती है. 

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