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नई दिल्ली। न्यायमूर्ति के एम जोसफ को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त करने को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। नये विवाद की वजह न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये सरकार की ओर से जारी अधिसूचना में उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को वरिष्ठता क्रम में तीसरे स्थान पर रखा जाना है।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा से इस मुद्दे पर आज मुलाकात की और केंद्र के फैसले पर अपना विरोध जताया। उधर, इस मुद्दे की गूंज लोकसभा में भी सुनाई पड़ी।
न्यायमूर्ति जोसफ को दो अन्य न्यायाधीशों के साथ कल उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश पद की शपथ लेनी है। शीर्ष अदालत के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ समेत न्यायाधीशों ने आज का कामकाज शुरू होने से पहले न्यायाधीशों के लाउन्ज में प्रधान न्यायाधीश से मुलाकात की।
न्यायमूर्ति लोकुर और न्यायमूर्ति जोसफ पांच न्यायाधीशों वाले शीर्ष न्यायालय के कॉलेजियम का हिस्सा हैं। प्रधान न्यायाधीश के बाद उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई मौजूद नहीं थे, क्योंकि वह आज छुट्टी पर हैं।
सूत्रों ने बताया कि प्रधान न्यायाधीश ने न्यायाधीशों को आश्वस्त किया कि वह न्यायमूर्ति गोगोई के साथ विचार-विमर्श करेंगे और इस मुद्दे को केंद्र के समक्ष उठाएंगे।सीजेआई, न्यायमूर्ति गोगोई, न्यायमूर्ति लोकुर और न्यायमूर्ति जोसफ के अतिरिक्त कॉलेजियम में न्यायमूर्ति ए के सीकरी पांचवें सदस्य हैं।
उधर, न्यायमूर्ति जोसफ की वरिष्ठता को सरकार द्वारा कथित तौर पर प्रभावित करने का प्रयास करने का मुद्दा आज लोकसभा में भी उठा। कांग्रेस नेता के वेणुगोपाल ने शून्यकाल में इसे उठाया। न्यायमूर्ति जोसफ का नाम लिये बिना कांग्रेस सदस्य ने कहा कि सरकार न्यायपालिका में हर नियुक्ति में दखल देना चाहती है।
गौरतलब है कि केंद्र ने गत शुक्रवार को शीर्ष अदालत में तीन न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये अधिसूचना जारी की थी। अधिसूचना में वरिष्ठता क्रम में न्यायमूर्ति जोसफ को तीसरे स्थान पर रखा गया है। ।अधिसूचना में मद्रास उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी का नाम पहले स्थान पर था जबकि उड़ीसा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश विनीत सरन का नाम दूसरे स्थान पर था।
सरकार की अधिसूचना में जिस क्रम में न्यायाधीशों के नाम होते हैं उसी अनुसार न्यायाधीशों की वरिष्ठता का निर्धारण करने की परिपाटी है।राष्ट्रपति ने तीन अगस्त को तीन न्यायाधीशों की नियुक्ति के वारंट पर हस्ताक्षर किया था। उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जोसफ की अध्यक्षता वाली पीठ ने 2016 में प्रदेश में लगे राष्ट्रपति शासन को रद्द किया था। राज्य में उस वक्त कांग्रेस की सरकार थी।
कॉलेजियम ने 10 जनवरी को वरिष्ठ अधिवक्ता इंदु मल्होत्रा के साथ न्यायमूर्ति जोसफ के नाम की सिफारिश शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के लिये की थी। हालांकि, सरकार ने न्यायमूर्ति जोसफ का नाम कॉलेजियम के पास पुनर्विचार के लिये वापस भेज दिया था, जबकि इंदु मल्होत्रा की नियुक्ति को हरी झंडी दे दी थी।
कॉलेजियम ने 16 मई को सिद्धांत रूप में शीर्ष अदालत में न्यायमूर्ति जोसफ को पदोन्नत करने के अपने फैसले को दोहराया था, लेकिन सरकार को दोबारा सिफारिश जुलाई में भेजी गई। इसे आखिरकार सरकार ने स्वीकार कर लिया।तीन नए न्यायाधीशों के शपथ लेने पर शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों की संख्या बढ़कर 25 हो जाएगी। शीर्ष अदालत में तब भी छह न्यायाधीशों के पद रिक्त होंगे।
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी के शपथ लेने के साथ ही शीर्ष अदालत में पहली बार तीन महिला न्यायाधीश होंगी। दो अन्य न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा शामिल हैं। न्यायमूर्ति जोसफ 14 अक्तूबर 2004 को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने और 31 जुलाई 2014 को वह उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बनाए गए।