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पाकिस्तान की सियासी पिक्चर में फिर सुनाई दे रहे पुराने डायलॉग, क्या भुट्टो की राह पर हैं इमरान?

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  •  मेरे खिलाफ विदेशी साजिश हो रही है.
  • अमेरिका मुझे सत्ता से हटाना चाहता है.
  • मेरे पास साजिश के सबूतों हैं.
  •  जो न्यूट्रल हैं वो जानवर समान.
  •  मैं पाकिस्तान की स्वतंत्र विदेश नीति चाहता हूं.
  •  चूहे बनाम चूहे.

पाकिस्तान की सियासी पिक्चर में इन दिनों ऐसे तमाम डायलॉग खूब सुनाई दे रहे हैं. पाकिस्तान में चल रही राजनीतिक फ़िल्म के किरदार भले ही 2022 वाले हों मगर इसकी स्क्रिप्ट पहले भी पर्दे पर देखी जा चुकी है. चार दशक पहले पाकिस्तान के पहले निर्वाचित प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो भी इसी तरह के जुमलों का इस्तेमाल कर चुके थे.

वहीं इसे संयोग कहें या अपशकुन, लेकिन सेना के हाथों सत्ता से बाहर हुए भुट्टो के भाग्य का फैसला भी 4 अप्रैल को हुआ था और उन्हें सज़ा ए मौत दी गई थी. जबकि संसद में इमरान खान के राजनीतिक भाग्य का फैसला करने वाली तारीख भी 3-4 अप्रैल की ही आ रही है.

भुट्टो ने भी कहा था-अमेरिका मुझे हटाना चाहता है

पाकिस्तान को न्यूक्लियर स्टेट बनाने का सपना बुनने वाले भुट्टो ने भी यही दावा किया था कि अमेरिका मुझे सत्ता से हटाना चाहता है. भुट्टो ने दो अमेरिकी राजनयिकों की बातचीत का हवाला देते हुए कहा था कि वो कह रहे हैं “पार्टी इज़ ओवर, ही इज़ गॉन. अपोजिशन पार्टीज़ विल विन ओवर.” इमरान खान भी कह रहे हैं कि विदेशी ताकतों और विदेशी पैसे की मदद से उन्हें हटाने की साजिश रची गई है.

क्रिकेटर से पाकिस्तान में सियासत के कप्तान बने इमरान खान दुनिया में इस्लामोफोबया का मुद्दा उठाने और मुद्दा बनाने की बात कर रहे हैं. वहीं भुट्टो ने इस्लामिक सोशलिज्म का जुमला गढ़ा और प्रचारित किया था. भुट्टो ने पाकिस्तान को अमेरिका के कैंप से निकालने, अमेरिका को सफेद हाथी करार देने जैसे भाषण दिए तो साथ ही आरोप लगाए थे कि उनके खिलाफ कट्टरपंथी और विपक्षी पार्टियों को फंडिंग की गई. 

इतना ही नहीं भुट्टो ने सार्वजनिक रैलियों में भी इस बात पर अपनी नाराजगी जाहिर की थी. भुट्टो के खिलाफ करीब 9 पार्टियों का पाकिस्तान नेशनल अलायंस बना था. जबकि इमरान खान के खिलाफ भी उनके सहयोगी रही एमक्यूएम, बीएपी और जीडीए जैसी पार्टियां 9 से अधिक पार्टियों वाले पाकिस्तान डेमोक्रेटिक अलायंस का अब हिस्सा हैं.

न्यूट्रल होने की इजाजत नहीं- इमरान

सत्ता बचाने में मदद की गुहार लगा रहे इमरान खान सार्वजनिक बयानों में यह कह चुके हैं कि अल्लाह हमें न्यूट्रल होने की इजाजत नहीं देता. क्योंकि न्यूट्रल तो जानवर होता है. वहीं कुछ ऐसी ही बात जुल्फिकार अली भुट्टो ने भी की थी जब उन्होंने यूएन की बैठक में कहा था कि न्यूट्रल तो जानवर भी नहीं होता. इसलिए यह जरूरी है कि कोई न कोई पक्ष लिया जाए. ध्यान रहे कि इमरान ज़रकार के खिलाफ पाकिस्तान में विपक्ष यह कह रहा है कि सेना समेत अन्य संस्थाएं इस सियासी खेल में न्यूट्रल यानि तटस्थ हैं.

