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पाकिस्तान में मचे राजनीतिक उथल-पुथल का भारत से लेकर अमेरिका तक क्या होगा असर?

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पाकिस्तान में सियासी संकट काफी गहरा गया है. इमरान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव खारिज होने और नेशनल असेंबली के भंग किए जाने के बाद विपक्ष का गुस्सा बढ़ गया है तो वहीं इमरान खान विपक्ष पर तंज कस रहे हैं. इस्लामाबाद में फिलहाल भारी अनिश्चतता का दौर है. संवैधानिक विशेषज्ञ वैधता को लेकर बहस कर रहे हैं और इस पर विचार कर रहे हैं कि इमरान खान और उनके विरोधी आगे क्या और किस तरह से रास्ता तलाश सकते हैं. पाकिस्तान की सियासी संकट का असर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पड़ेगा. करीब 220 मिलियन से अधिक लोगों का परमाणु-सशस्त्र राष्ट्र पश्चिम में अफगानिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन और पूर्व में परमाणु प्रतिद्वंद्वी भारत के बीच स्थित है, जो इसे अहम रणनीतिक महत्व का बनाता है.

इमरान की नीति क्या अमेरिका विरोधी?

साल 2018 में सत्ता में आने के बाद से इमरान खान के बयानों और कार्यों से ऐसा लगता है कि खान की नीति अमेरिका के विरोध में रही. हाल के दिनों में ऐसे कई संकेत मिलते हैं जिससे पता चलता है कि इमरान खान चीन और रूस के करीब हैं. उन्होंने हाल ही में यूक्रेन पर आक्रमण शुरू होने के दिन राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बातचीत भी की थी. इमरान ने अभी हाल में कहा था कि रूस के साथ बातचीत एक ताकतवर देश को पसंद नहीं था. अमेरिका और एशियाई विदेश नीति विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान की शक्तिशाली सेना ने पारंपरिक रूप से विदेश और रक्षा नीति को नियंत्रित किया है, जिससे राजनीतिक अस्थिरता का प्रभाव सीमित हो गया.

भारत-पाकिस्तान संबंधों पर क्या होगा असर?

भारत और पाकिस्तान के बीच भी सीमा विवाद को लेकर रिश्ते ठीक नहीं रहे हैं. हालांकि राजनीतिक संकट के दौरान इमरान खान ने शुक्रवार को कहा था कि वो भारत को उनकी विदेश नीति को लेकर दाद देना चाहेंगे. हमेशा उनकी विदेश नीति स्वतंत्र रही है और अपने लोगों के लिए रही है. वो अपनी विदेश नीति की रक्षा करते हैं. हालांकि विदेशी मामलों के कई जानकार मानते हैं कि पाकिस्तान में चाहे किसी भी पार्टी की सरकार हो, जब तक पाकिस्तानी सेना का सत्ता में दखल होगा, भारत के साथ पाकिस्तान के संबंध तनावपूर्ण बने रहने की ही संभावना ज्यादा है.

तालिबान से रिश्ते भी ठीक नहीं!

हाल के कुछ वर्षो में पाकिस्तान की सैन्य खुफिया एजेंसी और इस्लामी आतंकवादी तालिबान के बीच संबंध कमजोर हुए हैं. तालिबान और पाकिस्तान की सेना के बीच हाल के दिनों में कुछ तनाव बढ़ा है. जिसने अपनी आपसी सीमा के करीब हमलों में कई सैनिकों को खो दिया है. पाकिस्तान चाहता है कि तालिबान चरमपंथी समूहों पर नकेल कसने के लिए और अधिक प्रयास करें और उन्हें चिंता है कि वे पाकिस्तान में हिंसा फैलाएंगे. अधिकांश विदेशी नेताओं की तुलना में इमरान खान मानवाधिकारों को लेकर तालिबान की कम आलोचनात्मक रहे हैं. तालिबान में आर्थिक और मानवीय संकट के बीच कतर मौजूदा वक्त में सबसे महत्वपूर्ण विदेशी भागीदार बन गया है.

चीन और रूस के प्रति खान के झुकाव से अमेरिका की नाराजगी बढ़ी?

इमरान खान ने पाकिस्तान और दुनिया में बड़े पैमाने पर चीन की सकारात्मक भूमिका पर लगातार जोर दिया है. 60 अरब डॉलर का चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) जो पड़ोसियों को एक साथ बांधता है. रूस के साथ भी पाकिस्तान का झुकाव बढ़ने से अमेरिका की नाराजगी बढ़ी है. हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि पाकिस्तान का राजनीतिक संकट बाइडेन प्रशासन के लिए प्राथमिकता होने की संभावना नहीं है. दक्षिण एशिया के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के वरिष्ठ निदेशक कर्टिस का कहना है कि इमरान की रूस यात्रा अमेरिकी रिश्तों के संदर्भ में एक आपदा की तरह रही. पाकिस्तान में नई सरकार बनने पर कुछ हद तक रिश्तों को सुधारने में मदद कर सकती है.

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