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कोरोना : महामारी से रस्साकशी

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कोरोना संक्रमितों की लगातार बढ़ती संख्या देश के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन गई है। सात लाख से ज्यादा मामलों के साथ भारत कोरोना पीडि़तों के मामले में अमेरिका और ब्राजील के बाद दुनिया का तीसरा देश बन गया है। कोरोना से मरने वालों की संख्या भी 20 हजार की रेखा पार कर चुकी है। महामारी के कुछ नए केंद्र इधर अचानक उभर आए हैं। बेंगलुरु में पिछले चार-पांच दिनों में नए संक्रमितों की संख्या रोज ब रोज बढ़ती जा रही है।
तिरुवनंतपुरम में सरकार ने एक हफ्ते के लिए ‘ट्रिपल लॉकडाउनÓ की घोषणा की है। गुवाहाटी में राज्य सरकार ने बीमारी के कम्यूनिटी स्तर पर पहुंचने की घोषणा कर दी है। इन सूचनाओं का यह मतलब न निकाला जाए कि हर मोर्चे पर हालात बिगड़ते ही जा रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में स्थितियां बिगडऩे के बाद अब सुधार की ओर बढ़ रही हैं। 23 जून को दिल्ली में 24 घंटे में 3947 नए केस आए थे जो अब तक की सबसे बड़ी संख्या थी। उसके बाद 24, 25 और 26 जून को रोज तीन हजार से ऊपर केस आए। पर 27 जून से नए केसों की संख्या कम होने लगी और उसके बाद पूरे हफ्ते का दैनिक औसत 2494 रहा।
रविवार को यह संख्या और कम 2244 दर्ज की गई। मुंबई में भी हालात स्थिर करने में सफलता मिली है। वहां नए केस आने की संख्या घट नहीं रही तो बढ़ भी नहीं रही है। सबसे बड़ी बात यह कि कोरोना से मृत्यु दर भारत में आज भी काफी कम है। दुनिया में मृत्यु और संक्रमण का अनुपात 4.7 फीसदी है जबकि भारत में यह 2.8 फीसदी दर्ज किया गया है। इस बीच देश भर के स्वास्थ्यकर्मी जी-जान से मोर्चे पर डटे हुए हैं। मात्र दस दिनों के अंदर दिल्ली के छतरपुर में दुनिया का सबसे बड़ा कोरोना अस्पताल बन जाना और बाकायदा काम करना शुरू कर देना अपने आप में एक अजूबा है। लेकिन एक मोर्चा ऐसा भी है जिसपर हमारी कमजोरी विश्व स्तर पर चल रही कोरोना विरोधी लड़ाई में अलग से रेखांकित की जा रही है। यह है सूचनाओं की कमी।
विशेषज्ञ महसूस कर रहे हैं कि भारत में कोरोना से जुड़ी सूचनाएं जितनी आसानी से मुहैया करवाई जानी चाहिए थीं, वह काम अभी नहीं हो रहा है। जैसे-जैसे हालात गंभीर होते गए, स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी बुलेटिन में सूचनाएं कम होती गईं। मरीजों की संख्या तो उसमें होती है लेकिन उम्र, क्षेत्र और मरीज की स्थिति आदि से जुड़े पर्याप्त ब्यौरे नहीं होते।
बुलेटिनों की संख्या कम होना और नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस बंद हो जाना भी इसी बात का संकेत माना गया कि सूचनाएं उपलब्ध कराने में सरकार की दिलचस्पी कम हो गई है। संभवत: इन्हीं वजहों से डब्ल्यूएचओ को कहना पड़ा कि भारत में कोरोना से जुड़े आंकड़ों को लेकर एक राष्ट्रीय गाइडलाइन जारी होनी चाहिए। कोरोना के खिलाफ लड़ाई में इन सूचनाओं की भूमिका बहुत बड़ी हो सकती है, इसलिए सरकार को सूचनाओं का अबाधित प्रवाह हर हाल में सुनिश्चित करना चाहिए।

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