इमरान खान विपक्ष के लिए चूहे जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं. विपक्ष के नेता बिलावल भुट्टो ने कहा था कि इमरान खान चूहे नहीं अपने लोगों का साथ छोड़ने वाले शख्स हैं. जुल्फिकार अली भुट्टो का यूएन में दिया 15 दिसम्बर 1971 का वो भाषण दुनिया को याद है जिसमें उन्होंने भारत के खिलाफ जमकर ज़हर उगला था. इसी भाषण में भुट्टो ने कहा था ई एम नॉट अ रैट एंड ई हैव नेवर रैटेड. यानि में कोई चूहा नहीं हूं और मैंने अपने लोगों का साथ नहीं छोड़ा.

इमरान खान ने इस्लामाबाद में बुलाई 27 मार्च की अपनी रैली में जुल्फिकार अली भुट्टो का न केवल ज़िक्र किया बल्कि तारीफें भी की. इमरान ने कहा कि जुल्फिकार अली भुट्टो भी पाकिस्तान की विदेश नीति को स्वतंत्र करना चाहता था. इसी तरह उसे भी साजिश का शिकार बनाया गया. इतना ही नहीं इमरान ने एक और तीखा तंज करते हुए कहा कि आज भुट्टो का दामाद और नवासा उन लोगों से हाथ मिला चुका है जो भुट्टो के कातिल हैं.

जिया उल हक ने किया था भुट्टो को सत्ता से बेदखल

दुनिया जानती है कि जुल्फिकार अली भुट्टो को उनके ही नियुक्त किए गए तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल जिया उल हक ने सत्ता से बेदखल कर दिया था. इतना ही नहीं सेना ने 4 अप्रैल 1979 को उन्हें फांसी भी दे दी थी. विचित्र संयोग है कि इमरान खान के राजनीतिक भाग्य का अहम फैसला करने वाले मतदान की तारीख भी 4 अप्रैल क़ई आ रही है.

 बदले हुए वक्त में फिलहाल उनके खिलाफ सेना के तख्तापलट के संकेत तो नहीं दिख रहे लेकिन सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा और आईएसआई प्रमुख ले जनरल नदीम अंजुम की मुलाकातें इस तरफ इशारा ज़रूर कर रही हैं कि इमरान सियासी हदों को समझें और पाकिस्तान की मुश्किलें व मजबूरियां न बढ़ाएं.

इमरान को सता रही भविष्य की चिंता

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इमरान खान को सत्ता छोड़ने की सूरत में अपने भविष्य की चिंता भी खूब सता रही है. उनके अपने सांसद शिब्ली फ़राज़ कह चुके हैं कि इमरान खान की जान को खतरा है. हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की जान को आखिर खतरा किससे है और पाक के इस अति सुरक्षित व्यक्ति को कौन मारने वाला है. ऐसे में माना जा रहा है कि इमरान सत्ता का गणित बैठाने की पुरजोर कोशिशों के साथ साथ अपने लिए सुरक्षित निकलने की कोई डील भी तलाश रहे हैं.

इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान में सत्ता के बदलावों ने या तो उसके पुराने हुक्मरानों की जान ली है या देश निकाला दिया है. पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ और जनरल परवेज़ मुशर्रफ इसका उदाहरण हैं जो इन दिनों देश से बाहर हैं. वहीं 2008 के चुनाव प्रचार में आत्मघाती हमले में जान गंवाने वाली बेनज़ीर भुट्टो भी 1999 से 2008 तक चले मुशर्रफ राज में विदेश में ही रहीं. उनकी वतन वापसी तभी हो सकी ज़ब समझौता हुआ. हालांकि यह समझौता भी बेनजीर के लिए जानलेवा ही साबित हुआ.

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