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जानें क्या है ‘सेना का ओल्ड इज गोल्ड फॉर्म्युला’, कैसे सबसे ऊंचे बटालियन पर जवान कर रहे सुरक्षा

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भारत-चीन सीमा लद्दाख, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में है. लेकिन अब तक सबसे कम घटनाएं सिक्किम में हुई हैं. डोकलाम के बाद, छोटी-छोटी घटनाएं हुई हैं लेकिन ब्रिगेडियर और अन्य स्तरों पर बातचीत कर उसे सुलझा लिया जाता रहा है. दोनों पक्षों के लोग आते हैं और बात करते हैं और यथास्थिति स्थापित करने की कोशिश की जाती है. लेकिन चीन ऐसा नहीं चाहता. यह एक ऐसा देश है जो ठंडे दिमाग से चुपके और सावधानी से चलता है. चीन जानता है कि क्या करना है, प्रत्येक व्यक्ति की कार्रवाई का पालन करने के लिए कुछ भी पहले से तय है.

चीन की इन हरकतों के लिए इस सेक्टर में भारतीय सेना, यानी सिक्किम, लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश, जहां एलएसी-लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल है, जिसे चीन स्वीकार नहीं करना चाहता और इसी के चलते वे सेना में घुसपैठ की कोशिश करते हैं.

मुश्किल चुनौतियों में काम करती है भारतीय सेना

चीन पत्थरों और अन्य हथियारों से भारतीयों की हत्या करने की कोशिश करता है. इन क्षेत्रों में यात्रा करना भारत के लिए एक चुनौती बन जाता है. यहां पर गर्मी है, मानसून है, लेकिन 10 फीट से आगे क्या है, यह आप नहीं देख पाएंगे. इन्हीं चुनौतियों के साथ भारतीय सेना इन इलाकों में काम करती है. जब भारी बारिश होती है, पुल ढह जाते हैं और सड़कें टूट जाती हैं, तो सेना के जवानों को यह चलने योग्य नहीं लगता.

एक ओर, IAF का उपयोग चीजों की डिलीवरी तक पहुंचने के लिए किया जाता है, लेकिन फिर भी यह कमजोर और मौसम पर निर्भर रहता है. चीन को जवाब देने के लिए भारतीय सेना ने एक और काम किया है. इसने लद्दाख की तरह स्काउट्स तैयार किए हैं और इन स्काउट्स का मतलब है स्थानीय लोगों का इस्तेमाल करना और उनकी मदद लेना.

क्या है ओल्ड इज गोल्ड?

पूरी दुनिया में तकनीक काफी बदल गई है लेकिन जब युद्ध की बात आती है तो ‘ओल्ड इज गोल्ड’. यानी जब भी युद्ध के आधार पर बात चल रही होगी तो बल में कोई प्रतिस्थापन नहीं होगा, जिसका अर्थ है कि वे 1999 में कारगिल में जीत का झंडा फहराने के बाद भारत-चीन सीमा में पूरी तरह से दिखाई देने वाले बल में विश्वास करते हैं.

आपको बता दें कि सिक्किम सीमा पर जहां अंतरराष्ट्रीय सीमा स्थित है वहीं हमारे पास ‘अरुणाचल प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा’ है. सिक्किम में भारत जिस ऊंचाई पर है, उसके लिए यहां चुनौतियां कहीं ज्यादा हैं. यह जो 12 टन का बल है, शीर्ष पर ले जाने में बहुत समय लेता है और आप अच्छी तरह से अंदाजा लगा सकते हैं कि अगर इस तरह से बारिश और भूस्खलन हो रहा है तो वाहन को वहां तक ​​ले जाना कितना चुनौतीपूर्ण होगा. साहस में कोई कमी नहीं है, लेकिन तकनीक के साथ पुरानी तकनीक में विश्वास इस बल द्वारा दिखाया गया एक उदाहरण है.

डोकलाम-गलवान के बाद भारतीय जवान सतर्क

साल 2017 और 2020 के बाद गलवान और डोकलाम में जो घटनाएं हुई हैं, इन बातों को ध्यान में रखते हुए भारतीय सेना ने सभी जरूरी चीजें तैयार कर ली हैं. इन सभी जगहों पर फोर्स लगाई गई है. लेकिन भारतीय सेना के लिए एक चुनौती है, जो सड़क है, जब भी खराब मौसम या बारिश के कारण भूस्खलन होता है तो इन्हें सीमा तक ले जाना एक बड़ी चुनौती होती है.

इन्हें ध्यान में रखते हुए सरकार हर बार सड़कों के सुधार पर ध्यान दे रही है. दूसरी तरफ चीन की सीमा के दूसरी तरफ, पहाड़ों के पीछे चीन ने जो तैयारी की है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. दोनों ही बातों को दोनों सरकारों ने ध्यान में रखा है. चीन द्वारा बनाए गए फोर लेन हाईवे को भी ध्यान में रखा गया है, जो इसे एक ऐसी चुनौती दे रहा है जो भारतीय सेना के लिए सबसे कठिन होगी. लेकिन भारतीय सेना अच्छी तरह जानती है कि वे साहसी हैं और उन्होंने हमेशा जीत हासिल की है.

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